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भाजपा ने UP के इन 7 दिग्गजों को ही क्यों भेजा राज्यसभा, पढ़ें इनसाइड स्टोरी

Rajya Sabha 2024 UP Candidates BJP List: राज्यसभा चुनाव 2024 के लिए भाजपा ने उत्तर प्रदेश से अपने उम्मीदवारों की सूची जारी की है, जानें किस-किस के बहाने भाजपा ने कौन-कौन से जातीय समीकरण बनाए।

Edited By : Khushbu Goyal | Updated: Feb 13, 2024 15:55
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BJP Lok Sabha Election 2024
भाजपा ने जारी की छठी लिस्ट

Rajya Sabha 2024 UP Candidates BJP List (परवेज अहमद, लखनऊ): लोकसभा चुनाव 2024 की डुगडुगी से ठीक पहले भाजपा ने यूपी कोटे से 7 राज्यसभा प्रत्याशियों के चयन में अति पिछड़ों को साधने पर फोकस किया। राजपूत समाज में पकड़ और मजबूत करने का दाव चला। ब्राह्मण समाज से एक प्रत्याशी देकर दलीय चेहरे की कॉस्मेटिक रंगत बेहतर करने का प्रयास किया है। 25 फरवरी को होने वाले राज्यसभा चुनाव में अगर यूपी कोटे के सभी सात चेहरों से स्पष्ट है कि जाति की राजनीति से गुरेज करने का दावा करने वाली भाजपा ने जातीय समीकरण साधने पर ही फोकस रखा है।

भाजपा ने किया जाटों को साधने का प्रयास

लंबे समय से सपा, कांग्रेस के साथ राजनीतिक पेंगे बढ़ा रहे रालोद अध्यक्ष जयंत चौधरी को भाजपा ने एनडीए का हिस्सा बनाकर पश्चिमी उत्तर प्रदेश के जाट वोटों को साधने का प्रयास किया, पर लंबे समय से भाजपा का समर्थन करते आ रहे जाट की नाराजगी के खतरे को भी तेजवीर सिंह के जरिये दूर करने का प्रयास किया है। तेजवीर भाजपा के शुरूआती दौर के नेता हैं और जाट समाज में उनकी पकड़ का अंदाजा जाट प्रभावी मथुरा संसदीय सीट से तीन बार की जीत भी है। वह इस समय  कोआपरेटिव बैंक के अध्यक्ष भी हैं। ऐसे में उनके राज्यसभा जाने से जाट समाज को भाजपा से जोड़े रखने में दुश्वारी नहीं खड़ी होगी।

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पिछड़ी और अति पिछड़ी जातियों को साधने का प्रयास

इससे इतर भाजपा ने अमरपाल मौर्य, डॉ.संगीता बलवंत और आरपीएन सिंह के जरिये पिछड़े और अति पिछड़ी जातियों को साधने का प्रयास किया है। वर्ष 2011 की जनगणना के मुताबिक और राजनीतिक दलों के मौजूदा डेटा के मुताबिक पूर्वांचल में मछुवारा समाज में आने वाली बिन्द जाति के तीन से चार प्रतिशत वोट हैं। यह समाज अब तक पूर्वांचल में मार्शल कौमों ( ठाकुर, मुसलमान, यादव) आदि को वोट देते रहे हैं। संगीता के जरिये भाजपा ने इन जाति के वोटों को साधने का प्रयास किया है। प्रयागराज से पूर्वांचल की दिशा में मौर्य समाज की आबादी भी 6 प्रतिशत के आसपास आंकी जाती है, इस मतों पर दावेदारी के लिए जन अधिकार मंच के नेता बाबू सिंह कुशवाहा लंबे समय से जन जागरण यात्रा पर हैं। दूसरे प्रभावी नेता स्वामी प्रसाद मौर्य समाजवादी पार्टी की नुमाइंदगी कर रहे हैं, इत्तिफाक से डलमऊ से शुरू होकर पूर्वांचल तक प्रभाव जमाने का प्रयास कर रहे हैं।

राजपूतों को साधने के लिए भाजपा ने खेला दाव

ऐसी परिस्थितियों में भाजपा ने अपने डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य की पैरवी पर अमरपाल मौर्य को राज्यसभा भेजकर इस समाज को सत्ता में ज्यादा से ज्यादा हिस्सेदारी देने का संदेश दिया है। इससे इस वर्ग के मतदाताओं को साधने में भाजपा को मदद मिल सकती है। आरपीएन सिंह के जरिये भाजपा पूर्वांचल में कूर्मि मतदाताओं को साधने का दाव चला है। वैसे भाजपा के पास स्वतंत्रदेव सिंह, पंकज चौधरी, संतोष गंगवार, आरके पटेल जैसे कदावर कूर्मि नेता हैं ऊपर से अपना दल सोनेलाल की अनुप्रिया पटेल का साथ भी है। फिर भाजपा ने आरपीएन सिंह के जरिये कूर्मि मतदाताओं को सीधे नेतृत्व और हिस्सेदारी देने का संदेश भी दिया है। चंदौली के साधना सिंह के जरिये भाजपा ने राजपूत समाज में संतुलन का प्रयास किया है क्योंकि हाल के दिनों में सुशील सिंह, बृजेश सिंह, धनंजय सिंह, वीरेन्द्र सिंह मस्त जैसे राजपूत नेता राजनीतिक भागीदारी के लिये नये दाव चलने का प्रयास कर रहे हैं। भाजपा ने साधना सिंह को राज्यसभा भेजकर इस दिशा में संतुलन साधने का प्रयास किया है। भाजपा इससे पहले भी दर्शना सिंह को राज्यसभा भेजकर राजपूतों को साधने का दाव चल चुकी है।

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ब्राह्मण समाज के शख्स को भी दिया टिकट

और डॉ.सुधांशु त्रिवेदी यूं तो ब्राह्मण चेहरा हैं लेकिन जमीनी ब्राह्मणों के बीच उनकी प्रभावी भूमिका नहीं दिखती है। अलबत्ता, संचार माध्यमों के जरिये भाजपा की इमेज और पार्टी का पक्ष रखने में उनकी भूमिका पर सवाल नहीं उठाया जा सकता है। आने वाले दिनों में भाजपा को लोकतांत्रिक समर में अगर संतुलन साधने की आवश्यकता हुई तो वह ब्राहम्णों से ही होगी। एक कद्दावर ब्राह्मण नेता ने नाम न छापने की शर्त पर कहा कि, भाजपा अब सिर्फ पिछड़ों की पार्टी होती जा रही है। उसमें ब्राह्मणों का स्थान नहीं है। भागवान श्रीराम के नाम के चलते ही ब्राह्मण अभी भाजपा के साथ है, लेकिन उसमें झटपटाहट है। आखिर भाजपा ब्राहम्णों के कॉस्मेटिक चेहरों पर दाव क्यों लगा रही है, इसका जवाब उसे आने वाले दिनों में देना होगा। भाजपा प्रत्याशियों को समग्र दृष्टि में देखें तो जाति के स्थान पर अमीर गरीब की राजनीतिक बात करने वाले प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की भाजपा ने राज्यसभा के चुनाव में जातीय संतुलन बनाते ही नजर आ रही है।

प्रत्याशियों का प्रोफाइल

डॉ.सुधांशु त्रिवेदी: यूं तो भाजपा के प्रवक्ता हैं। लेकिन कम लोग जानते हैं कि वह लखनऊ के अब्दुल कलाम तकनीकी विश्वविद्यालय की संस्था आईईटी की मेकेनिकल विभाग में प्राध्यापक हैं। उन्हें देश के रक्षामंत्री व लखनऊ के सांसद राजनाथ सिंह का बेहद करीबी माना जाता है। सुधांशु जनवरी 2001 से 2002 तक यूपी के तत्कालीन मुख्यमंत्री राजनाथ सिंह के सूचना सलाहकार थे। जाति से ब्राहम्ण सुधांशु को यूं तो जनाधार वाला नेता नहीं माना जाता, लेकिन मीडिया जगत में गहरी पैठ के चलते वह भाजपा के वैचारिक लाइन को बढ़ाने में सफल रहे हैं। भाजपा ने पहली बार उन्हें अक्बटूर 2019 में राज्यसभा भेजा था। अब दूसरी बार वह राज्यसभा जा रहे हैं। भाजपा के जिन नौ सांसदों को अप्रैल में रिटायर होना है, उनमें सुधांशु त्रिवेदी भी हैं, वह इकलौते सदस्य हैं जिन्हें भाजपा रिपीट कर रही है।

आरपीएन सिंह : कांग्रेस के राजनीति दौर में वह राहुल गांधी की सखा मंडली के एक सदस्य थे। 2009 में कुशीनगर संसदीय सीट से कांग्रेस के टिकट पर सांसद निर्वाचित हुये और मनमोहन सरकार में गृह राज्य मंत्री भी बने। वह कांग्रेस के झारखंड, छत्तीसगढ़ के प्रभारी सचिव भी रहे। आरपीएन सिंह को यूं तो राजा पडरौना का लकब हासिल है लेकिन वह कूर्मि जाति से आते हैं। इस जाति के प्रभावशाली लोगों में उनकी पकड़ भी है। 2019 में वह भाजपा में शामिल हुये थे, उसी समय से उन्हें राज्यसभा भेजे जाने की चर्चा थी, मगर वह खामोशी से अपनी राजनीति करते रहे है। उन्हें गैरविवादित नेता माना जाता है। अब भाजपा ने उन्हें राज्यसभा का प्रत्याशी बनाकर उत्तर प्रदेश की राजनीति में अहम भूमिका निभाते आ रहे रडवाड़ों के साथ पूर्वांचल के कूर्मि वोटों को भी साधने का दाव चला है।

अमरपाल मौर्य : राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के बैकग्राउंड के नेता हैं। प्रचारक रहे हैं। एक दौर में उन्हें भाजपा की फायर ब्रांड नेता साध्वी उमा भारती और विहिप के अशोक सिंघल का भरोसेमंद माना जाता था। यूपी के उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य जब भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष बने तो वह उन्हें मुख्यधारा में लाये थे। उन्हें प्रदेश महासचिव का दायित्व दिया गया था। केशव मौर्य की पैरवी पर ही उन्हें 2022 में रायबरेली के ऊंचाहार से विधानसभा से प्रत्याशी बनाया गया था।  हालांकि, सपा प्रत्याशी से चुनाव हार गये थे। इसके बाद भी वह संगठन के कार्यों में लगे रहे। राज्यसभा के प्रत्याशियों के चयन के दौरान केशव मौर्य ने ही उनके नाम की पैरवी की थी जिसे भाजपा संसदीय बोर्ड ने महत्व भी दिया।

तेजवीर सिंह: यह भगवान कृष्ण की जन्मभूमि के रहने वाले जाट नेता हैं। जब जाट समाज चौधरी चरण सिंह के साथ था। रालोद के अजित सिंह जाट समाज को गोलबंद कर उनका नेतृत्व कर रहे थे, तब तेजवीर सिंह भाजपा के लिये समाज को एकजुट करने का प्रयास में लगे रहे। जिसके चलते वह 1996, 1998 और 1999 में लगातार भाजपा से लोकसभा सांसद चुने गये। भाजपा के जिलाध्यक्ष का दायित्व भी संभाला और 2018 में यूपी को-ऑपरेटिव बैंक लिमिटेड के चेयरमैन चुने गये थे। अब रालोद के साथ गठबंधन के बाद भाजपा के साथ चला आ रहा जाट वोटर खुद को उपेक्षित न महसूस करे इस समीकरण को साधने के लिए नेतृत्व ने तेजवीर को राज्यसभा भेज कर संतुलन बनाने का प्रयास किया है।

डॉ. संगीता बलवंत : समाजवादी, कम्युनिष्ट और बसपाई राजनीति की उवर्रक जमीन, जहां एक माफिया भी राबिनहुड बनकर राजनीति करते हैं, उस गाजीपुर में संगीता बलवंत नीला झंडा-हाथी निशान के साथ भाजपा में आई। 2017 में भाजपा का झडां उठाया। इसी साल भाजपा ने उन्हें गाजीपुर सदर से प्रत्याशी बनाया और वह विधायक चुनी गई थी। अति पिछड़े खासकर बिन्द जाति के लोगों ने गोलबंद होकर उन्हें वोट दिया था। 2021 में योगी आदित्यनाथ ने अंतिम समय में उन्हें मंत्रिमंडल में राज्यमंत्री के रूप में शामिल किया था। 2022 में डॉ. संगीता बलवंत इसी सीट से चुनाव हार गयी थी। पीएचडी डिग्रीधारक संगीता को आक्रामक नेता माना जाता है, भाजपा में वह उप मुख्यमंत्री केशव मौर्य और कश्मीर के लेफ्टीनेंट गर्वनर मनोज सिन्हा का करीबी माना जाता है। उन्हें प्रत्याशी बनाने में केशव, मनोज ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। संगीता के पिता स्व. रामसूरत बिंद रिटायर्ड पोस्टमैन थे। छात्र जीवन से ही वह राजनीति में सक्रिय हैं। संगीता बलवंत के राजनीतिक करियर की शुरुआत बासपा के साथ हुई थी। 2014 लोकसभा चुनाव में मनोज सिन्हा ने इन्हें भाजपा में शामिल कराया था।

नवीन जैन: आगरा के पूर्व महापौर रहे हैं। उनका राजनीतिक सफर पार्षद के चुनाव से हुआ था। वह बड़े व्यापारी भी हैं। जिसके प्रभाव में वह नगर निगम सदन में डिप्टी मेयर चुने गए। इसके बाद वह भाजपा की सक्रिय राजनीति में कूद गये। पार्टी ने उन्हें ब्रज क्षेत्र के सह कोषाध्यक्ष और बाद में प्रदेश में सह कोषाध्यक्ष बनाया। 2017 में नवीन भाजपा से आगरा के महापौर चुने गए। हालांकि वह कभी आंदोलन और संघर्ष के लिये नहीं जाने जाते लेकिन भाजपा में जातीय संतुलन साधने के पैमाने पर फिट नजर आते हैं।

साधना सिंह: प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी में प्रभाव रखने वाली भाजपा नेत्री हैं। उन्हें फाइटर स्वभाव का नेता माना जाता है। मुगलसराय क्षेत्र में खासी प्रभावी साधना भारतीय जनता पार्टी की विधायक रह चुकी हैं। वह भाजपा महिला मोर्चा चंदौली की अध्यक्ष रही। भाजपा की कार्यसमिति में भी सदस्य के रूप में उन्हें स्थान मिलता रहा है। साधना सिंह जिला उद्योग व्यापार मंडल चंदौली उत्तर प्रदेश की अध्यक्ष हैं। उन्हें प्रत्याशी बनाकर भाजपा ने वाराणसी, चंदौली, मुगलसराय, मिर्जापुर में तेवर दिखा रहे राजपूत नेताओं के बीच संतुलन साधने का प्रयास किया गया है।

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Written By

Khushbu Goyal

First published on: Feb 13, 2024 02:39 PM

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