Unnao Rape Case: उन्नाव रेप केस मामले में मुख्य आरोपी और पूर्व बीजेपी विधायक कुलदीप सिंह सेंगर को हाल ही में दिल्ली हाई कोर्ट ने सशर्त जमानत दे दी थी, जिसे लेकर देशभर में बवाल मचा हुआ है. अब कुलदीप सिंह सेंगर को लेकर सीबीआई ने हाई कोर्ट के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील की है. इस मामले पर सुनवाई के लिए सुप्रीम कोर्ट भी तैयार हो गया है और मुख्य न्यायाधीश (CJI) सूर्यकांत की अध्यक्षता वाली तीन जजों की बेंच सोमवार को सीबीआई की अपील पर विचार करेगी.
कुलदीप सेंगर को हुई है उम्रकैद की सजा
गौरतलब है कि कुलदीप सेंगर को 2017 के उन्नाव दुष्कर्म मामले में उम्रकैद की सजा सुनाई गई थी. CBI की तरफ से अपील में कहा गया कि हाई कोर्ट का यह फैसला कानूनी दृष्टि से गलत और पीड़िता की सुरक्षा के लिए खतरनाक है. CBI ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि हाई कोर्ट ने इस मामले में यह कहकर गलती की कि एक विधायक POCSO एक्ट की धारा 5(c) के तहत ‘पब्लिक सर्वेंट’ की परिभाषा में नहीं आता. एजेंसी का तर्क है कि यह निष्कर्ष कानून की गलत व्याख्या पर आधारित है.
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CBI का कहना है कि POCSO एक्ट को स्पष्ट रूप से देखा जाए तो यह साफ है कि ‘पब्लिक सर्वेंट’ का अर्थ सिर्फ सरकारी कर्मचारी नहीं, बल्कि हर वह व्यक्ति है जो अपने अधिकार, राजनीतिक प्रभाव या पद का इस्तेमाल किसी बच्चे के शोषण के लिए करता है. कुलदीप सेंगर उस समय विधायक थे, जो एक संवैधानिक पद है. जिसके साथ शक्ति और जनता का भरोसा दोनों जुड़े हैं. ऐसे में उन्हें पब्लिक सर्वेंट की श्रेणी से बाहर रखना कानूनी रूप से अनुचित है.
रिहाई से पीड़ित की सुरक्षा को खतरा
CBI ने अदालत से कहा है कि अगर सेंगर को रिहा किया जाता है तो यह पीड़ित पक्ष की सुरक्षा के लिए गंभीर खतरा होगा. एजेंसी ने जोर देकर कहा कि सेंगर बेहद प्रभावशाली व्यक्ति हैं, जिनके पास धन और बाहुबल दोनों हैं, और जमानत मिलने पर वह पीड़िता या उसके परिवार को नुकसान पहुंचा सकते हैं. CBI ने यह भी तर्क दिया कि बच्चों के साथ यौन शोषण जैसे गंभीर अपराधों में सिर्फ लंबा समय जेल में बिताना, किसी आरोपी को जमानत या सजा निलंबन का हकदार नहीं बनाता.
हाई कोर्ट ने जरूरी फैक्ट्स को किया नजरअंदाज
जांच एजेंसी ने सुप्रीम कोर्ट से कहा कि हाई कोर्ट ने अपने आदेश में सेंगर के आपराधिक इतिहास को और इस फैसले से लोगों के न्याय व्यवस्था में भरोसे पर पड़ने वाले असर को नजरअंदाज किया है. CBI का यह भी कहना है कि उम्रकैद की सजा पाए किसी व्यक्ति की सजा को निलंबित तभी किया जा सकता है जब अदालत को पहली नजर में यह लगे कि उस पर लगे आरोप साबित नहीं होते. सेंगर के मामले में ऐसा नहीं है, इसलिए हाई कोर्ट का निर्णय कानूनी दृष्टि से टिकाऊ नहीं है.










