नई दिल्ली, केंद्र सरकार की रिपोर्ट में दावा किया गया है कि उच्च शिक्षा संस्थानों में पिछड़े वर्ग,यानी एससी,एसटी और ओबीसी स्टूडेंट्स का ड्रॉप आउट रेट पिछले चार साल के बढ़ कर 52 फीसदी हो गया हैं। केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय ने संसद में बताया कि 32,000 से अधिक छात्रों ने उच्च शिक्षण संस्थानों में पढ़ाई छोड़ दी है।
केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय से प्राप्त आंकड़ों के मुताबिक 2019 से 2023 के बीच सेंट्रल यूनिवर्सिटीज ,आईआईएम,आईआईटी, एनआईटी समेत उच्च शिक्षा संस्थानों से 32,000 से अधिक छात्रों ने पढ़ाई बीच में छोड़ दिया है।
ड्रॉप आउट करने वाले 32000 छात्रों ने से 50 फीसदी से अधिक बच्चे, एससी ,एसटी और ओबीसी वर्ग से आते हैं। खास बात ये भी है कि ड्रॉप आउट करने वाले विद्यार्थी ज्यादातर स्नातकोत्तर और पीएचडी की पढ़ाई कर रहे थे ।
आंकड़ों में देखें किन किन संस्थाओं से हुए ड्रॉप आउट
शिक्षा राज्य मंत्री मंत्री सुभाष सरकार ने बीजेपी के राज्यसभा सांसद सुशील मोदी के द्वारा राज्यसभा में पूछे गए प्रश्न के जवाब में बताया कि सबसे अधिक केंद्रीय विश्वविद्यालयों से 17,454 , आईआईटी से 8,139, एनआईटी से 5,623 , आईआईएसईआर से 1,046 , आईआईएम से 858 , भारतीय सूचना प्रौद्योगिकी संस्थान से 803 और स्कूल ऑफ प्लानिंग एंड आर्किटेक्चर से 112 स्टूडेंट्स ने पढ़ाई बीच में छोड़ा है।
किस कैटेगरी के छात्रों में सबसे अधिक ड्रॉप रेट
पढ़ाई बीच में छोड़ने वाले 32,186 छात्रों में से 52 प्रतिशत अनुसूचित जाति से है जिनकी संख्या 4,423 है , वही अनुसूचित जनजाति से 3,774 और ओबीसी से 8,602 विद्यार्थी ने पढ़ाई बीच में छोड़ी है।
क्या रही ड्रॉप आउट की वजह
संसद में सरकार ने इन आंकड़ों के एवज में जो वजह बताई है ।वो ये है कि स्नातक कार्यक्रमों में पढ़ाई बीच में छोड़ने वालों की वजह गलत विकल्प भरा जाना और कोर्स में खराब प्रदर्शन के साथ साथ व्यक्तिगत और चिकित्सकीय वजह है। वही उच्च शिक्षा वाले विद्यार्थियों में ड्रॉप आउट की वजह सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों में नियुक्ति की पेशकश और बेहतर अवसर मिलना पढ़ाई बीच में छोड़ने की प्रमुख वजह रही है।