पहलगाम हमले के बीच एनडीए सरकार ने जातिगत जनगणना का ऐलान कर सभी को चौंका दिया। राहुल गांधी लंबे समय से इसकी मांग कर रहे थे, जबकि बीजेपी इसे देश को बांटने की राजनीति बता रही थी। अब खुद बीजेपी के इस कदम ने कांग्रेस का एक बड़ा चुनावी मुद्दा अपने पाले में खींच लिया है।
पहलगाम में हुए आतंकी हमले और पाकिस्तान के साथ बढ़ते तनाव के बीच एनडीए सरकार द्वारा जातिगत जनगणना का ऐलान कांग्रेस के लिए ठीक वैसा ही साबित हुआ जैसे किसी के मुंह से निवाला छीन लेना। यह मुहावरा उस स्थिति को दर्शाता है जब कोई व्यक्ति किसी चीज को पाने की उम्मीद में जी-जान से मेहनत कर रहा हो और ऐन वक्त पर वह चीज उससे छिन जाए। कांग्रेस लंबे समय से जाति जनगणना की मांग को लेकर संघर्षरत थी, लेकिन अब बीजेपी ने यह घोषणा कर उसका अहम मुद्दा खुद के पक्ष में कर लिया है।
कांग्रेस के निशाने पर था ओबीसी वोट बैंक
कांग्रेस की जातिगत जनगणना की मांग के पीछे मकसद उन अन्य पिछड़े वर्ग (OBC) के मतदाताओं को फिर से अपने पक्ष में लाना था, जो कभी उसके परंपरागत वोटर हुआ करते थे। लेकिन क्षेत्रीय दलों के उभार और बीजेपी की सटीक जातीय राजनीति ने कांग्रेस को धीरे-धीरे हाशिये पर धकेल दिया। आज़ादी के बाद जो व्यापक जनसमर्थन कांग्रेस को हासिल था, वह समय के साथ खिसकता गया और नतीजा यह हुआ कि पार्टी अधिकतर राज्यों में सत्ता से बाहर हो गई। इसका सीधा असर केंद्र की राजनीति पर भी पड़ा और कांग्रेस मुख्य विपक्षी दल बनकर रह गई। माना जाता है कि देश की आबादी में OBC की हिस्सेदारी 50 फीसदी से अधिक है, इसी कारण कांग्रेस लंबे समय से इस वर्ग को अपने साथ जोड़ने की कोशिश कर रही थी। लेकिन अब बीजेपी सरकार ने जातिगत जनगणना का ऐलान कर कांग्रेस से यह अहम मुद्दा भी छीन लिया है।
गरीबों को इन योजनाओं से साधा
1971 में इंदिरा गांधी द्वारा दिया गया गरीबी हटाओ नारा कांग्रेस की राजनीति की रीढ़ बन गया था। इसका उद्देश्य गरीब को रोजगार, शिक्षा और सब्सिडी जैसी सुविधाएं देकर मुख्यधारा में लाना था।
बीजेपी ने इस एजेंडे को नई सोच और योजनाओं के साथ अपनाया। प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना प्रधानमंत्री आवास योजना और उज्ज्वला योजना जैसे कार्यक्रमों के जरिए बीजेपी ने सीधे गरीबों तक राहत पहुंचाई। इन योजनाओं का असर ऐसा हुआ कि पारंपरिक रूप से कांग्रेस के साथ जुड़ा गरीब वोट बैंक अब बड़ी संख्या में बीजेपी की ओर झुकने लगा।
महानायकों को दिया सम्मान
बीजेपी ने कांग्रेस के एकाधिकार को तोड़ते हुए स्वतंत्रता संग्राम के अन्य नायकों—जैसे सरदार पटेल (स्टैच्यू ऑफ यूनिटी) सुभाष चंद्र बोस (नेताजी की मूर्ति), भगत सिंह और डॉ. अंबेडकर—को प्रमुखता दी और इन्हें अपनी राष्ट्रवादी राजनीति का हिस्सा बनाया। महात्मा गांधी को भी स्वच्छ भारत मिशन के ज़रिए आधुनिक संदर्भ में जोड़ते हुए जनता से भावनात्मक संपर्क स्थापित किया।
बीजेपी का समावेशी राष्ट्रवाद
बीजेपी ने सबका साथ सबका विकास और सबका विश्वास का नारा देकर एक समावेशी राष्ट्रवाद की छवि गढ़ने का प्रयास किया। इस रणनीति से पार्टी को न सिर्फ हिंदू बहुल क्षेत्रों में मज़बूती मिली बल्कि कुछ अल्पसंख्यक वर्गों का भी समर्थन हासिल हुआ।
खाद्य सुरक्षा कानून मनरेगा और शिक्षा व स्वास्थ्य सेवाओं में भारी सब्सिडी जैसी योजनाएं कांग्रेस की कल्याणकारी नीति की रीढ़ रही हैं। इनका मकसद गरीब और वंचित तबकों को आर्थिक सहारा देना था।
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किसानों को ऐसे किया आकर्षित
कांग्रेस ने हमेशा हरित क्रांति, कर्ज माफी और न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) जैसी पारंपरिक किसान-हितैषी नीतियों को अपना मुख्य एजेंडा बनाए रखा, जिसका उद्देश्य किसानों की आर्थिक स्थिति में सुधार और कृषि क्षेत्र को सशक्त बनाना था।
बीजेपी ने इन पारंपरिक नीतियों को नया रूप दिया और ‘पीएम किसान सम्मान निधि’ योजना के तहत किसानों को सालाना ₹6,000 सीधे उनके खातों में ट्रांसफर करना शुरू किया। इसके अतिरिक्त, सिंचाई, बीमा, और फसल खरीद से जुड़े डिजिटल पोर्टल्स का इस्तेमाल करके किसानों को और अधिक सुविधाएं प्रदान की, जिससे पार्टी ने कृषि समुदाय से अपनी लोकप्रियता बढ़ाई।
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