Bawasir Piles: कुछ बीमारियां या स्वास्थ्य संबंधी दिक्कतें ऐसी हैं जिनके लक्षण आसनी से पहचान में आ जाते हैं और शुरुआती स्टेज में ही जिनके बारे में पता चल जाता है. वहीं, ऐसी कुछ कंडीशंस भी हैं जिनके बारे में देरी से पता चलता है और जब पता चलता है दिक्कत काफी बढ़ जाती है. इन देरी से पता लगने वाली दिक्कतों में बवासीर की दिक्कत शामिल है. इसे हेमोरॉइड्स (Hemorrhoids) या पाइल्स भी कहते हैं. बवासीर टिशूज के गुच्छे होते हैं जो खून के लोथड़े बन जाते हैं. ये ज्यादातर गुदा में होते हैं. ये एनस या रेक्टम से बाहर निकले हुए भी दिख सकते हैं. कई मामलों में इनसे दर्द नहीं होता और ये खुद ही कुछ समय बाद शरीर से बाहर आ जाते हैं. वहीं, कई मामलों में ये हेमोरॉइड्स दर्द और असहजता की वजह बनते हैं. मलत्याग करते हुए जोर लगाया जाए तो इनमें से खून भी निकलने लगता है. ऐसे में यहां जानिए बवासीर के शुरुआती लक्षण किस तरह के होते हैं और किस तरह बवासीर का इलाज (Bawasir Ka Ilaj) कराया जा सकता है.
बवासीर के शुरुआती लक्षण | Early Signs Of Piles | Bawasir Ke Lakshan
एनस (Anus) के अंदर स्थित हेमोरॉइड्स के शुरुआती लक्षण पहचानना मुश्किल होता है. इनके बढ़ने पर ही दर्द और असहजता ज्यादा होती है. इनसे गुदा को होने वाले डैमेज के कारण ही मेडिकल ट्रीटमेंट्स की जरूरत पड़ती है. बाहर निकले बवासीर को आसानी से पहचाना जा सकता है और तुरंत इलाज शुरू हो सकता है.
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अंदरूनी बवासीर के लक्षण – गुदा के अंदर हेमोरॉइड्स होने पर मल में खून नजर आने लगता है. यह खून बिना दर्द के आ सकता है. मल के साथ ही म्यूकस निकलने लगता है. गुदा में गीलापन महसूस होता है जिससे अनकंफर्टेल फील होता है. मलत्याग करते हुए और मलत्याग करने के बाद जलन महसूस होता है. गुदा पर खुजली होती है और इरिटेशन होने लगती है.
बाहरी बवासीर के लक्षण – एनस के आस-पास गांठे या लंप्स नजर आते हैं. एनस पर खुजली होती है, खून निकलता है और म्यूकस निकलने लगता है. हर समय असहजता महसूस होती है.
बवासीर के लक्षण (Piles Symptoms) पहचान आते ही इनका इलाज कराना जरूरी है. बवासीर के लक्षण अगर इग्नोर कर दिए जाएं तो इससे तकलीफ बढ़ सकती है. और सर्जरी तक की नौबत आ जाती है.
बवासीर का नॉन-सर्जिकल इलाज
दवाएं – बवासीर के नॉनसर्जिकल इलाज में दवाओं का सेवन शामिल है. दवाइयों से बवासीर कम किया जा सकता है.
रबड़ बैंड लिगैशन – रबड़ बैंड लिगैशन हो सकता है. इस प्रक्रिया में हेमोरॉइड्स तक ब्लड सप्लाई रोकने की कोशिश की जाती है. इसमें हेमोरॉइड्स पर इलास्टिक बैंड बांधा जाता है जिससे हेमोरॉइड्स तक ब्लड सप्लाई नहीं पहुंचती और वो सूखकर गिर जाते हैं.
स्क्लेरोथेरेपी – इसमें इंटरनल हेमोरॉइड्स में एक लिक्विड डाला जाता है जिससे स्कार बनने लगता है जो ब्लड सप्लाई रोक देता है. इससे हेमोरॉइड्स सिंकुड़ने लगते हैं.
इन्फ्रारेड फोटोकोएग्यूलेशन: इन्फ्रारेड फोटोकोएग्यूलेशन में बावसीर पर इन्फ्रारेज प्रकाश की किरण डाली जाती है जो इसके ऊतकों को गर्म करके स्कार बनाती है जिससे ब्लड सप्लाई रुक जाए और हेमोरॉइड्स सिंकुड़ जाएं.
लेजर ट्रीटमेंट – लेजर ट्रीटमेंट से खराब टिशूज को निकाल दिया जाता है. इससे अच्छे टिशूज पर असर नहीं होता. सूक्ष्म बीन लाइट से हेमोरॉइड्स को वेपोराइज कर दिया जाता है. यह प्रक्रिया ज्यादा दर्दनाक नहीं होती है और इसमें हीलिंग और रिकवरी ज्यादा होती है.
इलेक्ट्रोकोएग्यूलेशन – इस प्रक्रिया में इलेक्ट्रिक करंट से हेमोरॉइड्स को सुखाया जाता है. इलेक्ट्रोकोएग्यूलेशन से ब्लड सप्लाई रुकती है और हेमोरॉइड्स सिंकुड़ने लगते हैं.
बवासीर के सर्जिकल ट्रीटमेंट
हेमोराइडैक्टोमी – हेमोराइडैक्टोमी बवासीर का ऑपरेशन (Piles Operation) है. यह सर्जिकल प्रक्रिया है जिसमें बवासीर को पूरी तरह से निकाल दिया जाता है. इस सर्जरी से बवासीर मस्से या हेमोरॉइड्स को काटकर निकाला जाता है और घाव बंद कर दिए जाते हैं. इस सर्जरी के बाद पूरी तरह ठीक होने में कुछ हफ्तों का समय लग जाता है.
स्टेपल्ड हेमोराइडोपेक्सी – हेमोरॉइड्स निकालने के लिए न्यूनतम इनवेसिव सर्जिकल प्रक्रिया है. इसमें बवासीर के ऊतक हटाने के लिए स्टेपलिंग उपकरण का इस्तेमाल होता है. इस सर्जरी में कम दर्द होता है.
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