What is Polygraph Test: सीबीआई लगातार कोलकाता कांड के आरोपी संजय रॉय से पूछताछ कर रही है। 9 अगस्त को हुई वारदात के बाद अभी तक लोगों में गुस्सा दिख रहा है। अब सीबीआई ने आरोपी का पॉलीग्राफ टेस्ट करवाने का फैसला किया है। पॉलीग्राफ टेस्ट को लाई डिटेक्टर टेस्ट भी कहा जाता है। इस टेस्ट के जरिए यह पता लगाया जाता है कि आरोपी सच बोल रहा है या झूठ। महिला ट्रेनी डॉक्टर से दरिंदगी के मामले में सीबीआई को आरोपी का पॉलीग्राफ टेस्ट करवाए जाने की परमिशन मिल गई है। बता दें कि सीबीआई आरोपी का साइकोलॉजिकल टेस्ट पहले ही करवा चुकी है।
CBI को आरोपी के बारे में बड़ा संदेह
सीबीआई का मानना है कि अभी आरोपी वारदात की कुछ अहम बातों को छिपा रहा है। जो इस टेस्ट में सामने आ सकती हैं। जिसके बार कोर्ट से मंजूरी मांगी गई थी। अब कोर्ट ने मंजूरी दे दी है। आइए जानते हैं कि कोर्ट में पॉलीग्राफ टेस्ट की कितनी मान्यता है? इसकी प्रक्रिया कैसे पूरी होती है? इस टेस्ट में व्यक्ति से कुछ सवाल किए जाते हैं। जब वह उत्तर देता है तो उसकी शारीरिक प्रतिक्रियाओं को मापा जाता है। इससे पता लगाया जाता है कि आरोपी झूठ बोल रहा है या सच। इस टेस्ट के दौरान आरोपी को एक मशीन से कनेक्ट किया जाता है।
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उसकी हृदय गति, सांस लेने की दर, रक्तचाप, स्किन की विद्युत प्रतिरोधकता, मांसपेशियों की गतिविधियों का बारीकी से एक्सपर्ट्स निरीक्षण करते हैं। अगर आरोपी झूठ बोलता है तो उसकी शारीरिक प्रतिक्रियाएं बदल जाती हैं। जैसे हार्ट बीट बढ़ जाना, तेजी से सांस लेना और रक्तचाप का स्तर बढ़ जाना आदि।
#CBI has got permission to conduct #polygraph test of the arrested accused in #Kolkata hospital rape-murder case
Finally 🙏 pic.twitter.com/WTFK3TjkCA— Skyups Media (@skyupsMedia) August 19, 2024
कोर्ट नहीं मानती इस टेस्ट को साक्ष्य
एक ग्राफ के जरिए सब कुछ नोट किया जाता है। जिसमें यह दिखता है कि कैसे-कैसे आरोपी की शारीरिक प्रतिक्रियाएं सवालों का जवाब देने के दौरान बदलीं। इसके अलावा कोई और क्लू दिखता है तो भी झूठ का पता लग जाता है। लेकिन आगे आपको हैरान करने वाली बात बता रहे हैं। पॉलीग्राफ टेस्ट को कोर्ट में साक्ष्यों के तौर पर स्वीकार नहीं किया जाता। कोर्ट का मानना है कि आरोपी घबराहट या तनाव में आ सकता है। जिससे भी उसकी शारीरिक प्रतिक्रियाएं बदल सकती हैं। हो सकता है कि वह दोषी न हो।
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