Mauritius Tax Haven: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी मॉरीशस की यात्रा पर गए हैं। इस देश का भारत के साथ एक खास कनेक्शन रहा है। मॉरीशस भारत सहित दुनियाभर के पर्यटकों के लिए हॉट टूरिस्ट डेस्टिनेशन भी है। हालांकि, टैक्स हैवन देश के रूप में इसकी सबसे ज्यादा चर्चा होती है। पिछले साल अमेरिकी शॉर्ट सेलर फर्म हिंडनबर्ग ने उस समय सेबी (SEBI) की चेयरपर्सन रहीं माधबी पुरी बुच (Madhabi Puri Buch) और उनके पति धवल बुच (Dhaval Buch) पर लगाए गए आरोपों में मॉरीशस का जिक्र किया था।
क्या होते हैं टैक्स हैवन देश?
दुनिया में ऐसे कई देश हैं, जिन्हें टैक्स हैवन का दर्जा मिला हुआ है। स्विट्जरलैंड के साथ-साथ मॉरीशस भी इन देशों की लिस्ट में शामिल है। टैक्स हैवन ऐसे देशों को कहा जाता है, जहां पैसे जमा करने पर कोई टैक्स नहीं लगता या नाममात्र टैक्स लगता है। भारत के विपरीत ऐसे देशों में भारी-भरकम रकम जमा करने पर भी उसके स्रोत की जानकारी नहीं देनी होती। दूसरे शब्दों में कहें तो आपको यह बताने की जरूरत नहीं है कि इतना पैसा आया कहां से। ये देश काला धन जमा करने वाले या टैक्स चोरी करने वालों के लिए किसी स्वर्ग से कम नहीं हैं, इसलिए इन्हें Tax Haven कहा जाता है।
बुच के मामले में हुआ था जिक्र
मॉरीशस जैसे टैक्स हैवन देश टैक्स चोरों के पसंदीदा डेस्टिनेशन हैं। वे अक्सर अपने काले धन को यहां जमा करते हैं और फिर उसे वापस अपने देश ले जाकर सफेद बना लेते हैं। हिंडनबर्ग ने आरोप लगाया था कि माधबी पुरी बुच और उनके पति धवल बुच ने बरमूडा और मॉरीशस के ऑफशोर फंड्स में हिस्सेदारी रखी। हालांकि, बुच फैमिली और मॉरीशस दोनों ने ही इस आरोप को बेबुनियाद बताया था। मॉरीशस इस तरह के मामलों को लेकर चर्चा में बना रहता है।
काले धन को सफेद बनाने का जरिया
तमाम रिपोर्ट्स में कहा गया है कि मॉरीशस भारत के काले धन को सफेद बनाकर वापस भारतीय बाजार में लगाने का जरिया बना हुआ है। कई बड़े निवेशक और कंपनियां इस रूट के जरिये अपने काले धन को सफेद बना रही हैं। ऐसा कहा जाता है की ‘दोहरे कर बचाव’ करार की आड़ में मॉरीशस में फर्जी कंपनी बनाई जाती है और फिर भारत से मॉरीशस भेजे गए काले धन को भारतीय बाजार में लगाने का खेल खेला जाता है। हालांकि, सरकार ने इस दिशा में कई कदम उठाए हैं और यह पहले जितना आसान नहीं रहा है। पहले अगर आप मॉरीशस के जरिए भारत में निवेश करते थे, तो आपको केवल कंपनी के डायरेक्टर, कंपनी का पता और कंपनी की स्थापना तिथि आदि ही बतानी होती थी, लेकिन बाद में इसमें कई नए प्रावधान जोड़े गए और नियमों को सख्त बनाया गया।
सरकार ने उठाए हैं कड़े कदम
भारत और मॉरीशस के बीच एक खास समझौता है। इसके तहत दोनों ने डबल टैक्सेशन से कंपनियों को छूट दी है। कहने का मतलब है कि कंपनियां भारत या मॉरीशस में से एक ही जगह टैक्स चुकाने के लिए जिम्मेदार हैं। अब चूंकि मॉरीशस में नाममात्र टैक्स लगता है, इसलिए कंपनियां वहीं टैक्स के भुगतान को तवज्जो देती हैं। इस वजह से कई बार हिंडनबर्ग जैसे आरोपों को बल मिलता है। हालांकि, सरकार ने इस दिशा में भी कुछ कड़े कदम उठाए हैं। यदि जांच में यह पाया जाता है की किसी कंपनी ने केवल कम टैक्स के लिए ऐसा किया है, तो उसे इस छूट से महरूम कर दिया जाता है।
मॉरीशस से खूब आ रहा भारत में पैसा
शेल कंपनियों की मदद से काले धन को सफेद करने के मामले पहले भी सामने आए हैं। इसके अलावा, काले धन को सफेद करने के लिए मॉरीशस जैसे देशों में विदेशियों के साथ मिलकर कंपनियां खोली जाती हैं। फिर काले धन को शेयर बाजार में लगाया जाता है। इस तरह यह विदेशी निवेश की कैटेगरी में आ जाता है। ऐसे कई तरीके हैं, जिनके जरिए मॉरीशस जैसे देशों के माध्यम से काले धन को सफेद किया जाता है। मॉरीशस से भारत में आने वाला निवेश बढ़ा है। पिछले कुछ सालों में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) के रूप में भारत में 1,033.40 अरब अमेरिकी डॉलर का निवेश आया, जिसमें मॉरीशस रूट की हिस्सेदारी करीब 25% रही।
बढ़ते FDI से खड़े हुए कई सवाल
अप्रैल 2000 से सितंबर 2024 के दौरान भारत को मॉरीशस से 177.18 अरब अमेरिकी डॉलर बतौर निवेश मिले। 2019-20 में अह आंकड़ा 8.24 अरब डॉलर का था। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि वहां से यहां निवेश कितनी तेजी से बढ़ा है। कई एक्सपर्ट्स इस बढ़ते निवेश पर शंका जाहिर करते हैं। उनका कहना है कि मॉरीशस से इतने बड़े पैमाने पर FDI आना सवाल खड़े करता है। बता दें कि मॉरीशस को मिनी इंडिया भी कहा जाता है, क्योंकि यहां बड़ी संख्या में भारतीय रहते हैं। एक रिपोर्ट के अनुसार, इस देश में 48 प्रतिशत हिंदू आबादी है। मॉरीशस ईस्ट अफ्रीका के हिंद महासार में स्थित है।
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