---विज्ञापन---

राजस्थान

‘राजनीति में मौसम बदलते देर नहीं लगती…’, वसुंधरा राजे का भावुक बयान, विरोधियों को दिया ये मैसेज

Rajasthan politics: राजस्थान की पूर्व सीएम वसुंधरा राजे अपने बयानों से सियासी पारा बढ़ा देती है। अजमेर में उन्होंने कार्यक्रम को संबोधित करते हुए कहा कि सांवरलाल जाट ने मरते दम तक मेरे साथ थे। उन्होंने कभी मेरा साथ नहीं छोड़ा। ऐसे में आइये जानते हैं उनके इस बयान के सियासी मायने।

Author Written By: kj.srivatsan Author Edited By : Rakesh Choudhary Updated: Jul 7, 2025 13:43
Vasundhara Raje latest news
पूर्व सीएम वसुंधरा राजे (Pic Credit-Social Media X)

Vasundhara Raje latest news: राजस्थान की पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे इन दिनों न सिर्फ सार्वजनिक मंचों पर ज्यादा सक्रिय दिख रही हैं, बल्कि हर मौके पर अपने पुराने सहयोगियों को याद कर अपने राजनीतिक संकेत भी दे रही हैं। अजमेर में सांसद रहे स्वर्गीय सांवरलाल जाट की प्रतिमा अनावरण कार्यक्रम के दौरान उनका एक भावुक बयान राजनीतिक हलकों में चर्चा का विषय बन गया है।

सांवरलाल जाट मरते दम तक मेरे साथ थे

कार्यक्रम के दौरान जब वसुंधरा राजे मंच पर आईं, तो उन्होंने कहा — “वे (सांवरलाल जाट) मरते दम तक मेरे साथ थे। उन्होंने कभी भी राजनीतिक फायदे या नुकसान के हिसाब से अपना पाला नहीं बदला। आज जब मंच पर उनकी प्रतिमा देखती हूं, तो लगता है कि उन्होंने कभी साथ छोड़ा ही नहीं। यह वाक्य न सिर्फ सांवरलाल जाट को श्रद्धांजलि था, बल्कि उनके राजनीतिक जीवन से हटते पुराने साथियों के लिए एक संदेश भी।

---विज्ञापन---

भैरोंसिंह शेखावत ने मुझे सींचा

राजे ने अपनी शुरुआती राजनीति को याद करते हुए बताया कि किस तरह राजस्थान के तीन बार मुख्यमंत्री रहे भैरोंसिंह शेखावत ने उन्हें धौलपुर से विधानसभा और फिर झालावाड़ से लोकसभा चुनाव लड़वाया। वसुंधरा राजे यह बताना भी नहीं भूलती कि जब उन्होंने बिना बताए मंच से घोषणा कर दी थी कि वे झालावाड़ से लोकसभा चुनाव लड़े। उस वक्त वो घबरा गई थी, रोने लगी थी। मैंने अपनी मां (राजमाता) को फोन किया और कहा कि मुझे तो ये जगह भी नहीं पता कि कहां है। लेकिन बाबोसा (शेखावत) ने कहा कि सब इंतजाम कर दिया गया है— तुम्हें जाना ही होगा। वसुंधरा खुद कहती हैं कि अगर वह उस समय वह जोखिम नहीं लेतीं, तो शायद मुख्यमंत्री नहीं बन पाती।

डॉ. दिगंबर सिंह: संकटमोचक मंत्री

राजे ने इसी कार्यक्रम में अपने कैबिनेट सहयोगी रहे डॉ. दिगंबर सिंह को भी याद किया। दरअसल, साल 2007 में जब राजस्थान गुर्जर आंदोलन की आग में जल रहा था, तब उन्होंने दिगंबर सिंह को आंदोलनकारियों से बातचीत की जिम्मेदारी सौंपी थी। 9 महीनों की बातचीत के बाद आंदोलन खत्म हुआ और दिगंबर सिंह को ‘संकटमोचक मंत्री’ कहा जाने लगा। खुलकर वसुंधरा कहती हैं कि वे न सिर्फ मेरे साथी थे, बल्कि सच्चे मध्यस्थ और नीति निर्माता भी थे।” लेकिन अब वो चेहरे नहीं रहे, जो हर मुश्किल में साथ खड़े थे”

---विज्ञापन---

शायद यही कारण है कि राजे ने आगे कहा— भैरोंसिंह शेखावत, दिगंबर सिंह और सांवरलाल जाट अब नहीं हैं। लेकिन अगर होते, तो मेरे साथ कंधे से कंधा मिलाकर खड़े होते। अब राजनीति में रिश्तों की गहराई नहीं बची है। चेहरों पर कई चेहरे हैं। इस मौके पर उन्होंने ‘X’ (पूर्व ट्विटर) पर भी लिखा—मौसम और इंसान कब बदल जाए, भरोसा नहीं। राजनीति में आजकल एक चेहरे पर कई चेहरे लगा लिए जाते हैं, पर प्रो. जाट ऐसे नहीं थे। वे मरते दम तक मेरे साथ रहे।

संकेत किसके लिए थे?

राजनीतिक जानकार मानते हैं कि वसुंधरा राजे के ये बयान सिर्फ श्रद्धांजलि नहीं हैं, बल्कि मौजूदा भाजपा नेतृत्व और उनके उन पुराने साथियों को भी एक संदेश हैं, जिन्होंने हाल के वर्षों में उनसे दूरी बना ली है। जब कभी राजस्थान की राजनीति में चुनावी समीकरण बनते थे , तब वसुंधरा राजे के पुराने साथियों की लाइन उनके सिविल लाइंस बंगले तक लगी रहती थी। लेकिन अब नजारा बदल गया है।उनके बंगले पर अब सन्नाटा ज्यादा नजर आता है।

हाईकमान ने ऐसे किया साइडलाईन

इसकी बड़ी शुरुआत साल 2023 के विधानसभा चुनावों में साफ देखने को मिली थी। भाजपा ने 2023 विधानसभा चुनाव में वसुंधरा को चेहरा नहीं बनाया। यहां तक की बीजेपी दफ्तर के बाद लगे बड़े-बड़े होर्डिंग्स और पोस्टरों में से उनकी तस्वीर हटा दी गई। उनके करीबी माने जाने वाले नेताओं को टिकट से वंचित कर दिया गया। वहीं मुख्यमंत्री पद की दौड़ में भी राजे को दरकिनार कर भजनलाल शर्मा को आगे कर दिया गया।

यही नहीं, लोकसभा चुनाव में भी उन्हें कोई बड़ी जिम्मेदारी नहीं दी गई। राजनीति तो संकेतन की मेहरबान होती है जब उनके आगे पीछे घूमने वाले छोटे-बड़े तमाम नेताओं ने हवा की दिशा बदलते देखी तो उन्होंने भी अपना रुख बदलना ही मुनासिब समझा। जिसका दर्द अजमेर की सभा में वसुंधरा राजे के चेहरे और जुबान से झलक गया।

ये भी पढ़ेंः राजस्थान में ताजिया जुलूस के दौरान बवाल, युवक की पीट-पीटकर ले ली जान

अपनी ताकत से वापसी की तैयारी?

ऐसे में अब वसुंधरा राजे खुद को फिर से सक्रिय करती दिख रही हैं। भले ही कथित रुप से पार्टी में शीर्ष नेतृत्व से दूरी बनी हो, लेकिन मैदान में समर्थकों के बीच वे अब भी लोकप्रिय हैं। इसलिए वह हर दो-तीन महीने में किसी न किसी बड़े कार्यक्रम में हिस्सा लेती हैं और ऐसे ही मंचों से अपने दिल की बात जनता तक पहुंचाती हैं।

बहरहाल, वसुंधरा राजे का यह पूरा भाषण सिर्फ अतीत की याद नहीं था, बल्कि वर्तमान की पीड़ा और भविष्य की तैयारी का संकेत भी था। वह पुराने वफादार साथियों को याद कर रही थीं, लेकिन कहीं न कहीं वर्तमान नेताओं से यह उम्मीद भी जता रही थीं कि अगर आज भी कोई साथ खड़ा हो, तो राजनीति में फिर से उनकी वापसी को कोई नहीं रोक सकता।

ये भी पढ़ेंः कौन है मूली देवी? 2 साल तक फर्जी तरीके से बनी रही राजस्थान पुलिस की लेडी सिंघम

First published on: Jul 07, 2025 01:43 PM

संबंधित खबरें