Harsh Goenka On Freebies: आरपीजी ग्रुप के चेयरमैन हर्ष गोयनका ने देश में बढ़ती फ्रीबीज संस्कृति की आलोचना करते हुए इसे आर्थिक प्रगति के लिए हानिकारक बताया है। गोयनका ने कहा कि आजकल चुनावी लाभ के लिए राजनीतिक पार्टियों के बीच फ्रीबीज यानी मुफ्त में कुछ न कुछ बांटने की होड़ लगी हुई है, जो हर लिहाज से देश के आर्थिक विकास के लिए हानिकारक है।
फिसलन भरी ढलान
हर्ष गोयनका का कहना है कि दीर्घकालिक आर्थिक विकास को बढ़ावा देने के लिए आत्मनिर्भरता और सशक्तीकरण पर जोर दिया जाना चाहिए। उन्होंने एक सोशल मडिया पोस्ट में इस मुद्दे पर खुलकर अपनी राय व्यक्त की है। आरपीजी ग्रुप के चेयरमैन ने लिखा है, वोटर्स को लुभाने के लिए भारत का राजनीतिक परिदृश्य फ्रीबीज की संस्कृति से तेजी से प्रभावित हो रहा है। मुफ्त बिजली, मुफ्त राशन, मुफ्त रसोई गैस। यह प्रवृत्ति भले ही नोबल लगती हो, लेकिन यह एक फिसलन भरी ढलान है।
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In the race to gain voter favor, India’s political landscape is increasingly marred by the culture of “freebies” — free electricity, free ration, free cooking gas. While seemingly noble, this trend is a slippery slope:
---विज्ञापन---1️⃣ Redistribution Is Not Wealth Creation: Taking from the…
— Harsh Goenka (@hvgoenka) January 7, 2025
हर्ष गोयनका के 5 पॉइंट
- रीडिस्ट्रीब्यूशन वेल्थ क्रिएशन नहीं: अमीरों से लेकर गरीबों को देने से केवल क्षणिक समानता की भावना पैदा होती है, लेकिन उद्यमशीलता की प्रेरणा बाधित होती है।
- वर्क इंसेंटिव में कमी: जब बेनिफिट बिना प्रयास के मिल जाते हैं, तो लोगों में काम करने का प्रोत्साहन कम हो जाता है, जबकि करदाता हतोत्साहित महसूस करते हैं।
- अनस्टेबल फाइनेंस: आज मुफ्त में मिलने वाली चीजें कल घाटे, कर्ज या करों में वृद्धि का कारण बनती हैं।
- वेल्थ कमाई जाती है: समृद्धि उत्पादकता से आती है, लोकप्रियता से नहीं।
- लॉन्ग टर्म डैमेज: फ्रीबीज लाभों पर निर्भर समाज कार्य-संबंधी नैतिकता और महत्वाकांक्षा खो देता है, जो आर्थिक प्रगति को प्रेरित करते हैं।
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अब बदलाव का समय
हर्ष गोयनका ने कहा कि देश के आर्थिक विकास के लिए अब जरूरी कदम उठाने का समय आ गया है। हमें फ्रीबीज संस्कृति पर पुनर्विचार करना होगा। ऐसी नीतियों को बढ़ावा देना होगा, जो नागरिकों को अपनी आजीविका कमाने के लिए सशक्त बनाएं, न कि उनकी गरिमा को नष्ट करें। बता दें कि चुनावों में जनता को लुभाने के लिए राजनीतिक दल बढ़-चढ़कर मुफ्त में कुछ न कुछ बांटने की योजनाओं की घोषणा करते हैं। आर्थिक विशेषज्ञ पहले भी कई बार इस संस्कृति को देश के लिए नुकसानदायक बता चुके हैं।
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