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राष्ट्र निर्माण के मिशन में क्यों नहीं जोड़े जाते रिटायर्ड कर्मचारी?

Bharat Ek Soch: इंसान उम्र से भले ही रिटायर हो जाए, लेकिन कई बार उसका दिमाग और शारीरिक स्थिति काफी बेहतर होती है। इसलिए माना जा सकता है कि रिटायरमेंट सिर्फ एक 'सोच' है। क्यों न ऐसा हो कि हमारे देश में युवा और बुजुर्गाें के अनुभव का फायदा उठाकर उन्हें राष्ट्र निर्माण से जोड़ दिया जाए।

Edited By : Pushpendra Sharma | Updated: Aug 3, 2024 00:18
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Bharat Ek Soch News 24
भारत एक सोच।

Bharat Ek Soch: प्राचीन भारत में आश्रम व्यवस्था थी- जिसमें इंसान के जीवन को चार हिस्सों में बांटा गया। ब्रह्मचर्य, गृहस्थ, वानप्रस्थ और संन्यास आश्रम। चारों आश्रम से गुजरते हुए ही किसी इंसान का जीवन सफल माना जाता था। इसमें जीवन के हर मोड़ पर इंसान पूरी तरह सक्रिय रहता था। रिटायरमेंट जैसी कोई चीज नहीं थी। बेहिसाब धन जमा कर आखिरी सांस तक के लिए इंतजाम जैसी सोच भी नहीं थीं। पेंशन जैसी बात भी नहीं थी। ब्रह्मचर्य आश्रम में अगर ज्ञान हासिल करना मकसद था..तो गृहस्थ आश्रम में परिवार बढ़ाना और कमाना था। वानप्रस्थ आश्रम जिम्मेदारियां धीरे-धीरे अगली पीढ़ी को ट्रांसफर करने की प्रक्रिया थी, तो संन्यास आश्रम का मकसद नि:स्वार्थ भाव समाज के लिए कुछ करना था। अब आप सोच रहे होंगे कि अचानक आश्रम व्यवस्था की बात क्यों होने लगी?

युवा जोश और बुजुर्गों का अनुभव आएगा काम

दरअसल, हमारे देश में एक वर्ग ऐसा भी है- जो बहुत ही काबिल है..बहुत अनुभवी है…बहुत ही अनुशासित है। लेकिन, इस वर्ग के ज्यादातर लोग खाली बैठे हैं। उनके पास करने के लिए कुछ भी नहीं है। हम बात कर रहे हैं देश में केंद्र और राज्य सरकारों के करोड़ों रिटायर्ड कर्मचारियों और अफसरों की। पिछले साल के एक आंकड़े के मुताबिक, केंद्र सरकार के पेंशन भोगियों की संख्या 67 लाख 95 हजार से अधिक थी। जरा सोचिए इसमें से एक चौथाई को भी अगर राष्ट्र निर्माण का काम में लगा दिया जाए तो देश की तस्वीर बदलने में कितनी सहूलियत होगी? ऐसे में आज हम आपको आपको बताने की कोशिश करेंगे कि युवा जोश और बुजुर्गों का अनुभव दोनों मिलकर किस तरह भारत को 2047 से पहले ही विकसित राष्ट्र बना सकते हैं? रिटायर्ड अफसर और कर्मचारियों की क्षमता का इस्तेमाल किस तरह किया जा सकता है? बुजुर्ग आबादी किन-किन क्षेत्र में बड़े बदलाव की स्क्रिप्ट तैयार करने में मददगार साबित हो सकती है। तेजी से बदलती विश्व व्यवस्था में भारत में रिटायरमेंट की उम्र क्या होनी चाहिए? हमारे सामाजिक ताने-बाने में ऐसा क्या बदलाव आया है, जिसमें बुजुर्ग अपने लिए काम खोज रहे हैं और युवा रिटायरमेंट प्लान पर काम कर रहे हैं? आज ऐसे ही सवालों के जवाब तलाशने की कोशिश करेंगे।

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खुद को रिटायर मान लेता है इंसान

कोई भी आदमी किसी नौकरी से रिटायर होता है लेकिन सोच नहीं। देश और समाज के प्रति जिम्मेदारियों से नहीं। जरा सोचिए, एक आदमी 22-23 साल की उम्र से रोजाना सुबह 9 बजे तैयार होकर ऑफिस के लिए निकलता है और देर रात तक घर लौटता है। 35-36 साल तक रोजाना हर तरह के अनुभव हासिल करता है और अचानक 58 या 60 साल की उम्र में रिटायर कर दिया जाता है। भले ही उसका दिमाग पूरी तरह फिट हो…भले ही उसकी शारीरिक क्षमता किसी 40-45 साल के शख्स की जैसी हो। लेकिन, उसे रिटायर मान लिया जाता है और वो खुद को भी रिटायर मान लेता है। उसे रोजमर्रा के खर्च के लिए पेंशन तो मिल जाती है..लेकिन, उसके अनुभवों का फायदा देश को नहीं मिलता। क्या देश में मौजूद ऐसे लाखों अनुभवी और रिटायर्ड लोगों को विकसित भारत बनाने के मिशन से नहीं जोड़ा जा सकता है?

रिटायरमेंट की उम्र बढ़ाने की तैयारी  

पड़ोसी देश चीन में इन दिनों रिटायरमेंट की उम्र बढ़ाने को लेकर सुगबुगाहट चल रही है। इसे कई चरणों में लागू करने पर जोड़-घटाव चल रहा है । चीन में अभी पुरुषों के लिए रिटायरमेंट की उम्र 60 साल और महिलाओं के लिए 55 साल है। चूंकि चाइना के वर्कफोर्स में युवा कम होते जा रहे हैं और बुजुर्ग तेजी से बढ़ रहे हैं। वहां पेंशनभोगियों की संख्या 30 करोड़ के निशान को पार कर चुकी है। ऐसे में चाइना की कम्युनिस्ट सरकार की सोच है कि रिटायरमेंट उम्र 10 साल बढ़ाने से सरकारी खजाने पर पेंशन का बोझ कम होगा। दूसरी ओर वर्कफोर्स की कमी को पूरा किया जा सकेगा। लेकिन, भारत की परिस्थितियां दूसरी हैं। चीन से भारत की तुलना नहीं की जा सकती है। हमारे यहां दुनिया की सबसे बड़ी युवा आबादी है। जिसमें ज्यादातर के हाथ खाली हैं। लेकिन, एक बड़ा सच ये भी है कि हमारी बड़ी युवा आबादी अनस्किल्ड है। ऐसे में अनुभवी और रिटायर्ड लोगों का बेहतर इस्तेमाल देश की युवा आबादी को Skilled यानी रोजगार लायक बनाने में किया जा सकता है।

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जबरन रिटायर होना पड़ता है

अब सवाल उठता है कि रिटायरमेंट की उम्र क्या होनी चाहिए? हमारे देश में तो नौकरियों की प्रवृति के हिसाब से रिटायरमेंट के लिए अलग-अलग उम्र तय है। मतलब, फौज में जवानों के लिए रिटायरमेंट की उम्र अलग है। अफसरों के लिए पैमाना अलग है। सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट के जजों की रिटायरमेंट की उम्र अलग है। स्कूल में पढ़ाने वाले टीचर के लिए अलग, यूनिवर्सिटी में पढ़ाने वाले प्रोफेसर के लिए रिटायरमेंट की उम्र अलग। जरा सोचिए…जिस देश की अदालतों में लंबित मुकदमों का हिमालय जैसा ढेर पड़ा हो… उन्हें निपटाने में रिटायर्ड जज और वरिष्ठ वकीलों की Voluntary मदद का मैकेनिज्म तैयार करने में मंथन क्यों नहीं होता? जिस देश में क्वालिटी एजुकेशन को लेकर इतनी बड़ी-बड़ी बातें होती हैं- वहां अच्छे ट्रैक रिकॉर्ड वाले काबिल रिटायर्ड टीचर और प्रोफेसर की मदद क्यों नहीं ली जाती है? किसी राज्य में तो बारिश की कुछ बूंदों में ही करोड़ों खर्च के बाद बने ब्रिज धड़ाम हो जाते हैं। कहीं कुछ देर की बारिश में ही मिट्टी और सड़क के बीच फर्क मिट जाता है। ऐसे में सवाल उठता है कि क्या प्रोजेक्ट मॉनिटरिंग और सिस्टम से भ्रष्टाचार खत्म करने के लिए रिटायर्ड अनुभवी अफसरों की Voluntary मदद नहीं ली जा सकती है। दुनिया के विकसित देशों की तुलना में भारत में रिटायरमेंट की उम्र कम है। मसलन, अमेरिका, ब्रिटेन और आयरलैंड में रिटायरमेंट की उम्र 66 साल है। इजराइल, इटली और डेनमार्क में तो रिटायरमेंट की उम्र 77 साल है। कुछ पश्चिमी देशों का एक सच ये भी है कि ज्यादातर लोग नौकरी से रिटायरमेंट नहीं चाहते..लेकिन, उन्हें जबरन रिटायर होना पड़ता है।

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सुकून की जिंदगी की चाह

प्रोफेसर इयान रॉबर्टसन दुनिया के जाने माने न्यूरोसाइंटिस्ट और क्लिनिकल साइकोलॉजिस्ट हैं। ट्रिनिटी कॉलेज इंस्टीट्यूट ऑफ न्यूरोसाइंस से जुड़े हैं। उनका रिसर्च है कि किस तरह से दबाव इंसान को मजबूत और तेज बनाता है। साथ ही इंसानी दिमाग पर उम्र के प्रभाव का भी बहुत गहराई से अध्ययन किया। प्रोफेसर इयान के रिसर्च का एक निचोड़ ये है कि बुढ़ापा 80 साल की उम्र से शुरू होता है। इसका मतलब हुआ कि व्यक्ति की कामकाजी जिंदगी यानी एक्टिव लाइफ लंबी है। ये विचार बुढ़ापा को लेकर उस स्टेट ऑफ माइंड को चुनौती देता है- जिसमें 50 की उम्र को बुढ़ापे की दहलीज माना जाता रहा है। इसका एक इंडिकेटर दुनिया में तेजी से बढ़ी Life expectancy के आंकड़ों में भी मिलता है। लेकिन, दुनिया के साथ-साथ भारत में तेजी से बदलती आर्थिक और सामाजिक व्यवस्था के बीच युवाओं का एक ऐसा वर्ग तैयार हो रहा है- जो 35 से 40 साल की उम्र में ही रिटायरमेंट यानी सुकून की जिंदगी चाहता है।

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सोच में बदलाव की जरूरत

यूनाइटेड नेशंस पॉपुलेशन फंड की The State of world population Report 2023 में कहा गया है कि भारत की 68 फीसदी आबादी 15 से 64 साल के बीच की है। वहीं, 65 साल से ऊपर के लोगों की संख्या करीब 7 फीसदी है… जो बढ़कर 2050 तक डबल हो जाएगी। प्रधानमंत्री मोदी 2047 तक भारत को विकसित राष्ट्र बनाने के टारगेट को लेकर आगे बढ़ रहे हैं। ऐसे में एक ओर देश में अनुभवी रिटायर्ड लोगों की जमात है– जो देश के लिए 60 पार की उम्र में भी कुछ करना चाहती है। दूसरी ओर, युवाओं की एक जमात ऐसी भी तैयार हो रही है- जो 40 में ही रिटायरमेंट के बाद सुकून की जिंदगी के अर्थशास्त्र पर गुना-भाग कर रही है। 2047 तक एक और तस्वीर भी बनती दिख रही है..कहीं भारत की आजादी की 100वीं वर्षगांठ तक बुजुर्गों का एक ऐसा वर्ग न तैयार हो जाए, जिसके पास सामाजिक और आर्थिक सुरक्षा के नाम पर कुछ भी न हो। बिल्कुल खाली हाथ हो…जिसके सामने 80 साल की उम्र में भी दवा और दूसरी बुनियादी जरूरतों के लिए काम करने के सिवाय दूसरा विकल्प न हो। ऐसे में हमारे देश में रिटायरमेंट को लेकर स्टेट ऑफ माइंड और अप्रोच दोनों में बदलाव की जरूरत है।

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Edited By

Pushpendra Sharma

First published on: Aug 03, 2024 12:17 AM

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