अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस के मौके पर दुनिया के हर हिस्से से योग साधना की अजब-गजब तस्वीरें आईं। पिछले कुछ वर्षों में योग को आम आदमी ने तेजी से अपनाया है … योग साधना में अपना कल्याण देखा है। आज की भागती-दौड़ती और वर्जुअल जिंदगी में हर शख्स परेशान है। दुनिया से कनेक्शन जोड़ने के चक्कर में खुद से ही कटता जा रहा है। भीड़ के बीच भी खुद को तन्हा पाता है । ऐसे में योग का मकसद किसी इंसान के जीवन का संपूर्ण शारीरिक, मानसिक, नैतिक, आध्यात्मिक और सामाजिक विकास है। योग को Art of Living यानी जीवन जीने की कला माना जाता है। देश के भीतर नए-नए योग गुरु और ट्रेनर्स की संख्या तेजी से बढ़ रही है, जो योगासनों के जरिए बड़ी बीमारियों से छुटकारे का दावा करते हैं। ऐसे में आज समझने की कोशिश करेंगे कि योग आस्था है या उपचार? हज़ारों वर्षों से आदर्श जीवन का तरीका सीखाने वाली योग परंपरा विज्ञान की कसौटी पर कितनी खरी है? हिमालय की गुफाओं से निकलकर योग किन-किन पड़ावों से गुजरते हुए आम आदमी तक पहुंचा ? भारतीय परंपरा से निकले योग को दुनिया के कोने-कोने तक किन योगियों ने पहुंचाया ? योग ने महिलाओं के लिए किस तरह से रोजगार का बड़ा मौका पैदा किया है ? देश-दुनिया में योग का बाजार कितना बड़ा हो चुका है ? आज मैं आपको दुनिया के पहले योगी और योग की 15 हज़ार साल की यात्रा से रू-ब-रू करवाने की कोशिश करूंगी।
आदि योगी ने सप्त ऋषियों को इंसान होने का विज्ञान समझाया
माना जाता है कि योग की शुरुआत मानव सभ्यता के विकास के साथ हुई। तब न धर्म था, न जाति का बंधन, न जमीन के लिए लड़ाई-झगड़ा, न राजा, न रंक। कुदरत की चुनौतियों से लड़ते हुए इंसान अपनी तरक्की के नए रास्ते खोजने में जुटा था। ये बात होगी धर्म-आस्था, मजहब की दीवार लोगों के जहन में आने से हज़ारों साल पहले की। श्रुति परंपरा के मुताबिक, करीब 15 हज़ार साल पहले हिमालय में एक योगी पहुंचे और एक जगह स्थिर होकर बैठ गए। वो महीनों बिना हिले, बिना बोले, बिना खाए बैठे रहे। लोग उस योगी से चमत्कार की उम्मीद लगाए हुए थे। लेकिन, महीनों बीतने के बाद भी चमत्कार जैसी कोई चीज नहीं हुई। ऐसे में लोग वहां से जाने लगे। आखिर में उस योगी के सामने सिर्फ सात लोग बच गए, जो बाद में सप्त ऋषि कहलाए। वो योगी कोई और नहीं भगवान शिव थे, जिन्हें आदि योगी कहा गया। आदि योगी ने हिमालय के कांति सरोवर के किनारों पर योग का ज्ञान सप्तऋर्षियों को दिया, जिस दिन आदि योगी ने सप्त ऋषियों को इंसान होने का विज्ञान समझाया। कालचक्र के हिसाब से संभवत: वो तारीख थी – 21 जून । ये तारीख अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस के तौर पर मनायी जाती है। हिमालय की चोटियों से निकले योग के इस अद्भुत, अलौकिक ज्ञान को दुनिया के कोने-कोने में पहुंचाने का जिम्मा उठाया सप्तऋर्षियों ने। इसमें अगस्त मुनि ने भारत में योग संस्कृति का प्रचार-प्रसार किया । लेकिन, योग की शुरुआत की कहानी समझने से पहले ये देखते हैं कि अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस पर किस तरह की तस्वीरें धरती के अलग-अलग कोनों से दिखीं।
महर्षि पतंजलि के योग दर्शन के चार हिस्से हैं- समाधिपाद, साधनपाद, विभूतिपाद और कैवल्यपाद
महर्षि पतंजलि ने योग की परंपरा को व्यवस्थित और वैज्ञानिक रूप दे दिया। दरअसल, उस दौर में भारतीय परंपरा में ज्ञान को खोजने का तरीका बहुत अलग तरह का था। वैदिक परंपरा से निकले ऋषियों-मुनियों यानी तब के वैज्ञानिकों और रिसर्चरों के दिमाग में ये बात बैठ चुकी थी कि इंसान के शरीर में जो कुछ है..वहीं ब्रह्मण्ड में है। इसीलिए, उन्होंने किसी नए ज्ञान की खोज के लिए प्रयोग यानी Experiment, परीक्षण यानी Test और निरीक्षण यानी observation के लिए इंसान के शरीर को चुना। प्रयोग की सफलता और प्रमामिकता के लिए ऋर्षि-मुनियों ने किसी दूसरे को नहीं खुद को आगे किया। अपने मन को एकाग्र करके विज्ञान को आगे बढ़ाया और यही वजह है कि भारतीय दर्शन, कला और विज्ञान पर योग की छाप साफ-साफ दिखती है। महर्षि पतंजलि के योग दर्शन के चार हिस्से हैं- समाधिपाद, साधनपाद, विभूतिपाद और कैवल्यपाद।
आदि शंकराचार्य ने अखंड भारत को सांस्कृतिक रूप से जोड़ने के लिए मठों की स्थापना की
भगवान बुद्ध खुद एक बेहतर योगी थे। बौद्ध धर्म के अष्टांग के रास्ते निर्वाण यानी मोक्ष का रास्ता दिखाया गया है, जो बहुत हद तक महर्षि पतंजलि के योग के 8 सूत्रों से मिलते जुलते हैं। बौद्ध धर्म भी योग के रास्ते तन-मन से खुशहाल इंसान और शांतिपूर्ण समाज के निर्माण का रास्ता दिखाता है। बदलते कालचक्र में धर्मों के बीच भी आपसी प्रतिस्पर्धा तेजी से बढ़ने लगी।बात आज से करीब बारह सौ साल पुरानी है। उस दौर में बौद्ध धर्म लोगों को अपनी ओर तेजी से आकर्षित कर रहा था। मुस्लिम शासक भी तेजी से अपने विस्तार प्लान पर काम कर रहे थे। ऐसे में आदि शंकराचार्य ने अखंड भारत को सांस्कृतिक रूप से जोड़ने के लिए देश के चार कोनों पर मठों की स्थापना की और योग परंपरा में नई जान फूंक दी। आदि शंकराचार्य ने राज योग को कई गुना आगे बढ़ाया। उन्होंने इसे दिमाग को शांत और पवित्र करने का रास्ता बताया तो 10वीं सदी में गुरु गोरखनाख ने हठ योग को आगे बढ़ाया और कई नए तरह के आसनों को गढ़ा । उन्होंने योग को ऋषि-मुनियों और मुट्ठी भर संभ्रात लोगों से निकालकर आम लोगों के बीच पहुंचाने की कोशिश की ।
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दुनिया के कई हिस्सों में योग का ग्लैमरस रूप भी सामने आया है
आध्यात्मिक गुरु ओशो कहते थे कि योग धर्म, आस्था और अंधविश्वास से बहुत ऊपर की चीज है। यह बिल्कुल वैज्ञानिक है जिसे प्रयोग की कसौटी पर कसा जा सकता है..वो योग को जिंदगी जीने की कला और बीमारियों को दूर रखने का उपाय मानते थे। ओशो की सोच थी कि धर्म लोगों को एक दायरे में बांधता है और योग लोगों को हर तरह के दायरे से आजाद करता है। शायद, ये योग से इंसान की जिंदगी में होनेवाले चमत्कार और बदलावों का ही कमाल है कि दुनिया के सभी बड़े धर्मों में इसकी छाप दिखती है। भले ही नाम कुछ भी दिया गया हो। यहूदी धर्म हो या पारसी, ईसाई धर्म हो या इस्लाम, सभी योग से मिलती-जुलती मुद्राओं और प्रक्रियाओं में अपने लोगों की तरक्की और खुशहाली देखते हैं। कुछ मुस्लिम लेखक योगासन और नमाज में फर्क नहीं देखते। नमाज अदा करने की मुद्रा को वज्रासन के बहुत करीब देखते हैं । सिख धर्म का कीर्तन, जप और अरदास भी योग का ही रुप है। बदलते वक्त के साथ योग भी बहुत हद तक बदला है। दुनिया के कई हिस्सों में योग का ग्लैमरस रूप भी सामने आया है…योग को कुदरत के आंचल से निकालकर स्डूटियो में ले जाने का कामयाब प्रयोग भी हुआ।
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साल 2023 में योग के वैश्विक बाजार का आकार करीब 115 अरब डॉलर था
मानव सभ्यता के कई पड़ावों से गुजरते हुए योग अब पूरी दुनिया के सामने नए रूप में है। महर्षि पतंजलि ने योग के जो सूत्र लिखे, उसे समय-समय पर योग गुरुओं ने आगे बढ़ाया। नए आसनों के आविष्कार हुए लेकिन, पिछले 100 साल में भारतीय योग पूरी दुनिया में पहुंच गया। ये आधुनिक योग गुरुओं का ही कमाल है, जिन्होंने योग को मुट्ठीभर लोगों से निकालकर आम आदमी के बीच पहुंचा दिया। आम आदमी के बीच योग के पहुंचने के साथ ही बाज़ार को इसमें बड़ी संभावना दिखने लगी। एक अनुमान के मुताबिक, साल 2024 से 2032 के बीच योग से जुड़ा ग्लोबल मार्केट 9% सालाना की दर से बढ़ सकता है। एक स्टडी के मुताबिक, साल 2023 में योग के वैश्विक बाजार का आकार करीब 115 अरब डॉलर का था। जिसके 2032 तक बढ़कर 250 अरब डॉलर से अधिक होने की भविष्यवाणी की जा रही है। योग सिखाने का कारोबार पश्चिमी देशों से निकलकर अब भारत के शहर-शहर तेजी से फैल रहा है। भारत से निकली योग परंपरा आज की तारीख में अपने बदले कलेवर के साथ पूरी दुनिया को स्वस्थ्य तन और खुशहाल मन का रास्ता दिखा रही है। ये एक ऐसा तरीका है, जो गरीब से गरीब आदमी के बिना रुपये खर्च किए बीमारियों से दूर रखने का रास्ता दिखाती है । मुश्किल से मुश्किल चुनौतियों से निपटने के लिए इंसान को दिमागी और भावनात्मक रूप से मजबूत बनाती है।