23 मार्च का ही दिन था जब भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु को अंग्रेजों ने फांसी दी थी। आमतौर पर फांसी सुबह दी जाती थी, लेकिन अंग्रेजों ने इन तीनों क्रांतिकारियों को शाम 7:30 बजे के करीब फांसी पर लटका दिया था। पहले भगत सिंह, फिर सुखदेव और उसके बाद राजगुरु को फांसी दी गई। तीनों के चेहरे पर कोई शिकन नहीं थी, बल्कि देश के लिए बलिदान देने का गर्व साफ झलक रहा था।
भगत सिंह की जेल यात्रा और विचारधारा
भगत सिंह 23 मार्च 1931 को शाम 7:33 बजे अपने साथियों के साथ फांसी चढ़ गए थे। वह करीब 2 साल तक जेल में रहे थे। इस दौरान उन्होंने पत्रों के माध्यम से अपने क्रांतिकारी विचारों को व्यक्त किया था। जेल में रहते हुए उन्होंने ‘मैं नास्तिक क्यों हूं?’ नामक एक लेख भी लिखा, जिसमें उनके क्रांतिकारी विचारों की झलक मिलती है।
भगत सिंह और उनके साथियों ने 64 दिनों तक भूख हड़ताल भी की थी, जिसमें उनके एक साथी की मृत्यु हो गई थी। जेल में भी वह आंदोलन जारी रखते थे और अपने साथियों के हौसले बुलंद करते रहते थे।
#BhagatSingh’s jail diary, written during his time at Lahore Central Jail, reflects his profound insights on capitalism, legal theories, and more.#DidYouKnow? The original diary was handed to his father after his execution on 23 March 1931.#AmritMahotsav #ShaheedDiwas… pic.twitter.com/PSHLMn9QzV
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अंग्रेजों ने भगत सिंह के शव के टुकड़े क्यों किए?
भगत सिंह की फांसी का समय नजदीक आते ही अंग्रेजों में डर बढ़ गया था। उन्हें इस बात की चिंता थी कि अगर भगत सिंह को तय समय पर फांसी दी गई तो आंदोलन भड़क सकता है। इसी डर के कारण अंग्रेजों ने तय समय से पहले ही फांसी देने का फैसला किया।
जब भगत सिंह को फांसी की जानकारी दी गई, तो वह लेनिन की जीवनी पढ़ रहे थे। जब उनसे उनकी आखिरी इच्छा पूछी गई, तो उन्होंने कहा कि वह अपनी किताब पूरी करना चाहते हैं। भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु को चुपके से फांसी दे दी गई, लेकिन अंग्रेजों को डर था कि उनके शव को लेकर विद्रोह न भड़क उठे। इसलिए उन्होंने शवों के टुकड़े कर दिए और उन्हें बोरियों में भरकर फिरोजपुर की सतलज नदी के किनारे ले जाया गया।
Main Nastik Kyon Hoon? by Bhagat Singh
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अधजले शव को नदी में फेंककर भागे अंग्रेज
रात के अंधेरे में अंग्रेजों ने गुपचुप तरीके से तीनों क्रांतिकारियों के शवों को जलाने का प्रयास किया, लेकिन सुबह होने का डर था। इसलिए वे अधजले शवों को ही सतलज नदी में फेंककर भाग गए। भारत के इतिहास में यह एक क्रूर और अमानवीय घटना थी, जिसने हर भारतीय के दिल को झकझोर कर रख दिया। भारत के इतिहास में इस घटना के बारे में कहा जाता है कि अंग्रेजों के इस कुकृत्य से ‘सतलज का पानी भी जल’ उठा था। नदी में दूर-दूर तक शव के टुकड़े तैर रहे थे। ग्रामीणों ने शव इन्हें एकत्रित कर विधिवत दाह संस्कार किया था। भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु का यह बलिदान भारत की आजादी की लड़ाई में अमर प्रेरणा बन गया और आज भी देश के युवाओं को देशभक्ति और साहस की राह दिखाता है।