दुनिया में हर साल कई लाख बच्चे डाउन सिंड्रोम का शिकार होते हैं। दरअसल, डाउन सिंड्रोम एक प्रकार का जेनेटिक डिसऑर्डर है, जो बच्चे के शारीरिक और मानसिक विकास को प्रभावित करता है। डाउन सिंड्रोम एक जन्मजात स्थिति होती है, जिसमें बच्चों की फिजिकल और मेंटल ग्रोथ में देरी होती है। हालांकि, डाउन सिंड्रोम से पीड़ित बच्चे भी अन्य बच्चों की तरह समाज में शामिल हो सकते हैं और अच्छी तरह से अपना जीवन जी सकते हैं। मगर इन बच्चों में यह भावना स्वयं ही पैदा हो जाती है। इन्हें सही देखभाल, प्रेम और समर्थन की आवश्यकता होती है ताकि वे भी किसी चुनौती से घबराएं न। इस समय 17 मार्च से 23 मार्च तक डाउन सिंड्रोम अवेयरनेस वीक मनाया जा रहा है। हम आपको कुछ जरूरी टिप्स बता रहे हैं, जिनकी मदद से पेरेंट्स अपने बच्चों का ख्याल रख सकते हैं।
क्या कहते हैं एक्सपर्ट?
शेषाद्रिपुरम, बेंगलुरू के अपोलो हॉस्पिटल्स की कंसल्टेंट नियोनेटल पीडियाट्रिशियन डॉक्टर रश्मि जीनाकेरी ने डाउन सिंड्रोम से पीड़ित बच्चों को लेकर बताया कि वे अक्सर चिंता, टेंशन और संवेदनशीलता का अनुभव करते हैं, जिससे सोशल लाइफ में इनका जीवन जीना चुनौतीपूर्ण हो जाता है। ऐसे में उनके माता-पिता उनकी मदद कर सकते हैं।
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ये 5 टिप्स डाउन सिंड्रोम से पीड़ित बच्चों के माता-पिता के काम आएंगी
1. बच्चों को समाज में अटैच (Attach) रखें
डाउन सिंड्रोम से पीड़ित बच्चों को दूसरों के साथ बातचीत करने के अवसर दिए जाने चाहिए। इसके लिए, उन्हें ग्रुप्स, गतिविधियों, खेल और टीमवर्क में शामिल किया जा सकता है। ऐसे वातावरण में बच्चे आसानी से नए दोस्त बना सकते हैं और विभिन्न सामाजिक स्थितियों से निपटने के लिए खुद को प्रोत्साहित कर सकते हैं।
2. घर में शुरुआती कोशिशें
माता-पिता अपने बच्चों को घर में ही सामान्य बिहेवियर में जीना सिखाएं। आप बचपन में ही अपने बच्चे के साथ ऐसी एक्टिविटी करें, जो उनके लिए एक फिजिकल थेरेपी बनें। उन्हें हैंडशेक करना सिखाएं। भले ही यह छोटा प्रयास हो लेकिन काफी मददगार है। बच्चों से बातें करें ताकि लैंग्वेज बैरियर भी उनकी ग्रोथ को प्रभावित न कर सके।

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3. कम्यूनिकेशन स्किल्स को बढ़ावा दें
समय-समय पर बच्चों के साथ कम्यूनिकेशन स्किल्स पर भी काम करें। छोटे-छोटे संवाद, जैसे नमस्ते, धन्यवाद, मुझे मदद चाहिए, आपका नाम क्या है? आदि जैसी बातें सिखाएं। शब्दों के साथ-साथ चेहरे के भाव और शारीरिक भाषा का भी अभ्यास करवाएं। स्पीच थेरेपी भी बच्चों की मदद कर सकती है, जिससे वे अपने विचारों को बेहतर तरीके से व्यक्त कर सकेंगे।
4. धैर्य और प्रोत्साहन बनाए रखें
बच्चे के सोशल स्किल्स को सुधारने में समय लगता है। यह एक लंबा प्रोसेस हो सकता है, लेकिन धैर्य और निरंतरता के साथ काम करना महत्वपूर्ण है। हर बच्चा अपनी गति से विकसित होता है, और उनका आत्मविश्वास बढ़ाने के लिए उन्हें लगातार समर्थन देना जरूरी है।
5. रोल-प्ले और प्रैक्टिस
रोल-प्ले एक बेहतरीन तरीका है, जिसके द्वारा बच्चे विभिन्न सामाजिक परिस्थितियों का अभ्यास कर सकते हैं। आप घर में एक दूसरे व्यक्ति का रोल प्ले कर सकते हैं और बच्चे से बातचीत करने या विभिन्न परिस्थितियों में प्रतिक्रिया देने का अभ्यास करवा सकते हैं। यह उन्हें वास्तविक दुनिया में समाज में आत्मविश्वास के साथ रहना सिखाएगा।
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Disclaimer: ऊपर दी गई जानकारी पर अमल करने से पहले विशेषज्ञों से राय अवश्य लें। News24 की ओर से जानकारी का दावा नहीं किया जा रहा है।