Dunki Review: कोई भी कहानी कुछ ना कुछ सीख जरुर देती है। किसी कहानी से मिली कोई भी सीख असल जिंदगी में भी बहुत काम आती है। हालांकि जब बात दादी-नानी की कहानियों की हो, तो कोई शक ही नहीं है कि उस कहानी के पीछे कोई कारण या सीख नहीं है।
राजकुमार हिरानी की फिल्में भी कुछ ऐसी ही होती है, जिनमें दादी-नानी की कहानियों जैसी स्टोरी होती है। हिरानी की फिल्में ना सिर्फ मनोरंजन करती हैं बल्कि कोई ना कोई सीख भी देती है। आज यानी 21 दिसंबर को रिलीज हुई ‘डंकी’ भी कुछ ऐसी ही कहानी है, जो मनोरंजन के साथ सीख भी देती है।
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‘डंकी’ की कहानी
दरअसल, ये कहानी शुरू होती है पंजाब के एक गांव लाल्टू से, जहां मन्नु अपने परिवार का घर बचाना चाहती है। बल्ली गांव के लोगों के उड़े बाल नहीं, बल्कि लंदन में अपने किस्मत सुधारना चाहता है और बुग्गू को लगता है कि इंग्लैंड जाकर उसकी किस्मत बदल जाएगी। इन सबके बीच सुखी है, जो लंदन पहुंचकर अपने प्यार को वापस लाना चाहता है। मगर इनके पास ना डिग्री है, ना पैसा है, ना इंग्लिश का सहारा है।
क्या लंदन पहुंचकर बदलेगी मन्नु, बल्ली और हार्डी की जिंदगी?
इन सबके बीच एक दिन लाल्टू में एक फौजी- हार्डी पहुंचता है, जिसकी डोर मन्नू और उसके परिवार के साथ जुड़ी है। हार्डी मन्नू और उसके दोस्तों से वादा करता है कि वो उन्हें किसी भी तरह से लंदन पहुंचाएगा। अब ये सफर आसान नहीं है और इसमें हौंसला छूटता है, मुश्किलें इम्तिहान लेती हैं, हालात बिगड़ते हैं, लेकिन क्या लंदन पहुंचकर मन्नु, बल्ली और हार्डी की जिंदगी बदलती है।
बहुत आगे की बात करती है राजकुमार हिरानी की ‘डंकी’
डंकी की कहानी सिर्फ उतनी नहीं, जो ट्रेलर में दिखती है। उससे बहुत आगे की बात करती है राजकुमार हिरानी की ‘डंकी’। ये किसी दूसरे देश में गैर-कानूनी तरीके से शरणार्थियों की भी कहानी भर नही है। डंकी बताती है कि दूसरे मुल्क में किराए के सपनों के लिए क्या कीमत चुकानी पड़ती है। डंकी सिखाती है कि बॉर्डर, सरहदें, लक्ष्मण रेखा… दौलतमंदों के लिए नहीं बल्कि मजबूरों के लिए हैं। ‘डंकी’ बात करती है कि जिंदगी अपनों के बीच है।
फिल्म में थोड़ा एक्शन जरूर है
अभिजात जोशी और हिरानी की जोड़ी ने ‘डंकी’ की बेहद मुश्किल कहानी को बिल्कुल वैसे ही समझा दिया है, जो इस जोड़ी का ट्रेडमार्क स्टाइल है। हंसते-हंसाते, थोड़ा रुलाकर, थोड़ा सच दिखाकर। हांलाकि इस फिल्म में थोड़ा एक्शन जरूर है, लेकिन वो ‘जवान’ और ‘पठान’ जैसा हाई-फाई और स्वैग वाला एक्शन नहीं बल्कि हालात और मजबूरी का एक्शन है, जो आपका दिल कचोट लेगा।
‘डंकी’ में हर गाना सिचुएशनल है
2 घंटे 41 मिनट की ‘डंकी’ में हर गाना सिचुएशनल है। ‘लुट-पुट गया’ आपको झुमाता है, तो ‘ओ माही’ जिस मोड़ पर आता है, वो गहरा असर छोड़ जाता है। ‘निकले थे कभी हम घर से’ और ‘चल वतना’ जैसे ट्रैक डंकी में जिन मोड़ पर आते हैं, उससे आप पर सिचुएशन्स से और जुड़ते चले जाते हैं। सेट डिजाइन और सिनेमैटोग्राफी असरदार है… लोकेशन से बहुत ज्यादा एक्सपेरीमेंट नहीं किया गया है, जिससे साफ जाहिर है कि डंकी के बजट को कंट्रोल में रखा गया है।
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शाहरुख के साथ हर किसी ने जीता दिल
परफॉरमेंस पर आइएगा, तो नौजवान हार्डी से लेकर, बुढ़ापे के हरदयाल सिंह ढिल्लन के किरदार तक… शाहरुख के अलग-अलग अंदाज आपका दिल छू जाएंगे। इस साल की अपनी दो दमदार एक्शन फिल्मों से ठीक उलट, डंकी जैसी फिल्म चुनना भी हिम्मत का काम है। दिलचस्प बात ये है कि ये फिल्म पूरी तरह से शाहरुख की फिल्म नहीं, इसमें हर किरदार को निखरने और उभरने का मौका मिला है।
विक्की कौशल का स्पेशल कैमियो
मन्नु के किरदार में तापसी पन्नू कमाल की हैं। शाहरुख के साथ उनके रोमांस में भी हिरानी का स्पेशल टच है। विक्की कौशल इस फिल्म में स्पेशल कैमियो में हैं, लेकिन उनका किरदार सबसे ज्यादा असरदार है और सुखी का उनका किरदार दिल तोड़ता भी है। बल्ली बने अनिल ग्रोवर और बग्गू बने विक्रम कोचर की कास्टिंग भी कमाल की है। बोमन ईरानी को तो स्क्रीन पर देखना जैसे एक तजुर्बा है।
‘डंकी’ को 4 स्टार
पठान और जवान जैसे स्वैग के साथ डंकी को देखने थिएटर जाइएगा, तो मजा नहीं आएगा। ये राजकुमार हिरानी की ट्रेडमॉर्क स्टाइल वाली सबसे मुश्किल फिल्म है, जो अपना असर थिएटर के अंदर नहीं, हमारे-आपके सोचने के नजरिए तक पर छोड़ेगी। डंकी को 4 स्टार।