Major eye problems and symptoms: आंखें बहुत ही अनमोल होती है। आखों की बदौलत ही हम इस खूबसूरत दुनिया को देख पाते है, लेकिन जरा सी लापरवाही से किसी को भी अंधेपन का शिकार बना सकती है। इसलिए हर किसी को अपनी आंखों का खास ख्याल रखना चाहिए।
कई बार देखने को मिलता है कि कुछ लोग आंखों की समस्याओं के शुरूआती लक्षणों को अनदेखा कर देते हैं और फिर धीरे-धीरे उनमें यह समस्याएं गंभीर रूप ले लेती है। इसलिए जैसे हम अपने शरीर के अन्य अंग का ध्यान रखते हैं, वैसे ही हमें अपनी आंखों का भी ध्यान रखना चाहिए। इसलिए आज हम आपको आंखों से संबंधित कुछ रोग और लक्षणों के बारे में बताने जा रहे हैं।
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आखों में होने वाले रोग और लक्षण
1. ग्लूकोमा
ग्लूकोमा हो सकता है कि कुछ लोग इसके बारे में पहले से ही जानते हो। ये आंखों में होने वाला वो रोग है, जिससे आंख के अंदर का दबाव बढ़ने लगता है यानी इससे देखने में मदद करने वाले ऑप्टिक नर्व को गंभीर नुकसान होता है। साथ ही अगर समय रहते इसका इलाज ना किया जाए, तो इससे कोई भी अंधेपन का शिकार हो सकता है। ये ऐसा रोग है, जो जल्दी पीछा नहीं छोड़ता है और धीरे-धीरे नुकसान देता रहता है। साथ ही बढ़ती उम्र के साथ ये परेशानी और भी ज्यादा बढ़ जाती है क्योंकि उम्र बढ़ने के साथ ही कॉर्निया की मोटाई कम हो जाती और साथ ही ग्लूकोमा का खतरा भी बढ़ जाता है।
ग्लूकोमा के लक्षण
यूं तो ग्लूकोमा आंखों में होने वाली बहुत ही आम-सी परेशानी है, लेकिन इसके लक्षणों को पहचान पाना बहुत मुश्किल है। जैसे-जैसे ग्लूकोमा बढ़ने लगता है, तो आंखों की ऊपरी सतह और देखने की क्षमता पर असर होने लगता है। अक्सर काला मोतिया गंभीर हो जाता है, जिस कारण अंधापन भी आ जाता है। साथ ही काले मोतिया या मोतियाबिंद के दौरान आंख की मस्तिष्क को संकेत भेजने वाली ऑप्टिक तंत्रिकाएं बुरी तरह प्रभावित हो जाती है और इससे दूसरी आंख पर भी गंभीर असर होता है।
2. मोतियाबिंद
मोतियाबिंद आंखों में होने वाली सबसे आम समस्या है, जो बढ़ती उम्र के साथ किसी को भी हो सकती है। इस समस्या में आंख के अंदर के लेंस की पारदर्शिता धीरे-धीरे कम हो जाती है और इंसान को धुंधला दिखाई देने लगता है। ये धीरे-धीरे बढ़ता रहता है और पूरी तरह दृष्टि को भी खराब कर देता है। बता दें कि आंखों का लेंस प्रोटीन और पानी से बना होता है, जैसे ही उम्र बढ़ती रहती है, तो ये प्रोटीन आपस में जुड़ने लगते हैं और लेंस के उस भाग को धुंधला कर देते हैं।
मोबियाबिंद के लक्षण
मोतियाबिंद की पहचान है कि इंसान को कम दिखने लगता है यानी उसकी देखने की क्षमता कम होने लगती है। साथ ही इसके होने पर रोशनी के चारों ओर गोल घेरा सा दिखने लगता है। वहीं, रात के वक्त भी कम दिखाई देना, हर वक्त दोहरा दिखाई देना, हर रंग का फीका दिखना और धुंधली या अस्पष्ट दृष्टी हो जाना।
3. पार्किन्संस रोग
दरअसल, आंखों के पीछे तंत्रिका कोशिकाओं की परत रेटिना के पतले हो जाने पर पार्किन्संस रोग (पीडी) हो सकता है। एक अध्ययन में खुलासा हुआ था कि रेटिना का पतलापन मस्तिष्क कोशिकाओं की क्षति से जुड़ा हुआ है, जो डोपामाइन का उत्पादन करती हैं। डोपामाइन से गति को नियंत्रित किया जाता है और यह पीडी का एक हॉलमार्क है, जो मोटर क्षमता को कम करता है। ये रोग 40 साल की उम्र से पहले भी हो जाता है।
पार्किन्संस के लक्षण
पार्किन्संस के होने पर रेटिना पतली हो जाती है, साथ ही नींद कम आना, सांस जल्द भरना, पेशाब रुक-रुककर आना। वहीं, इसके होने पर शरीर में अकड़न महसूस होना, पैदल चलते वक्त जोर लगना, किसी से हाथ मिलाते वक्त हाथ का कांपना, हाथ की अंगुली में कंपन रहना, चलते समय पैर को जमीन को घिसटते हुए चलना, किसी से बात करने में रुचि न होना, बातचीत करते समय हल्का कांपना, कुर्सी पर बैठे समय हाथ और पैर में कंपन होना, शर्ट के बटन बंद करते वक्त कंपन होना, सूई में धागा डालते समय हाथ में कंपन रहना। वहीं, यह रोग महिलाओं की तुलना में पुरुषों में ज्यादा होता है।
4. काले धब्बे यानि फ्लोटर्स
अक्सर देखा जाता है कि फ्लोटर्स गहरे धब्बे, लकीरें या डॉट्स जैसे होते हैं, जो नजर के सामने तैरते हुए दिखते हैं। ऐसा अक्सर तब होता है, जब आप आसमान मकी ओर देखते है। फ्लोटर्स नजर के सामने दिखाई देते, लेकिन हकीकत में ये आंख की अंदरूनी सतह पर तैरते हैं। साथ ही आंखों में एक जेली जैसा तत्व मौजूद होता है, जिसे विट्रियस कहते हैं। साथ ही ये आंख के भीतर की खोखली जगह को भरता है और जैसे-जैसे उम्र बढ़ती है, वैसे ही विट्रियस सिकुड़ने लगता है। इस कारण आंख में कुछ गुच्छे बनने लगते हैं, जिन्हें फ्लोटर्स कहते हैं।
फ्लोटर्स के लक्षण
इस रोग के होने का कारण है बढ़ती उम्र के अलावा पोस्टीरियर विट्रियस डिटैचमेंट (पी.वी.डी) । पी.वी.डी. एक ऐसी अवस्था है, जिसमें विट्रियस जेल रेटिना से खिंचने लगता है। यह स्थिति भी फ्लोटर्स के होने का एक मुख्य कारण हो सकती है। अक्सर ऐसा भी होता कि विट्रियस हैमरेज या माइग्रेन सरीखे रोगों की वजह से भी फ्लोटर्स की समस्या हो जाती है।
5. कंजक्टिवाइटिस
ये एक ऐसा रोग है, जो बेहद संक्रामक होता है। इसका वाइरस या बैक्टेरिया स्पर्श के द्वारा किसी संक्रमित व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति तक पहुंच जाता है। पीड़ित व्यक्ति अपनी आंख छूने के बाद जो भी वस्तु या सतह छुएगा, वह संक्रमित हो जाएगी। स्वस्थ व्यक्ति द्वारा वह वस्तु या सतह छूने के बाद आंख को छूने से रोग स्वस्थ व्यक्ति की आंख तक पहुंच जाता है। हवा के द्वारा भी ये वायरस फैल सकता है।
कंजक्टिवाइटिस के लक्षण
कंजक्टिवाइटिस होने पर आंख में खुजली, लाली, चुभन व जलन होने लगती है। साथ ही आंख से कीचड़ निकलना, रोशनी से उलझन होना, आंख में कुछ गिरे होने का अहसास होता रहता है।
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