Indira Gandhi Emergency 1975: आज इमरजेंसी की 50वीं वर्षगाठ है। तत्कालीन पीएम इंदिरा गांधी ने आज ही के दिन यानी 25 जून 1975 को देश में आपातकाल लगाया था। देश में 25 जून 1975 से 21 मार्च 1977 तक आपातकाल लगाया गया था। 25-26 जून की मध्य रात्रि में तत्कालीन प्रसिडेंट फखरूद्दीन अली अहमद के हस्ताक्षर के साथ ही पहला आपातकाल लागू हो गया था। इसके बाद पीएम इंदिरा गांधी ने रेडियो से पूरे देश को संबोधित किया। उन्होंने रेडियो से कहा कि भाइयो और बहनो, राष्ट्रपति ने आपातकाल की घोषणा की है। इससे आतंकित होने का कोई कारण नहीं है।
इमरजेंसी के दौरान इंदिरा गांधी के प्राइवेट सेक्रेटरी रहे आर के धवन ने एक न्यूज चैनल को दिए इंटरव्यू में बताया कि इंदिरा गांधी की लोकसभा सदस्यता रद्द होने के बाद वे इस्तीफा देने को तैयार हो गई थी, लेकिन किसी के कहने पर उन्होंने इस्तीफा टाल दिया। आइये जानते हैं आपातकाल से जुड़ा ये मशहूर किस्सा लेकिन इससे पहले एक नजर इसकी पृष्ठभूमि पर।
आर के धवन ने साझा किए किस्से
पूर्व पीएम इंदिरा गांधी के प्राइवेट सेक्रेटरी रहे आर के धवन ने बताया कि पीएम लाल बहादुर शास्त्री की मौत के बाद इंदिरा गांधी कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं को साइडलाइन कर पीएम पद का जिम्मा संभाला। इंदिरा के पीएम बनने के बाद से ही कुछ कारणों से उनका न्यायपालिका से टकराव बढ़ गया और यही टकराव अंत में आपातकाल में बदल गया। इसके लिए 27 फरवरी 1967 को आया सुप्रीम कोर्ट का फैसला भी बड़ी वजहों में से एक था। तत्कालीन सीजेआई जस्टिस सुब्बाराव की अगुवाई वाली खंडपीठ ने बड़ा फैसला देते हुए कहा कि संसद में दो तिहाई बहुमत के साथ कोई भी संविधान संशोधन नहीं किया जा सकता। इसमें कहा गया कि इसमें नागरिकों के मुल अधिकार के प्रावधान को न तो खत्म किया जा सकता है और न ही सीमित किया जा सकता है।
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आपातकाल का तात्कालिक कारण
आपातकाल लगाने का सबसे बड़ा कारण पीएम इंदिरा गांधी संसद सदस्यता को रद्द करना था। 1971 के चुनाव में इंदिरा गांधी और कांग्रेस बड़े मार्जिन से चुनाव जीते। इंदिरा गांधी की जीत पर सवाल उठाते हुए उनके खिलाफ चुनाव लड़ने वाले राजनारायण ने 1971 में अदालत पहुंचे और कहा कि इंदिरा ने चुनाव जीतने के लिए गलत तरीकों का इस्तेमाल किया। सुनवाई के बाद कोर्ट ने उनका चुनाव रद्द कर दिया। फैसले के बाद इंदिरा गांधी ने आपातकाल की घोषणा कर दी। जानकारी के अनुसार कोर्ट ने 24 जून को इंदिरा गांधी के खिलाफ फैसला सुनाया और 25 जून को इंदिरा गांधी ने कैबिनेट की बैठक बुलाकर इमरजेंसी के फैसले से अवगत कराया और इसके बाद 25 और 26 जून की मध्यरात्रि को प्रेसिडेंट फखरूद्दीन अली अहमद ने आपातकाल के अध्यादेश पर हस्ताक्षर किए और पूरे देश में इमरजेंसी लागू कर दी गई। ऐसे में इस्तीफा देने को तैयार इंदिरा गांधी इमरजेंसी के लिए कैसे मान गई?
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इस्तीफा देने को तैयार थी इंदिरा गांधी
आर के धवन ने एक इंटरव्यू में बताया कि इंदिरा गांधी ने अपने राजनीतिक करियर को बचाने के लिए आपातकाल की घोषणा नहीं की थी। बल्कि वह स्वयं इस्तीफा देने को तैयार थीं। जब इंदिरा ने इलाहाबाद हाईकोर्ट का फैसला सुना तो वह इस्तीफा देने को तैयार हो गई। उन्होंने अपना त्यागपत्र तक लिखवा दिया था। लेकिन उस पर उन्होंने हस्ताक्षर नहीं किए क्योंकि उस समय की कैबिनेट के वरिष्ठ सहयोगियों ने उनको इस्तीफा नहीं देने के लिए मना लिया। सभी ने जोर देकर कहा कि उन्हें किसी कीमत पर इस्तीफा नहीं देना चाहिए।
बंगाल के सीएम ने इंदिरा को लिखे पत्र में क्या कहा?
आर के धवन के अनुसार बंगाल के तत्कालीन सीएम सिद्धार्थ शंकर रे आपातकाल के सूत्रधार थे। धवन ने बताया कि आठ जनवरी 1975 को एसएस रे ने पत्र लिखकर इमरजेंसी लगाने का सुझाव दिया था। इंदिरा गांधी का चुनाव रद्द होने के बाद उन्होंने आपातकाल की जबरदस्त वकालत की। धवन ने आगे कहा कि गिरफ्तारी को लेकर सभी तैयारियां आपातकाल लगाए जाने से 5 दिन पहले ही कर ली गई थी। धवन ने चैंकाने वाला खुलासा करते हुए कहा कि उस समय कई राज्यों के कांग्रेस के मुख्यमंत्रियों ने संजय गांधी को यह भरोसा दिलाया कि वे अपनी मां इंदिरा से अधिक लोकप्रिय हैं।
संजय के फैसलों में पत्नी मेनका की कितनी भूमिका?
अब आते हैं इमरजेंसी के एक दूसरे बड़े किरदार पर। इनका नाम है संजय गांधी। कहा जाता है कि इंदिरा गांधी के पीएम रहते अधिकांश फैसलों पर निर्णय संजय गांधी ही किया करते थे। संजय और उनकी पत्नी मेनका गांधी को आपातकाल से जुड़ी सभी बातें पता थीं। वह हर कदम पर पति संजय गांधी के साथ थीं। धवन ने इंटरव्यू में चैंकाने वाला खुलासा करते हुए कहा कि इंदिरा गांधी जबरन नसबंदी और तुर्कमान गेट पर बुलडोजर चलवाने जैसे फैसलों से बिल्कुल अनजान थीं। उन्होंने बताया कि इंदिरा को तो यह भी पता नहीं था कि संजय ने अपने मारुति प्रोजेक्ट के लिए जमीन का अधिग्रहण करने वाले हैं। धवन ने कहा कि संजय गांधी के इन सभी फैसलों के पीछे उनकी पत्नी मेनका गांधी का हाथ था। संजय गांधी और उनकी युवा टीम को क्या करना है? यह सब कुछ मेनका ही बताती थी।
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संजय गांधी के निधन के बाद पत्नी मेनका ने संजय के सहयोगी अकबर अहमद डंपी के साथ मिलकर राष्ट्रीय संजय मंच बनाया। इसके बाद मेनका 1988 में जनता दल में शामिल हो गईं 1989 में पीलीभीत से चुनाव जीतकर संसद पहुंचीं। 1999 की अटल सरकार में केंद्रीय मंत्री रही मेनका 2004 में आधिकारिक तौर पर बीजेपी में शामिल हो गई।