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कौन थीं Fathima Beevi? जो बनीं देश की पहली महिला सुप्रीम कोर्ट जज, कहती थीं- मैंने दरवाजा खोल दिया…

Fathima Beevi Death: देश की पहली महिला सुप्रीम कोर्ट जस्टिस फातिमा बीवी का आज निधन हो गया। वे देशभर की महिलाओं के लिए आइकन थीं, जानिए उनके जीवन और उनकी उपलब्धियों के बारे में...

Edited By : Khushbu Goyal | Updated: Nov 23, 2023 14:20
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Fathima Beevi
Fathima Beevi

India’s First Woman Supreme Court Judge Death: देश की पहली महिला सुप्रीम कोर्ट जज जस्टिस एम. फातिमा बीवी का आज (23 नवंबर) निधन हो गया। 96 वर्ष की उम्र में उन्होंने आखिरी सांस ली। वे देशभर की महिलाओं के लिए जहां एक आइकन थीं, वहीं ज्यूड‍िशयरी के इतिहास में भी उनका नाम स्वर्ण अक्षरों में अंक‍ित है। केरल की स्वास्थ्य मंत्री वीना जॉर्ज ने उनके निधन पर शोक जताते हुए कहा कि जस्टिस बीवी का दुनिया से चले जाना बेहद दर्दनाक है। न्यायमूर्ति बीवी ने उच्चतम न्यायालय की पहली महिला न्यायाधीश और तमिलनाडु की राज्यपाल के रूप में अपनी विशेष छाप छोड़ी। वह एक बहादुर महिला थीं, जिनके नाम कई रिकॉर्ड थे। वह एक ऐसी शख्सियत थीं, जिन्होंने अपने जीवन से दिखाया कि इच्छाशक्ति और उद्देश्य की भावना से किसी भी विपरीत परिस्थिति पर काबू पाया जा सकता है।

 

साइंस पढ़ना चाहती थीं, वकील बन गईं

मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, फातिमा बीवी का जन्म 30 अप्रैल 1927 को त्रावणकोर (वर्तमान में केरल) के पठानमथिट्टा में हुआ था। उनके पिता का नाम मीरा साहिब और मां का नाम खडेजा बीबी था। फातिमा बीवी 6 बहनों और 2 भाइयों में सबसे बड़ी थीं। उन्होंने 1943 में कैथोलिकेट हाई स्कूल पठानमथिट्टा से स्कूली एजुकेशन पूरी की। इसके बाद वे हाई एजुकेशल के लिए त्रिवेंद्रम चली गईं, जहां 6 साल रहीं। यूनिवर्सिटी कॉलेज तिरुवनंतपुरम से BSC की। गवर्नमेंट लॉ कॉलेज तिरुवनंतपुरम से बैचलर ऑफ लॉ की। वे साइंस पढ़ना चाहती थीं, लेकिन उनके पिता भारत की पहली महिला न्यायाधीश और उच्च न्यायालय की न्यायाधीश बनने वाली भारत की पहली महिला जस्ट‍िस अन्ना चांडी से इतने प्रभावित थे कि उन्होंने बेटी फातिमा बीवी को भी साइंस की जगह कानून की पढ़ाई करने के लिए प्रेरित किया। फातिमा बीवी ने पिता की बात मानते हुए लॉ की दुनिया में करियर बनाया।

1950 में शुरुआत करके कई पदों पर काम किया

मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, साल 1950 में लॉ करने के बाद उन्होंने बार काउंसिल ऑफ इंडिया का एग्जाम दिया और पहले नंबर पर रहीं। उन्हें बार काउंसिल का गोल्ड मेडल भी मिला। 14 नवंबर 1950 को केरल में ही वकील बनकर शुरुआत की। 8 साल बाद उन्होंने केरल अधीनस्थ न्यायिक सेवाओं में मुंसिफ की नौकरी की। वह केरल की न्यायाधीश (1968-72), मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट (1972-4), जिला और सत्र न्यायाधीश (1974-80) रह चुकी हैं। आयकर अपीलीय न्यायाधिकरण (1980-83) रहीं। 1983 में फातिमा केरल उच्च न्यायालय की जज बनीं। 6 अक्टूबर 1989 को हाईकोर्ट से रिटायर होने के बाद वे सुप्रीम कोर्ट की महिला जस्टिस बनीं। यह पद हासिल करने वालीं वह पहली भारतीय महिला थीं। यह पद ग्रहण करते ही उन्होंने कहा था कि मैंने पुरुष प्रधान न्यायपालिका में महिलाओं के लिए दरवाजा खोल दिया है।

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राष्ट्रपति पद के लिए भी हुई थी नाम पर चर्चा

मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, फातिमा साल 1992 में सुप्रीम कोर्ट से रिटायर हुईं। इसके बाद वे राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (1993) की सदस्य बनीं। केरल पिछड़ा वर्ग आयोग (1993) के अध्यक्ष के रूप में कार्य किया। उन्हें तमिलनाडु का राज्यपाल भी बनाया गया। वे किसी भी उच्च न्यायपालिका में नियुक्त होने वाली पहली मुस्लिम न्यायाधीश भी थीं। न्यायमूर्ति बीवी ने राज्यपाल रहते हुए तमिलनाडु विश्वविद्यालय के चांसलर के रूप में भी कार्य किया। उन्हें उनकी उपलब्धिकयों के लिए भारत ज्योति पुरस्कार और यूएस-इंडिया बिजनेस काउंसिल (USIBC) लाइफटाइम अचीवमेंट पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। 1990 में डी.लिट और महिला शिरोमणि पुरस्कार भी मिला। विशेष उल्लेखनीय है कि साल 2002 में वाम दलों ने भारत के राष्ट्रपति के रूप में फातिमा बीवी के नामांकन पर सहमति जताई थी, लेकिन NDA सरकार ने अब्दुल कलाम के नाम का प्रस्ताव रखा और वे देश के राष्टपति बन गए थे।

First published on: Nov 23, 2023 02:19 PM

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