---विज्ञापन---

Budget 2024: किस फॉर्मूले से देश में कम होगी अमीर-गरीब के बीच खाई?

Bharat Ek Soch : केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण 23 जुलाई को देश का आम बजट पेश करेंगी। इस बार मोदी सरकार के लिए बजट एक बजट पेश करना बड़ी चुनौती है, क्योंकि इसमें घटक दलों की मांगों को अनदेखी करना मुश्किल होगा। साथ ही देशवासियों की निगाहें पर बजट पर टिकी हैं।

Edited By : Deepak Pandey | Updated: Jul 21, 2024 22:09
Share :
Bharat Ek Soch
Bharat Ek Soch

Bharat Ek Soch : भारत के एक अरब चालीस करोड़ लोगों को बड़ी बेसब्री से 23 जुलाई का इंतजार है। इसी तारीख को वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण देश का आम बजट पेश करेंगी। अब आपके मन में सवाल उठ सकता है कि इसमें नया क्या है? पहली बात तो यही है कि निर्मला सीतारमण लगातार सात बार बजट पेश करने वाली देश की पहली वित्त मंत्री बन जाएंगी। इससे पहले छह बार लगातार बजट पेश करने का रिकॉर्ड मोरारजी देसाई के नाम है। दूसरी बात ये है कि 2014 के बाद पहली बार नरेंद्र मोदी की सरकार गठबंधन साझीदारों के पाये पर खड़ी है। ऐसे में निर्मला सीतारमण के सामने एक ऐसा बजट पेश करने की चुनौती है, जिसमें गठबंधन साझीदारों की मांगों की अनदेखी करना मुश्किल होगा। इसमें आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू भी हैं और बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार भी।

माना जा रहा है कि 2024 में बीजेपी की सीटें कम होने की एक बड़ी वजह युवाओं और किसानों की नाराजगी रही है। ऐसे में सवाल उठता है कि युवाओं और किसानों के लिए वित्त मंत्री के बजट भाषण में क्या होगा? वित्त मंत्री ऐसा कौन सा रास्ता निकालेंगी, जिससे देश में आर्थिक असमानता कम हो, युवाओं के लिए अधिक रोजगार के मौका पैदा हो, प्रति व्यक्ति आय में बढ़ोतरी हो। कृषि क्षेत्र में युवाओं को किस तरह से जोड़ा जा सकता है? किसान सम्मान निधि से आगे बढ़कर ऐसा क्या किया किया जाए, जिससे किसानों की आमदनी बढ़ सकें? देश के नौकरीपेशा मिडिल क्लास के चेहरे से हंसी क्यों गायब है? कौन सी चिंता दिन-रात खाए जा रही है?

---विज्ञापन---

यह भी पढे़ं : अग्निपथ स्कीम को लेकर असंतोष, सेना में भर्ती पर क्यों मचा बवाल?

सरकार की सोच का आइना होता है बजट

---विज्ञापन---

वो दौर संभवत: गया- जब हमारे देश के आम आदमी को वित्त मंत्री के बजट भाषण का इसलिए इंतजार होता था, जिससे पता चले कि उसकी रोजमर्रा की जिंदगी में इस्तेमाल होने वाली कौन-कौन सी चीजें महंगी होंगी और कौन-कौन सी चीजें सस्ती। वो दौर भी खत्म हुआ- जब लोगों को रेल बजट का इसलिए इंतजार होता था, जिससे पता चले कि कौन-कौन सी नई ट्रेनें शुरू होने वाली हैं और उसका सफर कितना आसान होगा? 2017-18 में आम बजट में ही रेल बजट को मिला दिया गया। देश, काल, परिस्थिति के हिसाब से बड़ी-बड़ी घोषणाएं होती रहती हैं। अब सवाल उठता है कि जब पूरे साल नई-नई योजनाओं की घोषणाओं का सिलसिला जारी रहता है तो फिर बजट का इंतजार क्यों? दरअसल, कोई भी बजट किसी सरकार की सोच का आइना होता है। सरकार की आर्थिक नीतियों का पथ-प्रदर्शक होता है। देश की आर्थिक सेहत का एक्सरे होता है। ऐसे में हमारे देश का सामान्य पढ़ा-लिखा युवा लगातार गुना-भाग कर रहा है कि जब देश की अर्थव्यवस्था 8 फीसदी से अधिक तेज रफ्तार से भाग रही है तो उसकी जिंदगी में इस रफ्तार का असर क्यों नहीं दिख रहा है? प्रधानमंत्री कह रहे हैं कि रोजगार के मौके पहले से बढ़े हैं तो फिर युवा सोचता है कि आखिर उसे नौकरी के लिए इतने धक्के क्यों खाने पड़ रहे हैं?

देश में आर्थिक असामनता सबसे ज्यादा

एक रिपोर्ट के मुताबिक, भारत में आर्थिक असमानता पिछले 100 साल में सबसे ज्यादा है। देश के एक फीसदी अमीरों के पास चालीस फीसदी से अधिक संपत्ति है। हमारे देश में 81 करोड़ से अधिक लोगों को हर महीने सरकार की ओर से मुफ्त अनाज दिया जाता है। क्या इसी तरह आगे बढ़ते हुए भारत 2047 तक विकसित भारत बनेगा? स्कूल में पढ़ाया जाता था कि बेरोजगारी तीन तरह की होती है- पहली Seasonal Unemployment, दूसरी Disguised Unemployment और तीसरी Structural Unemployment. ग्रामीण क्षेत्र में खासतौर से कृषि की बात होती है तो कहा जाता था कि तीन-चार महीने काम होता है, उसके बाद किसान या मजदूर खाली बैठा रहता है। अर्थशास्त्री इसे मौसमी बेरोजगारी का नाम देते हैं। लेकिन, अब शहरीकरण तेजी से बढ़ रहा है। ऐसे में बेरोजगारी को शहरीकरण के हिसाब से देखना जरूरी है। शहरों में युवाओं का एक बड़ा वर्ग ऐसा भी है – जहां मिडिल क्लास माता-पिता ने लाखों रुपये खर्च कर बच्चों को प्रोफेशनल डिग्री दिलवाई। इसके लिए बैंक से कर्ज तक लिया। लेकिन, प्रोफेशनल डिग्री के बाद भी शुरुआती दौर में उनका बच्चा हर महीने सिर्फ इतना ही कमा पाता है- जिससे उसके दफ्तर आने-जाने और जेब खर्च तक मुश्किल से निकल पाता है। शहरों में इस तरह की रोजगार वाली फौज तेजी से बढ़ रही है। इसे रोजगार कहेंगे या बेरोजगार, ये भी एक यक्ष प्रश्न है।

यह भी पढे़ं : कश्मीर में इस्लाम की एंट्री से कितना बदला सामाजिक ताना-बाना?

बिना युवा शक्ति के विकसित भारत संभव नहीं 

यू-ट्यूब, फेसबुक और इंस्टा जैसे प्लेटफॉर्म ने देश की बड़ी आबादी की आंखों में ऊंची उड़ान और लाखों रुपये की कमाई का सपना भर दिया है। हमारी सामाजिक व्यवस्था का एक बड़ा वर्ग वीडियो, शॉट्स, रील्स बनाने में व्यस्त है। इसमें से ज्यादातर रोजगार में हैं या बेरोजगार कहना बहुत मुश्किल है। शहरों में Disguised Unemployment वाली स्थिति लगातार बढ़ रही है। मतलब, अगर उन्हें इस काम से हटा भी दिया जाए तो प्रोडक्टिविटी पर कोई खास असर नहीं पड़ेगा। ऐसे युवाओं की रोजगार की स्थिति को लेकर एक खुली सोच बजट स्पीच में आनी चाहिए, क्योंकि बगैर युवा शक्ति के सही इस्तेमाल के विकसित भारत का सपना पूरा नहीं हो सकता है ।

महंगाई के बोझ में दबा है मिडिल क्लास

डायरेक्ट या इनडायरेक्ट टैक्स के तौर पर हर एक रुपये में से 63 पैसा सरकार के खजाने में जाता है। देश का सामान्य नौकरीपेशा मिडिल क्लास एक ओर महंगाई के बोझ से त्राहिमाम कर रहा है तो दूसरी ओर इनकम टैक्स की ऊंची दर लोगों की परेशानियां और बढ़ा रही हैं। ऐसे में नौकरीपेशा वर्ग चाहता है कि वित्त मंत्री बजट में इनकम टैक्स दरों में रियायत दें। फिलहाल, साढ़े सात लाख रुपये तक की कमाई पर कोई इनकम टैक्स नहीं देना होता है। माना जा रहा है कि इसे बढ़ाकर 10 लाख तक किया जा सकता है। ऐसे में टैक्स स्लैब में बदलाव के ग्रह-संयोग बने दिख रहे हैं।

बचत के नाम पर लोगों के पास कुछ नहीं

आज की तारीख में देश के ज्यादातर मिडिल क्लास परिवारों की सबसे बड़ी समस्या है बचत के नाम पर ठनठन गोपाल वाली स्थिति। दरअसल, पहले सरकारी नौकरी वालों को रिटायरमेंट के बाद पेंशन का सहारा होता था। सरकारी नौकरियां अब गिनती की बची हैं। हमारे देश में एक ऐसा वर्ग तेजी से तैयार हो रहा है, जिसे अपना खर्चा चलाने के लिए रिटायरमेंट की उम्र के बाद भी कमाना पड़ेगा। बजट में बुजुर्ग लोगों के सुरक्षित और खुशहाल जिंदगी का रास्ता भी बजट में निकालने की कोशिश होनी चाहिए। अब बात कृषि सेक्टर की। भारत की आबादी में हर दूसरा व्यक्ति कृषि क्षेत्र के भरोसे है। नेशनल सैंपल सर्वे ऑफिस (National Sample Survey Office) यानी एनएसएसओ के आंकड़ों के मुताबिक, भारत में एक किसान की औसत कमाई 10 हजार रुपया महीना से थोड़ी अधिक है। किसानों की आमदनी दोगुना करने का वादा अब तक पूरा नहीं हुआ है। देश के किसान वित्त मंत्री के भाषण में खासतौर से दो बातें सुनना चाहते हैं- पहली, पैदावार की सही कीमत की गारंटी। दूसरी- प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि के तहत साल भर में मिलने वाली 6 हजार रुपये की रकम में बढ़ोत्तरी। इन सबसे आगे बजट भाषण में ऐसी Long Term सोच के लिए बूस्टर डोज दिखना चाहिए, जिससे पढ़ी-लिखी और Skilled Youth Force agriculture sector से जुड़े। क्योंकि, पुराने ढर्रे की खेती वाली सोच से किसानों की किस्मत के बंद दरवाजे खुलना मुश्किल है।

यह भी पढे़ं : आखिर जम्मू-कश्मीर के दिल में क्या है, BJP के मिशन में कितने फूल-कितने कांटे?

जानें कैसा होना चाहिए बजट

एक अरब चालीस करोड़ लोगों की उम्मीदों पर खरा उतरना आसान नहीं होता है। अगर 2047 तक भारत को विकसित देशों की कतार में खड़ा करने की सोच के साथ बजट तैयार किया गया है तो बजट स्पीच में ऐसी नीतियों को ड्राइविंग सीट पर लाने 360 डिग्री कोशिश दिखनी चाहिए, जिससे विकास की धारा ऊपर से नीचे की ओर नहीं, नीचे से ऊपर की ओर जाए। भारत के लोग आर्थिक रूप से इतने सक्षम और सशक्त बन जाएं कि खुद-ब-खुद फ्रीबीज को ना कहने लगें। बजट स्पीच से ऐसी सोच को आकार मिलना चाहिए, जिससे लोग रोजगार और नौकरी में फर्क महसूस कर सकें। तेजी से बदलते रोजगार के स्वरूप के हिसाब से कमाई और बचत के लिए तैयार रहें। वेल्थ क्रिएटर का सम्मान होना चाहिए और उन स्पीड ब्रेकर्स को हटाने की ईमानदार कोशिश होनी चाहिए जो वेल्थ क्रिएटर के मन में हिचक पैदा करते हैं। एक जमाने में खेती-किसानी के दम पर भारत की पहचान दुनिया के नक्शे पर सोने की चिड़िया के तौर पर हुआ करती थी। अभी भी हमारे कृषि सेक्टर में बहुत संभावना है, उसे पहचानने और स्किल्ड युवा पीढ़ी को कृषि क्षेत्र से जोड़ने की जरूरत है। इसका ब्लूप्रिंट भी वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण के बजट भाषण में दिख सकता है।

HISTORY

Edited By

Deepak Pandey

First published on: Jul 21, 2024 09:58 PM

Get Breaking News First and Latest Updates from India and around the world on News24. Follow News24 on Facebook, Twitter.

संबंधित खबरें