Electoral Bonds Case Verdict Supreme Court: केंद्र सरकार के चुनावी बॉन्ड योजना को रद्द किया जाना चाहिए या नहीं, इस पर सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को बड़ा फैसला सुनाया। शीर्ष अदालत ने कहा कि चुनावी बॉन्ड योजना सूचना के अधिकार और अनुच्छेद 19(1)(ए) का उल्लंघन है। इस योजना को असंवैधानिक करार देते हुए रद्द कर दिया जाना चाहिए। चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय पीठ ने यह फैसला सुनाया। इस पीठ में जस्टिस संजीव खन्ना, बीआर गवई, जेबी पारदीवाला और मनोज मिश्रा भी शामिल हैं।
CJI : Financial supports to political parties can lead to quid pro quo arrangement.#SupremeCourt #ElectoralBonds
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‘काले धन पर अंकुश लगाने वाली यह एकमात्र योजना नहीं है’
चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि चुनावी बॉन्ड योजना काले धन पर अंकुश लगाने वाली एकमात्र योजना नहीं है। इसके लिए अन्य विकल्प भी हैं। उन्होंने कहा कि काले धन पर अंकुश लगाने के उद्देश्य से सूचना के अधिकार का उल्लंघन उचित नहीं है। उन्होंने कहा कि नागरिकों को यह जानने का अधिकार है कि सरकार के पास पैसा कहां से आता है और कहां जाता है।
CJI : Infringement to the right to information is not justified by the purpose of curbing black money.#SupremeCourt #ElectoralBonds
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‘मतदाताओं को फंड के बारे में जानने का अधिकार’
चीफ जस्टिस ने कहा कि राजनीतिक पार्टियों को मिलने वाले फंड के बारे में मतदाताओं को जानने का अधिकार है। राजनीतिक दलों को फंडिंग के बारे में जानकारी होने से लोगों के लिए अपना मताधिकार इस्तेमाल करने में स्पष्टता मिलती है। सुप्रीम कोर्ट ने चुनावी बॉन्ड की योजना को असंवैधानिक करार दिया।
CJI : Amendment to the Companies Act (allowing blanket corporate political funding) is unconstitutional. #SupremeCourt #ElectoralBonds
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चुनावी बांड को जारी करना बंद कर दे एसबीआई
चीफ जस्टिस ने कहा कि एसबीआई चुनावी बांड को जारी करना बंद कर देगा। बैंक चुनावी बांड के माध्यम से डोनेशन और इसे पाने वाले राजनीतिक दलों का विवरण पेश करेगा। एसबीआई दलों द्वारा भुनाए गए चुनावी बांड का विवरण भी पेश करेगा। यह विवरण चुनाव आयोग को पेश करना होगा। इसके बाद आयोग इन विवरणों को 31 मार्च, 2024 तक वेबसाइट पर प्रकाशित करेगा।
‘नागरिकों को सरकार को जिम्मेदार ठहराने का अधिकार’
चीफ जस्टिस ने कहा कि याचिकाएं दो मुद्दों- क्या संशोधन अनुच्छेद 19(1)(ए) के तहत सूचना के अधिकार का उल्लंघन है और क्या असीमित कॉर्पोरेट फंडिंग स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव के सिद्धांतों का उल्लंघन करती है, के बारे में है। पहले मुद्दे पर अदालत ने माना है कि नागरिकों को सरकार को जिम्मेदार ठहराने का अधिकार है। सूचना के अधिकार के विस्तार का महत्वपूर्ण पहलू यह है कि यह केवल राज्य के मामलों तक ही सीमित नहीं है, बल्कि इसमें सहभागी लोकतंत्र के लिए आवश्यक जानकारी भी शामिल है।
‘कंपनी एक्ट में संशोधन असंवैधानिक’
चीफ जस्टिस ने कहा कि कंपनी एक्ट में संशोधन असंवैधानिक है। यह नागरिकों के सूचना के अधिकार का उल्लंघन करता है। चुनावी बांड योजना असंवैधानिक है, इसलिए कंपनी अधिनियम की धारा 182 में संशोधन अपरिहार्य हो गया है। किसी कंपनी का राजनीतिक प्रक्रिया पर व्यक्तियों के योगदान की तुलना में अधिक गंभीर प्रभाव होता है। कंपनियों द्वारा योगदान पूरी तरह से व्यावसायिक लेनदेन है।
CJI : A company has more graver influence on the political process than contributions by individuals. Contributions by companies are purely business transactions. Amendment to Section 182 Companies Act is manifestly arbitrary for treating companies and individuals alike.…
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प्रशांत भूषण ने की फैसले की सराहना
याचिकाकर्ताओं के वकील प्रशांत भूषण ने कोर्ट के फैसले की सराहना की है। उन्होंने कहा कि यह हमारी लोकतांत्रिक प्रक्रिया को बढ़ाएगा। वहीं, सॉलिसिटर जनरल ने कहा कि यह बाहर के लिए है। फोटोग्राफर बाहर इंतजार कर रहे हैं।
Correction : ECI shall publish the details of electoral bonds purchase in its website by March 13, 2024 (due to typographical error, the date was tweeted above as March 31).#SupremeCourt #ElectoralBonds
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चुनावी बॉन्ड योजना की घोषणा कब की गई थी?
चुनावी बॉन्ड योजना (Electoral Bond Scheme) की घोषणा 2018 में की गई थी। इस योजना को कॉमन कॉज, एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स और भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) समेत कई पार्टियों ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी। पिछले साल 31 अक्टूबर से 2 नवंबर तक चीफ जस्टिस के नेतृत्व वाली 5 जजों की संविधान पीठ ने इस पर सुनवाई की थी।
याचिकाकर्ताओं के वकीलों ने क्या तर्क दिया?
कॉमन कॉज और एडीआर के वकील प्रशांत भूषण ने शीर्ष अदालत के सामने तर्क दिया था कि नागरिकों को वोट मांगने वाली पार्टियों और उनके उम्मीदवारों के बारे में जानकारी पाने का पूरा अधिकार है। उन्होंने कहा कि लोगों के लिए यह पता लगाना कि प्रत्येक कंपनी ने कितना दान दिया है, संभव नहीं होगा। वहीं, वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने कहा कि इस योजना में ऐसा कुछ भी नहीं है, जिसके लिए डोनेशन को चुनाव प्रक्रिया से जोड़ने की आवश्यकता हो। एसबीआई ने खुद कहा है कि बांड राशि को किसी भी समय और किसी अन्य उद्देश्य के लिए भुनाया जा सकता है।
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चुनावी बांड क्या होता है?
चुनावी बांड योजना के तहत कोई भी भारतीय स्टेट बैंक (SBI) से चुनावी बांड खरीदकर राजनीतिक दलों को डोनेशन दे सकता है। दान देने वाले की पहचान गोपनीय रखी जाती है। योजना के तहत किसी भी बांड से मिली आय, जिसे जारी होने के 15 दिनों के भीतर भुनाया नहीं जाता है, प्रधानमंत्री राहत कोष में जमा की जाती है।
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