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दिल्ली

साहिब सिंह से कैसे साहिब सिंह वर्मा बने दिल्ली के पूर्व CM? जानें उनके AMU के दिनों की कहानी

दिल्ली के पूर्व मुख्यमंत्री साहिब सिंह वर्मा की आज जयंती है। भाजपा उनकी जयंती को यादगार बनाने की कोशिश कर रही है। साहिब सिंह से कैसे साहिब सिंह वर्मा बन गए पूर्व सीएम? आइए जानते हैं उनके AMU के दिनों की कहानी। 

Author Edited By : Deepak Pandey Mar 15, 2025 05:45
Sahib Singh Verma Birth Anniversary
Sahib Singh Verma Birth Anniversary (File Photo)

Sahib Singh Verma Birth Anniversary : दिल्ली आज अपने दूसरे मुख्यमंत्री साहिब सिंह वर्मा की जयंती मना रही है। भारतीय जनता पार्टी (BJP) के लिए सुखद संयोग है कि साहिब सिंह की जयंती से पहले वह सत्ता में आ चुकी है, इसलिए उनकी जयंती को और यादगार बनाने के लिए पार्टी चूकना नहीं चाह रही है। मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता उनकी जयंती पर सुबह 8.30 बजे उनके गृह क्षेत्र मुंडका जा रही हैं। वैसे तो साहिब सिंह वर्मा के बारे में कई कही-अनकही बातें आप सभी के जेहन में हैं, लेकिन आज हम उनके जीवन से जुड़े ऐसे पहलू के बारे में बात करने जा रहे हैं, जिसके बारे में आपको शायद ही पता हो।

बात उन दिनों की है, जब साहिब सिंह वर्मा अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में पढ़ाई करते थे। उस समय वे अपना नाम केवल साहिब सिंह लिखा करते थे। साहिब सिंह जाट समुदाय से आते थे। पढ़ाई के दौरान साहिब सिंह को अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में परेशानियों का सामना करना पड़ता था और कैंपस में समुदाय विशेष का दबदबा था।

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प्रोफेसर ने उपनाम लगाने की दी थी सलाह

उस दौरान यूनिवर्सिटी के किसी प्रोफेसर ने उनको सलाह दी कि वे अपने नाम के आगे एक और उपनाम लगाएं। प्रोफेसर का कहना था कि इससे उन्हें खुद को आगे बढ़ाने में मदद मिलेगी। उसके बाद साहिब सिंह ने अपने नाम के आगे एक और उपनाम वर्मा जोड़ दिया। इससे कैंपस में उनकी जाट वाली पहचान छिपती चली गई और आगे चलकर वे दिल्ली के मुख्यमंत्री पद तक पहुंच गए।

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सार्वजनिक जीवन में जाट वाली पहचान से मिली प्रसद्धि

कैंपस में तो उन्होंने जाट वाली पहचान छुपा ली, लेकिन जब वे सार्वजनिक जीवन में आए तो यही जाट वाली पहचान उनको दिल्ली के सत्ता शीर्ष तक लेकर गई। जब वे राजनीति में आए तो भाजपा एक बड़ी पार्टी के रूप में खुद को तैयार कर रही थी। आरएसएस के स्वयंसेवक होने का उन्हें फायदा मिला और मोरारजी देसाई की सरकार के समय वे दिल्ली के केशवपुरम वॉर्ड से पार्षद चुने गए। अस्सी के दशक में वे दोबारा जीते और उनका कद पार्टी में बढ़ता चला गया।

साहिब सिंह वर्मा का ऐसा रहा राजनीतिक सफर

1991 लोकसभा चुनाव में साहिब सिंह वर्मा को बाहरी दिल्ली सीट से टिकट मिला, लेकिन तत्कालीन कांग्रेसी दिग्गज सज्जन कुमार ने उन्हें हरा दिया। इस हार के बावजूद वे भाजपा में एक बड़े नेता के रूप में उभरे। 1993 दिल्ली विधानसभा चुनाव में उन्होंने शालीमार बाग में कमल खिलाया और बीजेपी की सरकार बनी। उस समय दिल्ली में पहली बार मदन लाल खुराना की सरकार बनी और साहिब सिंह वर्मा नंबर 2 के कैबिनेट मंत्री बनाए गए थे।

भाजपा में जाटों के सबसे बड़े नेता बने साहिब सिंह वर्मा

1996 में जैन हवाला केस में तत्कालीन मुख्यमंत्री मदन लाल खुराना का नाम सामने आने के बाद पार्टी ने उनका इस्तीफा ले लिया और स्वाभाविक रूप से दिल्ली भाजपा में नंबर 2 की हैसियत रखने वाले साहिब सिंह वर्मा को मुख्यमंत्री बनाया गया। उन्हें मुख्यमंत्री केवल इसलिए नहीं बनाया गया, क्योंकि वे नंबर 2 की हैसियत रखते थे, बल्कि उस समय वे भाजपा में जाटों के सबसे बड़े नेता भी हुआ करते थे।

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Deepak Pandey

First published on: Mar 15, 2025 05:45 AM

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