Murder Mubarak Movie Review: बात जब क्राइम की होती है, तो एक नहीं बल्कि कई लोग शक के घेरे में आते हैं। फिर चाहे वो मासूम निर्दोष ही क्यों ना हो, लेकिन क्राइम है, तो शक होना तो लाजिमी है। अब जब शक है, तो जांच तो होगी ही…, जी हां, फिल्म ‘मर्डर मुबारक’ की बात यहां हो रही है और अब जब इस फिल्म की बात हो रही है, तो इसके बारे में जानना भी जरूरी है, लेकिन इस फिल्म में इतने एक्टर सस्पेक्ट के तौर पर भरे गए हैं कि ढाई घंटे की इस फिल्म में ये पता लगाना बहुत मुश्किल है कि उनकी बैक स्टोरी क्या है? खैर कोई बात नहीं… फिल्म की कहानी पर आते हैं…
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फिल्म की कहानी
‘मर्डर मुबारक’… इस फिल्म की कहानी शुरू होती है दिल्ली के सबसे अमीर, जो फिल्दी रिच वालों के क्लब- द रॉयल दिल्ली क्लब की है। यहां पर सबसे खास बात ये है कि यहां की मेंबर-शिप के लिए फीस देने वाले 1 करोड़ से भी ज्यादा रईसों के लिए वोटिंग लिस्ट है। इस क्लब के मेंबर्स की बात करें तो वो तो भई बिल्कुल वैसे ही हैं जैसे अंग्रेज चले गए और अपनी औलादें छोड़ गए। फिल्म के डायरेक्टर होमी अदजानिया ने ‘मर्डर मुबारक’ की कहानी बिल्कुल एक कॉर्टून की तरह बना दिया है।
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और ये है अमीरों की परेशानियों का अड्डा
दरअसल, फिल्म में दिखाया जाता है कि जितने भी अमीर और रईस हैं, सब अपनी-अपनी परेशानियों से बेहद परेशान हैं और इन सबसे दुखी होकर वो आते कहां हैं… जाहिर-सी बात है इस क्लब में, लेकिन एक रात ऐसी आई कि जब रईसों के इस क्लब में जुम्बा टीचर लियो का मर्डर कर दिया जाता है और शक के घेरे में, जितने लोग क्लब में होते हैं सब आ जाते हैं। इस पॉइंट की सबसे खास बात ये है कि लियो के मर्डर की वजह तो हर किसी के पास है, लेकिन इसमें जिस तरह के मर्डर को दिखाया जाता है वो होता नहीं है। अब मामला आ जाता है एसीपी भवानी सिंह के पास, जो इसकी इन्वेस्टिगेशन कर रहे होते हैं।
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बेस्ट दिखाने के चक्कर में बस ओवरडोज
कुल मिलाकर कहा जा सकता है कि नॉवेल को फिल्म की कहानी में ढालने में जो एहतियात बरती जानी चाहिए वो कहीं खो गई है। इसलिए कैरेक्टर्स खुद को अच्छे से डेवलप नहीं कर पाए और खुद को बेस्ट दिखाने के चक्कर में बस ओवरडोज दे दिया है। फिल्म में इतने किरदार होने के बाद भी इसकी कहानी में वो मजा नहीं आया, जो इसके नाम में है। हालांकि फिल्म का इन्वेस्टीगेशन वाला पार्ट खूब मजे दिलाता है।
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मर्डर मुबारक को 2 स्टार
अब अगर फिल्म में कलाकारों की परफॉरमेंस की बात करें तो पंकज त्रिपाठी, एक बार फिर से अपने पिछले किरदारों जैसे ही लग रहे हैं। सारा का किरदार दिलचस्पी जगाता है, लेकिन उनके चोरी करने वाली बीमारी कैरेक्टर ओवर-ड्रामैटाइजेशन है। आकाश डोगरा बने विजय वर्मा एक बार भी फॉम में नहीं आए। ‘मर्डर मुबारक’ में करिश्मा ने बेहद शानदार काम किया है। संजय कपूर ने भी अपने कैरेक्टर को लेकर बहुत अच्छा काम किया। हालांकि डिंपल कपाड़िया का कैरेक्टर फिल्म में किसलिए हैं ये तो शायद वो खुद भी नहीं जानती। टिस्का चोपड़ा का ड्रामैटिक कैरेक्टर तो हद से ज्यादा इरीटेट करता है और सुहैल नैयर भी कुछ खास कमाल नहीं कर पाए। मर्डर मुबारक को 2 स्टार।
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