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बिहार

बिहार का एक गांव जो हो गया ‘लापता’, हजारों वोटर हो गए बे-पता

बिहार के भोजपुर जिले का जवाइनिया गांव आज के समय में अपनी पहचान खो बैठा है। ढाई हजार से ज्यादा की आबादी वाला यह गांव अब नक्शे पर भी अस्तित्व में नहीं है। क्या है पूरा मामला, पढ़ें अमिताभ कुमार ओझा की स्पेशल रिपोर्ट...

Author Written By: News24 हिंदी Author Published By : Deepti Sharma Updated: Aug 21, 2025 20:24

एक तरफ पूरे बिहार की राजनीति में “पहचान और वोट के अधिकार” की जद्दोजहद जारी है। नेता अपने-अपने सियासी समीकरण गढ़ रहे हैं और वहीं जनता पहचान पत्र लेकर कतारों में खड़ी है। ताकि लोकतंत्र की ताकत से अपनी हिस्सेदारी साबित कर सके, लेकिन इसी लोकतंत्र की जमीन पर गंगा की बाढ़ में डूब चुके भोजपुर जिले का जवनिया गांव अपनी पहचान खो बैठा। ढाई हजार से अधिक की आबादी वाला यह गांव अब नक्शे पर भी अस्तित्व में नहीं है।

मिट्टी, मकान और यादें- सब कुछ गंगा की लहरों में समा गया। लोग अपने घरों की नींव तक ढूंढ नहीं पा रहे हैं और अब उनके वोटर कार्ड पर दर्ज पता भी बदल जाएगा। यानी की जहां एक तरफ बिहार की जनता पहचान बचाने की जद्दोजहद में लगी है। वहीं, जवनिया गांव के लोगों की सबसे बड़ा दर्द यह है कि उनका गांव ही अब गंगा में पूरी तरह समा गया।

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वोट के अधिकार की चल रही बहस

बिहार में एक तरफ जहां वोट के अधिकार की बहस चल रही है तो दूसरी तरफ उन लोगों की पुकार दब गई है, जिनका अपना ठिकाना ही छिन गया। यहां बात बिहार के भोजपुर जिले के जवनिया गांव की हो रही है, जो अब सिर्फ इतिहास बन गया है। गंगा हमेशा से जीवनदायिनी मानी जाती रही है, लेकिन अब वही गंगा प्रलयंकारी रूप धारण करती है, तब उसकी लहरों में न केवल खेत-खलिहान, घर और मवेशी सब कुछ बह जाता है।

भोजपुर के जिला मुख्यालय से करीब 60 किमी दूर उतर प्रदेश की सीमा से लगा जवनिया कोई साधारण गांव नहीं था। यह पीढ़ियों से बसा एक सांस्कृतिक केंद्र था, जहां मिट्टी की खुशबू, खेतों की हरियाली और गंगा के तट पर जीवन का एक अनूठा संगम देखने को मिलता था। इस बार गंगा की उफनती धारा ने जवनिया गांव को अपनी गोद में समेट लिया।

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गांव के लोगों का क्या कहना है?

गांव वालों के लिए यह सिर्फ मकानों और खेतों का डूबना नहीं है। यह उनकी स्मृतियों, उनकी मेहनत और आत्मा का अलग होना है। कोई मां अपने आंगन की नींव खोज रही है, तो कोई बुज़ुर्ग अपनी पीढ़ियों का वटवृक्ष खोज रहा है। बच्चों के खेलने का आंगन, शादी-ब्याह में गूंजने वाले चौक-चौराहे, सब कुछ पानी में समा गया।

मतदाता सूची पुनरीक्षण

बिहार की राजनीति इस समय मतदाता सूची पुनरीक्षण (SIR) को लेकर बेहद सक्रिय है। गांव-गांव और मोहल्ले-मोहल्ले में लोग पहचान पत्र, आधार और अन्य कागजात लेकर लाइन में लगे हैं ताकि मतदाता सूची में अपना नाम दर्ज करवा सकें। इसी बीच भोजपुर जिले का जवनिया गांव गंगा की भीषण कटान की भेंट चढ़कर मानचित्र से मिट गया। पिछले डेढ़ महीने से कटाव का खतरा लगातार मंडरा रहा था। गांव के लोग दिन-रात डर के साय में जी रहे थे, लेकिन जब गंगा ने अपनी धारा बदली, तो देखते ही देखते 400 से ज्यादा मकान पानी में डूब गए।

अब वोटर्स मताधिकार का उपयोग कैसे करेंगे?

जवनिया गांव से करीब डेढ़ किलोमीटर दूर बांध पर शरण लिए सैकड़ों लोग जिनके घर नदी में बह गए, वे लोग किसी तरह जान बचा पाए। कागजात, पहचान पत्र और प्रमाण पत्र तो सब बह चुके हैं। गांव के युवक-बुजुर्ग कहते हैं कि पहले जान की चिंता करें या वोट की? जब घर ही नहीं बचा तो कागज कहां से लाते? बांध पर शरण लिए एक महिला की पीड़ा और भी गहरी है। उसके मुताबिक, कटाव हुआ तो हम बाबाधाम गए हुए थे, जब लौटकर आए तो सब खत्म हो गया।

घर-खेत कुछ भी नहीं बचा है। अब बच्चों के साथ बांध पर रह रहे हैं। जब पूरा प्रदेश SIR की प्रक्रिया में जुटा है, तब जवनिया गांव जैसे आपदा-पीड़ित गांवों के लिए कोई विशेष शिविर जिला प्रशासन ने नहीं लगाया है। कुछ महीने पहले BLO गांव आए थे और कुछ लोगों का फॉर्म भरा भी गया था, लेकिन अब डॉक्यूमेंट्स के बिना प्रोसेस आगे नहीं बढ़ सकता है।

गांव में किन लोगों की संख्या ज्यादा?

गांव में यादव और भूमिहार की सबसे बड़ी संख्या थी। इसके अलावा ब्राह्मण, बिंद और गौड़ समुदाय भी बड़ी तादाद में थे। आज सभी एक साथ बांध पर शरणार्थी की तरह जीवन काट रहे हैं। जातीय विविधता और सामाजिक संरचना सबकुछ गंगा की धारा में बह गया। फिलहाल, राजनीतिक दल वोट की राजनीति में व्यस्त हैं, तब जवनिया जैसे गांवों के मतदाता सबसे बड़े संकट में हैं। क्या प्रशासन इन ढाई हजार से ज्यादा लोगों को मताधिकार दिलाने की ठोस व्यवस्था करेगा?

क्या आपदा पीड़ितों के लिए विशेष पहचान और वोटर लिस्ट बनाई जाएगी। किसानों की फसलें, मजदूरों की रोजी-रोटी, छोटे दुकानदारों की दुकानें, सबकुछ बह गया। विस्थापन के बाद अब सवाल केवल छत ढूंढने का नहीं, बल्कि पहचान बचाने का भी है। नई जगह जाकर वे “जवनिया वाले” कहलाएंगे, लेकिन उनके पास अपना जवनिया नहीं होगा।

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First published on: Aug 21, 2025 08:20 PM

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