मलेरिया मच्छरों द्वारा फैलने वाली बीमारी है, जो संक्रमित मच्छरों के काटने से होती है। इसमें तेज बुखार और सिरदर्द के साथ कई लक्षण दिखाई देते हैं। मच्छरों से होने वाली यह बीमारी इकलौती नहीं है। डेंगू और चिकनगुनिया भी मच्छरों से होने वाली बीमारियां है। मलेरिया मुख्यतः एनोफिलीज मच्छर के काटने से होती है, जो हर साल लाखों लोगों की जान ले लेती है। आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) और नई तकनीकें मच्छरों के नियंत्रण में मदद कर रही हैं और मलेरिया से स्थायी मुक्ति दिलाने की दिशा में कदम बढ़ा रही हैं।
विज्ञान और तकनीक के नए युग में मच्छरों से बचाव के लिए एक नई उम्मीद पैदा हुई है। क्या आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) और तकनीक मलेरिया से स्थायी मुक्ति दिलाने में मदद कर सकती हैं? आइए जानते हैं इस बारे में विस्तार से।
मलेरिया- एक ग्लोबल समस्या
मलेरिया एक ऐसा रोग है जो मुख्यतः मच्छरों के काटने से फैलता है और हर साल विश्वभर में 200 मिलियन से अधिक लोग इससे प्रभावित होते हैं। विशेष रूप से अफ्रीका, दक्षिण एशिया और दक्षिण-पूर्व एशिया में इसका प्रकोप ज्यादा देखने को मिलता है। भारत में भी मलेरिया का खतरा बहुत अधिक है। यहां इसकी वजह से कई लोग हर साल अपनी जान गंवाते हैं।
AI की भूमिका
आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) और मशीन लर्निंग तकनीकें मलेरिया से लड़ने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही हैं। ये तकनीकें मच्छरों के प्रजनन स्थानों का पता लगाने, उनके पैटर्न को समझने और मच्छरों के नियंत्रण के उपायों को प्रभावी बनाने में मदद कर रही हैं।
मच्छर पहचान प्रणाली क्या है? (Mosquito Recognition Systems)
AI आधारित सिस्टम अब मच्छरों की अलग-अलग प्रजातियों की पहचान कर सकते हैं और यह पता लगा सकते हैं कि कौन से मच्छर मलेरिया का प्रसार करते हैं। इस तकनीक से वैज्ञानिकों को अधिक सटीक तरीके से मच्छरों के प्रजनन स्थलों का पता लगेगा।
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ड्रोन और AI कैमरा
हाल के वर्षों में, ड्रोन का इस्तेमाल मच्छरों के प्रजनन स्थलों की पहचान करने के लिए भी किया गया है। AI कैमरे ड्रोन के साथ काम करते हैं, जो प्रजनन स्थलों पर नजर रखते हैं और मच्छरों के स्वभाव का विश्लेषण करते हैं।
जीनोमिक्स कैसे करता है काम?
मलेरिया के खिलाफ AI और जीन एडिटिंग तकनीकें भी क्रांति ला रही हैं। वैज्ञानिक अब जीनोमिक्स (Gene Editing) का इस्तेमाल करके मच्छरों के जीन में बदलाव करने की कोशिश कर रहे हैं, ताकि वे मलेरिया के परजीवी को अपने शरीर में न पाल सकें। इस तकनीक को CRISPR (Clustered Regularly Interspaced Short Palindromic Repeats) कहा जाता है, जो मच्छरों के लिए “मलेरिया-मुक्त” बनने का रास्ता खोल सकती है।
AI और डेटा एनालिटिक्स
AI और डेटा एनालिटिक्स का उपयोग मच्छर जनित रोगों की निगरानी और नियंत्रण में किया जा रहा है। इसके जरिए, वैज्ञानिक मलेरिया के जोखिम वाले क्षेत्रों में मौसम, जलवायु और पर्यावरणीय बदलावों का विश्लेषण करके भविष्य में मच्छरों के फैलने की संभावना का अनुमान लगा सकते हैं। इससे प्रभावित क्षेत्रों में समय रहते चेतावनी प्रणाली तैयार की जा सकती है और प्रभावी नीतियां बनाई जा सकती हैं।
भविष्य में होगा फायदा
AI और नई तकनीकों की मदद से, मलेरिया को नियंत्रित करने और भविष्य में इससे छुटकारा पाने की दिशा में बड़ा कदम उठाया जा रहा है। हालांकि, यह अभी शुरुआती चरणों में है लेकिन इन तकनीकों के परिणाम सकारात्मक दिख रहे हैं।
डॉक्टर की सलाह
एशियन हॉस्पिटल, एसोसिएट डायरेक्टर एंड हेड, इंटरनल मेडिसिन के डॉक्टर सुनील राणा के मुताबिक, मलेरिया से लड़ने के लिए जागरूकता और उचित चिकित्सा के साथ-साथ नए तकनीकी उपायों को अपनाना भी जरूरी है। तकनीक से मच्छरों को रोकना या उनका सफाया करना भविष्य में मलेरिया पर काबू पाने का अहम उपाय हो सकता है, लेकिन इस दौरान हमें पारंपरिक उपायों को नहीं छोड़ना चाहिए, जैसे कि मच्छरदानी का इस्तेमाल करना और उचित दवाओं का सेवन करना।
मलेरिया के संकेत
- बुखार।
- ठंड लगना और कंपकंपी महसूस करना।
- सिरदर्द और बदनदर्द।
- मतली-उल्टी।
- कमजोरी और थकान।
- दस्त लगना।
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