(सुभाष के झा): बॉलीवुड एक्ट्रेस अनुष्का शर्मा और दिलजीत दोसांझ की फिल्म ‘फिल्लौरी’ 8 साल पहले 24 मार्च, 2017 को सिनेमाघरों में रिलीज हुई थी। ये अनुष्का के होम प्रोडक्शन की फिल्म थी, जिसमें पहली बार एक्ट्रेस को एक आत्मा (शशि) के किरदार में देखा गया था। वैसे तो ये रोमांटिक-कॉमेडी फिल्म थी लेकिन हास्यप्रद इसलिए लगता है कि क्योंकि फिल्म की कहानी में इतना दम नहीं था कि इसे ऐतिहासिक महाकाव्य कहा जा सके। ‘फिल्लौरी’ निराश करने वाली है क्योंकि यह उन संभावनाओं को सामने लाती है, जिन्हें खुद तलाशने में विफल रहती है। अनुष्का शर्मा स्टारर ये फिल्म फ्लॉप क्यों हुई थी? इसकी खामियां हम आपको अपनी इस रिपोर्ट में बताएंगे।
क्या थी फिल्म की सबसे बड़ी खामी?
वो कहते हैं न कि कुछ फिल्में कागज पर ज्यादा अच्छी लगती हैं। दुखद, लेकिन सच है। ऐसी कल्पना की जा सकती है कि अनुष्का शर्मा फिल्म में भूत का किरदार निभाने के लिए कितनी एक्साइटेड होंगी जिसमें एक बेचैन आत्मा 98 साल पहले की अपनी अधूरी प्रेम कहानी को पूरा करने की कोशिश कर रही है। अफसोस की बात है कि कविता महाकाव्य से ज्यादा घिसी-पिटी है। फिल्म में सबसे बड़ी खामी ये है कि फिल्म दर्शकों को दो लेवल पर पंजाबी हृदय भूमि में ले जाती है, वर्तमान और अतीत। दोनों ही विपरीत रंगों में बने हैं, एक जंग लगा हुआ और ऊबड़-खाबड़ जबकि दूसरा आड़ू और संतृप्त।
फिल्म ‘फिल्लौरी’ की कहानी की बात करें तो अफसोस होगा कि दो जन्मों में प्यार को एक जगह मिल जाने की थीम मुश्किल से ही दर्ज होती है। फिल्म में पंजाबी परिवार में एक बड़ी शादी की भूलभुलैया से गुजरते हुए विकास बहल की शानदार जैसी ही गलत दिशा में ले जाया गया है। इस तथ्य को छोड़कर कि यहां पात्र सिद्धांत रूप में, अपने व्यस्त घर में एक दोस्ताना भूत के रहते हुए जैसे रिएक्शन दे रहे हैं, वह थोड़ा दिलचस्प है। यहां सुझाव देना ठीक होगा कि फिल्म के मेकर्स को इस हफ्ते रिलीज हुई फिल्म ‘अनारकली ऑफ आरा’ देखनी चाहिए जिससे पता चले कि जोरदार म्यूजिक से फिल्म में क्या बदलाव हो सकते हैं।
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एक्ट्रेस के किरदार में समानता
अनुष्का शर्मा ‘फिल्लौरी’ में सुंदर आत्मा बनी हैं लेकिन उनके किरदार में कुछ समानता उनकी दूसरी फिल्म जैसी लगती है। बात करें अगर ‘ऐ दिल है मुश्किल’ की तो इस फिल्म में भी अनुष्का एक जैसा ही व्यवहार करती है। ‘फिल्लौरी’ में वह एक चमकदार भूत की तरह दिखती है, साथ ही उसे केवल सूरज का किरदार ही देख सकता है। काश ये कहानी अतीत में अधिक मितव्ययिता और समभाव या कम गलत उत्साह के साथ सरकती। मजे की बात यह है कि कहानी की सुस्त गति की वजह से सब्जेक्ट में ‘ठहराव’ नहीं आता।
निर्देशक की तारीफ तो बनती है
खैर अनुष्का शर्मा की ‘फिल्लौरी’ में कुछ ऐसे एलिमेंट्स हैं, जो इसे बेहतर भी बनाते हैं। आखिर में इतिहास को श्रद्धांजलि देने का तरीका इतना साहसिक है कि आप फिल्म के नए निर्देशक की तारीफ करते हैं कि उन्होंने धारा के विपरीत जाकर काम किया। बता दें कि फिल्म में दिलजीत दोसांझ ने रूप लाल फिल्लौरी का किरदार प्ले किया था। अपने एक थ्रोबैक इंटरव्यू में उन्होंने ‘फिल्लौरी’ पर बात करते हुए बताया था कि ‘जब अनुष्का शर्मा मेरे पास फिल्म लेकर आईं तब मुझे यकीन नहीं था कि मैं ये कहानी करूंगा। जब मैंने फिल्म का क्लाइमैक्स सुना तब मैं इसके लिए तैयार हो गया। उनका रोल बहुत अच्छा था और मेरा रोल भी बढ़िया थ। कहानी इतनी अच्छी थी कि मुझे आश्चर्य होता है कि मैंने इसे प्रोड्यूस क्यों नहीं किया!’