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Horoscope: कुंडली में क्या है योगिनी दशा का महत्व, जानें इसके शुभ और अशुभ प्रभाव

Yogini Dasha In Horoscope: वैदिक ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, कुंडली में योगिनी दशा का बहुत ही ज्यादा महत्व है। मान्यता है कि यदि कुंडली में योगिनी दशा के बिना सटीक भविष्यवाणी करना मुश्किल होता है। तो आज इस खबर में योगिनी दशा के बारे में विस्तार से जानेंगे।

Edited By : Raghvendra Tiwari | Updated: May 20, 2024 10:37
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Yogini Dasha

Yogini Dasha In Horoscope: ग्रंथों और वेदों में ज्योतिष विद्या को नेत्र का स्थान दिया गया है। ज्योतिष विद्या के अनुसार, किसी भी जातक की कुंडली देखकर उसके भविष्य के बारे में बताया जा सकता है। बता दें कि ज्योतिष विद्या में जीवन का निर्धारण करने के लिए कई तरह की पद्धतियां सुनिश्चित की गई है। जिसे दशा के नाम दिया जाता है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, दशा के बिना किसी भी व्यक्ति की कुंडली देखना मुश्किल होता है।

इसमें विंशोत्तरी, अष्टोत्तरी, चर व योगिनी दशाओं को शामिल किया गया है। इस दशाओं के सहयोग से ही वर्तमान और भविष्य के बारे में बताया जाता है। आज इस खबर में योगिनी दशा के बारे में जानने वाले हैं। आखिर योगिनी दशा क्या है, कुंडली में इसका महत्व क्या है और इसका जीवन पर क्या प्रभाव पड़ता है।

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क्या है योगिनी दशा

वैदिक ज्योतिष शास्त्र के अनुसार,योगिनी दशा का निर्माण स्वयं देवों के देव महादेव ने बनाई हुई हैं। इस दशा के प्रभाव से मानव जीवन प्रभावित होती है। इसलिए कुंडली में योगिनी दशाओं का महत्वपूर्ण स्थान दिया गया है। मान्यता है कि योगिनी दशा के बिना कुंडली में देखना असफल माना गया है। क्योंकि इसके बिना सटीक भविष्यवाणी नहीं की जा सकती है। ज्योतिषियों के अनुसार, योगिनी दशा आठ (8) प्रकार की होती है। जो इस प्रकार हैं- मंगला, पिंगला, धान्या, भ्रामरी, भद्रिका, उल्का, सिद्ध और संकटा।

कौन हैं योगिनी दशा के स्वामी

वैदिक ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, योगिनी दशा के सभी प्रकार के अपना-अपना स्वामी ग्रह है। तो आइए जानते हैं कि दशा के कौन से स्वामी ग्रह हैं।

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क्र. स.  दशा स्वामी ग्रह
1. मंगला चन्द्र ग्रह
2. पिंगला सूर्य ग्रह
3. धान्या गुरु ग्रह
4. भ्रामरी मंगल ग्रह
5. भद्रिका बुध ग्रह
6. उल्का शनि ग्रह
7.  सिद्धा शुक्र ग्रह
8. संकटा राहु ग्रह

योगिनी दशा का प्रभाव

मंगला दशा- वैदिक ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, मंगला योगिनी दशा कुंडली में एक साल तक की होती है। यदि जिस कुंडली में मंगला दशा का प्रभाव रहता है वह व्यक्ति सफलता प्राप्त कर लेता है। साथ ही यश, धन और अच्छे कार्यों में लगे रहता है।

पिंगला दशा- पिंगला दशा कुंडली में 2 वर्ष की होती है। मान्यता है कि कुंडली में इस दशा के होने से मानसिक तनाव, कारोबार में हानि और सभी तरह की बीमारियों से मुक्ति मिल जाती है।

धान्या दशा- वैदिक ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, कुंडली में धान्या दशा 3 वर्ष का होती है। इस दशा के शुभ प्रभाव से राजकीय कार्यों में सफलता मिलती है।

भ्रामरी दशा- ज्योतिषियों के अनुसार, भ्रामरी दशा कुंडली में करीब 4 वर्ष तक रहती है। इस दशा के होने से कारोबार में हानि, कर्ज की चिंता और अशुभ यात्रा का योग बन जाता है।

भद्रिका दशा- ज्योतिषियों के अनुसार, भद्रिका दशा कुंडली में 5 वर्ष तक रहती है। कुंडली में इस दशा के होने से सुंदर स्त्री और भौतिक सुख की प्राप्ति होती है।

उल्का दशा- उल्का दशा एक तरह के परेशान करने वाली दशा होती है। कुंडली में इस दशा का प्रभाव 6 वर्ष तक रहता है। मान्यता है कि इस दशा के होने से शत्रु, मानहानि, कोर्ट केस और पारिवारिक कष्ट जैसी समस्याएं आती हैं।

सिद्धा दशा- सिद्धा दशा बुद्धि, धन और कारोबार में वृद्धि दिलाती है। यह कुंडली में करीब 7 वर्ष तक रहती है।

संकटा दशा- संकटा दशा कुंडली में 8 वर्ष तक की होती है। कुंडली में इस दशा के होने से बल, कारोबार, धन और परिवार संबंधित समस्याएं उत्पन्न करती हैं।

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डिस्क्लेमर: यहां दी गई जानकारी ज्योतिष मान्यताओं पर आधारित हैं और केवल जानकारी के लिए दी जा रही है। News24 इसकी पुष्टि नहीं करता है।

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Written By

Raghvendra Tiwari

First published on: May 20, 2024 10:37 AM

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