राजस्थान में बूंदी का नैनवां उप जिला अस्पताल इलाज का मंदिर है या अंधविश्वास का अड्डा? सवाल इसलिए उठ रहा है कि इलाज की जगह अगर झाड़-फूंक और टोने-टोटके हावी होने लगे तो सोचिए आम जनता का क्या होगा? कुछ लोग इस अस्पताल में एक आत्मा को लेने लेबर रूम तक पहुंच गए और फिर जो कुछ हुआ, उसने मानो पूरी मानवता को ही शर्मसार कर दिया।
अस्पताल में हो रहा टोना टोटका
मृतक की आत्मा को ले जाने के नाम पर अस्पताल में टोना-टोटका हो रहा है। वह भी अस्पताल के गेट और लेबर रूम में आत्मा को लेकर जाने और उसे मुक्ति दिलाने का यह सारा मामला किसी एक या दो साल पहले मरे हुए व्यक्ति के लिए नहीं हो रहा है, बल्कि 14 और 17 साल पुराने मृतकों से जुड़ा मामला है।
शांति की जगह मंत्र उच्चारण
14 और 17 साल पहले मरे हुए इन व्यक्तियों के परिजनों को अब किसी तांत्रिक ने याद दिला दिया कि उस वक्त उनके घर में जिनकी मौत हुई थी, उनकी आत्मा अब तक भटक रही है, जिससे परिवार में सुख शांति और समृद्धि का वातावरण नहीं बन पा रहा है। बस फिर क्या था? तांत्रिक के कहने पर ये लोग अस्पताल के लेबर रूम गए, नवजात बच्चे को जिस मशीन पर रखकर उसका वजन लिया जाता है उस पर पूजा पाठ की क्रियाएं शुरू कर दीं। जिस जगह पर शांति रहनी चाहिए, वहां पर जोर-जोर से मंत्र उच्चारण और जय घोष गूंजने लगे और यहां से जाते-जाते एक पोटली में कथित रूप से 17 साल पहले मरे उस बच्चों की आत्मा को भी अपने साथ ले गए।
अस्पताल में तंत्र-मंत्र और पूजन
साल 2010 में एक व्यक्ति हादसे में घायल हुआ और इलाज के दौरान उसने इसी अस्पताल में अपना दम तोड़ दिया। अब 14 साल बाद उसके परिवार वाले मृतक की आत्मा को शांति दिलाने पहुंचे अस्पताल के गेट पर ही तंत्र-मंत्र और पूजन किया गया। यही नहीं एक और मामला सामने आया। 17 साल पहले लेबर रूम में मृत शिशु की आत्मा को ले जाने के लिए परिवार सीधा लेबर रूम में घुस गया। टोना-टोटका किया और लौट गया। जब अस्पताल में ही इस तरह से तंत्र- मंत्र की क्रियाएं होने लगीं और लोग आत्मा को लेने आए तो अस्पताल के बाहर लोगों की भीड़ इकट्ठा हो गई। सब हैरान थे कि विज्ञान और इलाज का मंदिर कब से अंधविश्वास का अखाड़ा बन गया। गौर करने वाली बात ये है कि ये पहला मामला नहीं है। दो दिन पहले ही बूंदी जिला अस्पताल में ऐसा ही मामला सामने आया था। यानी अंधविश्वास का ये सिलसिला रुकने का नाम नहीं ले रहा है। सवाल सीधा-सा है जब अस्पताल इलाज और विज्ञान का केंद्र है तो अंधविश्वास को यहां कब तक सहा जाएगा? प्रशासन कब तक मूकदर्शक बनकर रहेगा।