Harivansh Rai Bachchan Birth Anniversary: सदी के महानायक अमिताभ बच्चन के पिता हरिवंश राय बच्चन की आज (27 नवंबर) को बर्थ एनिवर्सरी है। पुराने शहरों की गलियों में अपना जीवन बिताने वाले हरिवंश राय बच्चन का जीवन बेहद मुश्किल भरा रहा है।
आज हम आपको उनसे जुड़े कुछ किस्से बताने जा रहे है। साथ ही बताएंगे कि अपनी लाइफ में काफी चुनौती का सामना करने के बाद भी उन्होंने अपने नाम कई महत्वपूर्ण उपलब्धियां की है। चलिए जान लेते हैं…
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मशहूर कवि हरिवंश राय बच्चन
अमिताभ बच्चन के पिता और मशहूर कवि हरिवंश राय बच्चन की बर्थ एनिवर्सरी आज 27 नवंबर को है। साल 1907 में यूपी के प्रतापगढ़ जिले के बाबू पट्टी गांव में हरिवंश राय बच्चन का जन्म हुआ था। उन्होंने अपने जीवन में कई चुनौतियों को सामना किया है। वहीं, इसके बावजूद भी वो एक महान कवि बने और उनकी फेमस किताब मधुशाला है, जिसका कई भाषाओं में अनुवाद किया गया है।
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हरिवंश राय बच्चन की मधुशाला
बता दें कि साल 1935 में हरिवंश राय बच्चन ने मधुशाला की रचना की थी। वहीं साल 1984-85 में हरिवंश राय बच्चन ने अपने पैतृक आवास को सिर्फ 30,000 में अपने भांजे रामचंद्र को बेच दिया था। रिपोर्ट्स के मुताबिक, पहली काव्य रचना ‘मधुशाला’ के जरिए ही बच्चन साहब नामी कवि बन गए थे।प्रयागराज (तब इलाहाबाद) से हरिवंश राय बच्चन का दिली रिश्ता था। हालांकि बाद में हरिवंश राय बच्चन ने भी इस शहर से नाता तोड़ लिया। हालांकि इस बात को बहुत कम लोग जानते थे कि हरिवंश राय बच्चन का बचपन जीरो रोड की गलियों में गुजरा, लेकिन वे शहर के चार अलग-अलग घरों में रहे।
परिवार से अलग हो गए थे हरिवंश
इतना ही नहीं बल्कि अपनी पहली पत्नी से अलग होने के बाद हरिवंश राय बच्चन अपने परिवार से अलग हो गए थे और कटघर में किराए के मकान में रहने लगे थे। हाालंकि कहा तो ये भी जाता है कि पहले पत्नी के मौत के बाद उन्होंने बहुत जल्दी दूसरी शादी कर ली थी और इस वजह से उनको परिवार की नाराजगी भी झेलनी पड़ी थी। यही कारण था कि वो किराए के मकान में रहने चले गए।
मिली कई महत्वपूर्ण उपलब्धियां
बता दें कि हरिवंश राय ने 1941 से 1952 तक इलाहाबाद यूनिवर्सिटी में इंग्लिश लिटरेचर पढ़ाया। साल 1968 में ‘दो चट्टानें’ के लिए बच्चन को साहित्य अकादमी पुरस्कार मिला। साहित्य में योगदान के लिए वे मशहूर सरस्वती सम्मान, उत्तर प्रदेश सरकार का यश भारती सम्मान, सोवियत लैंड नेहरू पुरस्कार से भी नवाजे गए। साल 1976 में उन्हें पद्म भूषण से सम्मानित किया गया। 18 जनवरी 2003 को उनका निधन मुंबई में हुआ था। भले ही आज वो हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन फिर भी लोगों के दिलों में जिंदा हैं।