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मध्य प्रदेश

‘चीफ जस्टिस CBI निदेशक के चयन में कैसे भाग ले सकते हैं’, पावर सेपरेशन पर उपराष्ट्रपति धनखड़ की टिप्पणी

Jagdeep Dhankhar: उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने भोपाल में राष्ट्रीय न्यायिक अकादमी में बोलते हुए कहा कि भारत जैसे देश में या किसी भी लोकतंत्र में वैधानिक निर्देश के अनुसार भारत के मुख्य न्यायाधीश सीबीआई निदेशक के चयन में कैसे भाग ले सकते हैं!

Author Edited By : News24 हिंदी Updated: Feb 14, 2025 23:36
Vice President Jagdeep Dhankar
उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़।

Jagdeep Dhankhar Remark On Separation Of Powers: Bhpउपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने शुक्रवार को भोपाल के राष्ट्रीय न्यायिक अकादमी में बोलते हुए आश्चर्य व्यक्त किया कि भारत के CJI सीबीआई निदेशक के चयन में कैसे भाग ले सकते हैं? साथ ही उन्होंने कहा कि अब पहले से तय मानदंडों पर ‘पुनर्विचार’ करने का समय आ गया है। उन्होंने कहा कि ऐसी प्रक्रिया लोकतंत्र के अनुरूप नहीं है।

जगदीप धनखड़ ने क्या कहा?

उपराष्ट्रपति धनखड़ ने कहा, ‘हमारे देश में या किसी भी लोकतंत्र में क्या कोई कानूनी तर्क हो सकता है कि भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) को सीबीआई निदेशक के चयन में भागीदारी करनी चाहिए! क्या इसके लिए कोई कानूनी आधार हो सकता है? मैं समझ सकता हूं कि यह विधायी प्रावधान इसलिए अस्तित्व में आया क्योंकि उस समय की कार्यपालिका ने न्यायिक निर्णय के आगे घुटने टेक दिए थे। लेकिन, अब समय आ गया है कि इस पर फिर से विचार किया जाए। यह निश्चित रूप से लोकतंत्र के साथ मेल नहीं खाता। हम भारत के मुख्य न्यायाधीश को किसी भी कार्यकारी नियुक्ति में कैसे शामिल कर सकते हैं!’

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पावर सेपरेशन के उल्लंघन पर जताई चिंता

भोपाल में राष्ट्रीय न्यायिक अकादमी में फैकल्टी और छात्रों से बात करते हुए उपराष्ट्रपति धनखड़ ने ‘पावर सेपरेशन’ के सिद्धांत का उल्लंघन होने पर गहरी चिंता जताई। उन्होंने कहा, न्यायिक आदेश द्वारा कार्यकारी शासन एक संवैधानिक विरोधाभास है, जिसे दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र अब और बर्दाश्त नहीं कर सकता। जब संस्थाएं अपनी सीमाओं को भूल जाती हैं, तो लोकतंत्र को इस भूल से होने वाले जख्मों के लिए याद किया जाता है। संविधान सामंजस्य और सहकारी दृष्टिकोण की कल्पना करता है, यह निश्चित रूप से मेल खाता है। उन्होंने कहा कि संविधान में निश्चित रूप से सामंजस्य के साथ तालमेल बैठाने की परिकल्पना की गई है। संस्थागत समन्वय के बिना संवैधानिक परामर्श केवल संवैधानिक प्रतीकवाद है।

‘न्यायपालिका का हस्तक्षेप संवैधानिकता के विपरीत’

उन्होंने कहा कि न्यायालय का सम्मान और आदर के लिए यह आवश्यक है कि ये संस्थाएं राष्ट्रीय हित को ध्यान में रखते हुए सहकारी संवाद बनाए रखते हुए परिभाषित संवैधानिक सीमाओं के भीतर काम करें। लोगों की इच्छा को दर्शाने वाला कार्यकारी शासन संवैधानिक रूप से पवित्र है। धनखड़ ने कहा कि जब निर्वाचित सरकार द्वारा कार्यकारी भूमिकाएं निभाई जाती हैं, तो जवाबदेही लागू होती है। सरकारें विधायिका के प्रति जवाबदेह होती हैं और समय-समय पर मतदाताओं के प्रति जवाबदेह होती हैं, लेकिन अगर कार्यकारी शासन को अहंकारी या आउटसोर्स किया जाता है, तो जवाबदेही लागू नहीं होगी। विशेष रूप से शासन सरकार के पास है। देश में या बाहर, विधायिका या न्यायपालिका से किसी भी स्रोत से कोई भी हस्तक्षेप संवैधानिकता के विपरीत है और यह लोकतंत्र के मूल आधार के अनुरूप नहीं है।

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आंकड़ों के साथ खेलना और छेड़छाड़ करना खतरनाक

जगदीप धनखड़ ने कहा कि उच्च न्यायालय के अधिकार क्षेत्र में आने वाली सभी अधीनस्थ अदालतें (Subordinate Courts) और न्यायाधिकरण (Tribunals) उच्च न्यायालय के नियंत्रण के अधीन हैं। लेकिन सर्वोच्च न्यायालय का ऐसा नियंत्रण नहीं है, न तो उच्च न्यायालयों पर और न ही अधीनस्थ न्यायपालिका पर। जब मैं मामलो के निपटारों का विश्लेषण करता हूं तो पता चलता है कि आंकड़ों के साथ खेलना और छेड़छाड़ करना बहुत खतरनाक है क्योंकि, हम लोगों की अज्ञानता का का फायदा उठा रहे हैं। यदि जानकार लोग दूसरों की अज्ञानता का फायदा उठाने की आदत डाल लें तो इससे अधिक खतरनाक कुछ भी नहीं हो सकता।

धनखड़ ने आगे कहा कि मैंने सुप्रीम कोर्ट रजिस्ट्री द्वारा हाल ही में भेजे गए दो खंडों (volumes) की जांच की है। निपटारा दो फैक्ट्स वाला होना चाहिए। एक अनुच्छेद 136 के मुताबिक बर्खास्तगी…अनुमति दिए जाने के बाद निपटान या वैधानिक अपील ही एकमात्र वास्तविक निपटान है। उन्होंने कहा कि ऑटोनॉमी के साथ जवाबदेही की भावना भी आती है और यह जवाबदेही कई एजेंसियों द्वारा सख्ती से और कई बार सख्त तरीके से लागू की जा सकती है, जो सही मायने नौकरशाहों या राजनेताओं के गले में फंसी होती हैं। आइए हम इसे बनाए रखें।

संविधान पीठ के गठन पर दिया यह बयान

संविधान पीठ के गठन संबंधी चिंताओं को उजागर करते हुए धनखड़ ने कहा, “जब मैं 1990 में संसदीय कार्य मंत्री बना था। उस वक्त 8 न्यायाधीश थे। अक्सर ऐसा होता था कि सभी 8 न्यायाधीश एक साथ बैठते थे। जब सुप्रीम कोर्ट में 8 न्यायाधीशों की संख्या थी, तो अनुच्छेद 145(3) के तहत यह प्रावधान था कि संविधान की व्याख्या 5 न्यायाधीशों या उससे अधिक की पीठ द्वारा की जाएगी। उन्होंने कहा कि संविधान देश की सर्वोच्च अदालत को संविधान की व्याख्या करने की अनुमति देता है। संविधान के बारे में संविधान निर्माताओं ने अनुच्छेद 145(3) के तहत जो सार और भावना मन में रखी थी, उसका सम्मान किया जाना चाहिए। अगर मैं अंकगणितीय रूप से विश्लेषण करूं, तो उन्हें पूरा यकीन था कि व्याख्या न्यायाधीशों के बहुमत से होगी, क्योंकि तब संख्या 8 थी। वह 5 ही है और संख्या चार गुना से भी अधिक है.

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News24 हिंदी

First published on: Feb 14, 2025 11:36 PM

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