छत्तीसगढ़ के घने जंगलों में दशकों से पसरा नक्सलवाद अब अपनी अंतिम सांसें गिनता दिखाई दे रहा है। पिछले कुछ महीनों में जिस सटीकता, तैयारी और समन्वय के साथ राज्य सरकार और सुरक्षाबलों ने एक के बाद एक ऑपरेशन को अंजाम दिया है, उसने नक्सलियों के नेटवर्क को हिला कर रख दिया है। इस पूरी मुहिम में स्थानीय युवाओं से बनी ‘डिस्ट्रिक्ट रिजर्व गार्ड’ यानी DRG की भूमिका निर्णायक बनकर उभरी है।
स्थानीय जमीन से निकली ताकत : DRG की विशिष्टता
2008 में गठित DRG छत्तीसगढ़ पुलिस की एक विशेष इकाई है, जिसमें स्थानीय आदिवासी युवाओं की भर्ती की जाती है। ये युवा इलाके की भूगोल, भाषा और सामाजिक तानेबाने को बेहतर समझते हैं, जो इन्हें नक्सल विरोधी अभियानों में बढ़त दिलाता है। 2021 तक डीआरजी में 3500 से अधिक जवान तैनात हैं और हर ऑपरेशन में इनकी भूमिका निर्णायक साबित हो रही है।
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मई 2025 में नारायणपुर-बिजापुर सीमा पर चले 50 घंटे के ‘अबूझमाड़ ऑपरेशन’ में डीआरजी ने सीआरपीएफ के साथ मिलकर 27 नक्सलियों को मार गिराया। इस कार्रवाई में एक करोड़ रुपये का इनामी माओवादी कमांडर वसवराज भी ढेर हुआ, जो संगठन की सैन्य रणनीति का प्रमुख था। इससे पहले जनवरी और मार्च 2025 में बीजापुर और सुकमा में हुए अभियानों में भी DRG की अग्रणी भूमिका रही, जहां कुल 28 नक्सली मारे गए।
सरकार की दोहरी रणनीति, कितना कारगर
हाल ही में सीएम विष्णु देव साय ने कहा कि सिर्फ बंदूक नहीं, विकास भी चाहिए। इसी सोच के तहत राज्य सरकार ने सुरक्षा बलों के शिविरों को ‘सुविधा केंद्रों’ में बदलने की पहल की है। सुविधा केंद्रों में स्वास्थ्य, शिक्षा और रोजगार से जुड़ी सेवाएं ग्रामीणों को दी जा रही हैं।
सड़कें : बस्तर, सुकमा और दंतेवाड़ा में 1200 किमी से अधिक सड़कें बनाई गईं।
स्वास्थ्य : मोबाइल मेडिकल यूनिट और हेल्थ सेंटरों की स्थापना।
शिक्षा : आवासीय विद्यालय और डिजिटल लाइब्रेरी का निर्माण।
रोजगार : महिलाओं और युवाओं को सिलाई, डेयरी और बांस शिल्प में प्रशिक्षित किया जा रहा है।
बिजली-पानी : सोलर ग्रिड और पाइपलाइन जल योजनाएं गांव-गांव तक पहुंच रही हैं।
आत्मसमर्पण बढ़ा तो नक्सल की ताकत टूटी
राज्य सरकार की पुनर्वास नीति के तहत हिंसा छोड़ने वाले नक्सलियों को आवास, वित्तीय सहायता, सुरक्षा और प्रशिक्षण दिया जा रहा है। 2024-25 में अब तक 250 से अधिक नक्सलियों ने आत्मसमर्पण किया, जिनमें कई मीडियम और हाई रैंक के माओवादी शामिल हैं।
संयुक्त कार्रवाई बनी सफलता की कुंजी
CRPF, CoBRA, STF और BSF जैसे बलों के साथ DRG का समन्वय अब अधिक मजबूत और परिणामदायी बन चुका है। दुर्गम जंगलों में तेज, सटीक और समन्वित ऑपरेशन से नक्सली समूहों की कमर टूट चुकी है।
वसवराज की मौत से माओवाद को बड़ा झटका
अबूझमाड़ में मारे गए वसवराज को माओवादी संगठन का सैन्य ब्रेन कहा जाता था। उसकी मौत ने न सिर्फ संगठन को नेतृत्वहीन किया, बल्कि कार्यकर्ताओं के मनोबल को भी तोड़ा है। इसके बाद आत्मसमर्पण की दर में तेजी आई है।
नतीजा : विश्वास का निर्माण, हिंसा का पतन
राज्य सरकार का मानना है कि नक्सलवाद सिर्फ हथियारों से नहीं, विकास और संवाद से खत्म होगा। डीआरजी की जमीनी कार्रवाई और सरकार की विकासपरक नीति अब बस्तर के जंगलों में शांति और स्थायित्व की जमीन तैयार कर रही है।
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