भारत में अब 3 और नई एयरलाइंस को उड्डयन मंत्रालय ने हरी झंडी दे दी है. अब इंडिगो, स्पाइसजेट जैसी बड़ी कंपनियों को टक्कर देने आ रही हैं- शंख एयर, हिन्द एयर और फ्लाई एक्सप्रेस. इन तीनों कंपनियों को उड्डयन मंत्रालय ने मंजूरी दे दी है. भारत में किसी एयरलाइंस को शुरू करने में कितना वक्त लगता है, कितना खर्चा आता है और इसकी पूरी प्रक्रिया क्या है, इस बारे में आपको विस्तार से बताते हैं.
शुरू करने के लिए कितने पैसे चाहिए?
एविएशन सेक्टर की गिनती दुनिया के सबसे महंगे बिजनेस में होती है यानी इसे शुरू करने के लिए जेब में मोटा पैसा होना चाहिए. भारत का एविएशन सेक्टर वर्ल्ड का 9वां सबसे बड़ा बिजनेस है. भारत में इसे शुरू करने के लिए अंदाजन 500 से 1500 करोड़ रुपये की लागत लगती है. प्लेन खरीदना या लीज पर लेना, स्टाफ रखना, टेक्निल टीम, फ्यूल का खर्च, मेंटनेंस समेत हर जगह बहुत पैसे लगते हैं. ये काम वही कंपनियां शुरू कर पाती हैं जो पहले से ही मालामाल हो. स्टार्ट अप बिजनेस के लिए ये आइडिया थोड़ा मुश्किल होता है.
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ऐसे मिलता है लाइसेंस
भारत में अगर कोई एयरलाइंस शुरू करना चाहता है तो उसे DGCA से इजाजत लेनी पड़ती है. इसमें पायलट, एयर ऑपरेटर सर्टिफिकेट, टेक्निकल स्टाफ का एबिलिटी टेस्ट और सेफ्टी ऑडिट जैसे पड़ावों को पार करना पाड़ता है. ये पूरी प्रक्रिया कई चरणों में होती है, जिनमें पास होना बेहद जरूरी है. एयरलाइंस का लाइसेंस मिलने में 18 महीनों से लेकर 3 साल तक का वक्त लग सकता है. साथ ये भी जरूरी है कि मंजूरी मिलने के बाद एयरलाइन अपनी सुरक्षा और सेवा को बनाए रखे.
विमान खरीदना है बड़ी चुनौती
जब भी कोई एयरलाइन कंपनी शुरू करता है तो उसके लिए सबसे बड़ा चैलेंज होता है प्लेन खरीदना. एक प्लेन की कीमत कई सौ करोड़ रुपये हो सकती है. यही वजह है कि ज्यादातर कंपिनयां विमान खरीदने की बजाय लीज पर लेना ठीक समझती हैं. हालांकि लीज पर लेना भी आसान काम नहीं होता, हर महीने विमान की भारी कीमत अदा करनी पड़ती है. विमान को छोड़कर और भी दस तरह के खर्चे होते हैं जिन्हें पूरा करते करते किसी का भी तेल निकल जाए.
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