रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया (RBI) की मौद्रिक नीति समिति (MPC) की बैठक कल खत्म हो जाएगी। इस तीन दिवसीय बैठक के आखिरी दिन 9 अप्रैल को सुबह 10 बजे आरबीआई गवर्नर संजय मल्होत्रा बैठक में लिए गए फैसलों की घोषणा करेंगे। माना जा रहा है कि RBI इस बार भी रेपो रेट में कटौती कर सकता है। इससे पहले फरवरी में रिजर्व बैंक ने पांच साल के लंबे अंतराल के बाद नीतिगत ब्याज दरों को कुछ कम किया था।
महंगाई की नहीं चिंता
एक्सपर्ट्स का मानना है कि रेपो रेट में 25 बेसिस पॉइंट्स की कटौती हो सकती है, क्योंकि महंगाई के मोर्चे पर फिलहाल कोई बड़ी चिंता नजर नहीं आ रही है। विकास को प्रोत्साहित करने के लिए रिजर्व बैंक रेपो रेट पर कुछ अतिरिक्त राहत दे सकता है। उनका कहना है कि डोनाल्ड ट्रंप के टैरिफ के चलते वैश्विक अर्थव्यवस्था के लिए चुनौती बढ़ गई है, इसके मद्देनजर भारत में विकास को प्रोत्साहित करने के लिए तत्काल कदम उठाने की आवश्यकता है।
रेटिंग एजेंसी को भी उम्मीद
रेटिंग एजेंसी आईसीआरए को भी उम्मीद है कि एमपीसी तटस्थ रुख बनाए रखते हुए नीतिगत ब्याज दरों में 25 बेसिस पॉइंट्स की कटौती करेगा। आरबीआई गवर्नर संजय मल्होत्रा के नेतृत्व में हुई पिछली बैठक में रेपो रेट में 0.25% कटौती हुई थी और इसके बाद यह दर 6.25% हो गई। करीब पांच साल के लंबे इंतजार के बाद यह कटौती हुई थी। इससे पहले RBI ने महंगाई को नियंत्रित करने के नाम पर कई बार रेपो रेट में बढ़ोतरी की, जिससे कर्ज महंगे होते चले गए और लोगों पर EMI का बोझ भी बढ़ गया।
इस साल कितनी कटौती?
RBI MPC की अगली बैठक 4-6 जून को होगी और उसमें भी रेपो रेट में कटौती की उम्मीद है। अर्थशास्त्रियों का अनुमान है कि आरबीआई 2025 में कुल 75 बेसिस पॉइंट्स की तीन और ब्याज दर कटौतियां लागू कर सकता है। इन उपायों का उद्देश्य बढ़ते व्यापार तनाव के बीच आर्थिक विकास को समर्थन देना है। एक्सपर्ट्स का मानना है कि अमेरिका द्वारा भारतीय आयात पर लगाया गया 26% टैरिफ 2025-26 में सकल घरेलू उत्पाद की वृद्धि को लगभग 40 आधार अंकों तक प्रभावित कर सकता है। ऐसे में RBI विकास को बढ़ावा देने के लिए नीतिगत ब्याज दरों में कटौती जारी रख सकता है।
आप पर कैसे होगा असर?
रेपो रेट वह दर होती है, जिस पर आरबीआई बैंकों को कर्ज देता है। ऐसे में जब रेपो रेट में बढ़ोतरी होती है, तो बैंकों के लिए कर्ज महंगा हो जाता है और वो ग्राहकों के कर्ज को भी महंगा कर देते हैं। इसके उलट जब रेपो रेट में कटौती होती है, तो लोन सस्ते होने का रास्ता खुल जाता है और आपकी EMI का बोझ कुछ कम होने की संभावना बढ़ जाती है। ऐसे वक्त में जब खाने-पीने से लेकर लगभग हर चीज पर खर्चा बढ़ा है और अब एलपीजी सिलेंडर के दाम में भी 50 रुपये का इजाफा हुआ है, तो EMI के मोर्चे पर छोटी राहत भी सुकून वाली होगी।
कब-कब होती है बैठक?
RBI मौद्रिक नीति की समीक्षा के लिए हर दो महीने के अंतराल में यह बैठक करता है। मौद्रिक नीति समिति (MPC) में कुल 6 सदस्य होते हैं, जिसमें से 3 आरबीआई के होते हैं, जबकि बाकी केंद्र द्वारा नियुक्त किए जाते हैं। तीन दिनों तक चलने वाली इस बैठक में रेपो रेट सहित कई मुद्दों पर चर्चा होती। तीसरे दिन ही सुबह बैठक के निर्णयों की जानकारी साझा की जाती है।
लेकिन यहां लगेगा झटका!
रेपो रेट में कटौती से जहां लोन के मोर्चे पर लोगों को कुछ राहत मिल सकती है। वहीं, दूसरी तरफ फिक्स्ड डिपॉजिट यानी FD के मोर्चे पर उन्हें झटका भी लग सकता है। फरवरी में जब RBI ने पांच साल के अंतराल के बाद रेपो रेट में 0.25% की कटौती करके उसे 6.25% कर दिया था, तो इसके बाद बैंकों द्वारा FD पर मिलने वाले ब्याज में भी संशोधन किया गया था। प्राइवेट सेक्टर के DCB बैंक ने तुरंत 3 करोड़ रुपये से कम की FD पर ब्याज दरों में 65 बेसिस पॉइंट्स की कटौती की थी और नई दरें 14 फरवरी से लागू हो गई थीं।
क्या है इसका कनेक्शन?
बैंक फिक्स्ड डिपॉजिट पर अधिक ब्याज देकर उसे इसलिए आकर्षक बनाते हैं, ताकि लोग बैंकों में ज्यादा से ज्यादा पैसा रखें और उससे बैंक अपनी आर्थिक गतिविधियों को सुचारू रूप से चला सकें। रेपो रेट वह दर होती है, जिस पर आरबीआई बैंकों को कर्ज देता है। जब आरबीआई रेपो रेट में कटौती करता है, तो बैंक कम लागत पर धन उधार ले सकते हैं। ऐसे में बैंकों को धन आकर्षित करने के लिए उच्च रिटर्न की पेशकश की आवश्यकता नहीं रहती। इस वजह से वह FD पर ब्याज दरें कम कर देते हैं। अगर रिजर्व बैंक रेपो रेट में एक और कटौती करता है, तो इसकी भी आशंका बनी रहेगी कि बैंक FD पर ब्याज दरों को फिर से संशोधित करें।
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