Chaitra Navratri 2025: आज से चैत्र नवरात्रि की पूजा अपने चरम कीओर बढ़ने लगी है। 30 मार्च को शुरू हुई इस पूजा का आज सातवां दिन है। इस दिन मां दुर्गा के सातवें स्वरूप देवी कालरात्रि की पूजा का विधान है। आज से माता रानी के मुख दर्शन के लिए खुल जाएंगे। मां दुर्गा का यह सातवां स्वरूप जीवन के महान सत्य काल यानी मृत्यु के सत्य का साक्षात्कार कराता है। आइए जानते हैं, मां कालरात्रि का रूप कैसा है, उनकी पूजा के मंत्र, उनका प्रिय भोग, फूल, पूजा विधि, कथा और आरती क्या है?
कैसा है मां कालरात्रि का स्वरूप
मां कालरात्रि के चार हाथों में ऊपर उठा हुआ दाहिना हाथ वरमुद्रा में, नीचे वाला हाथ अभयमुद्रा में है। बाएं तरफ के ऊपर के हाथ में खड़ग एवं नीचे के हाथ में कांटा है। मां कालरात्रि का वाहन गदर्भ है। मां ने वस्त्र स्वरूप में लाल वस्त्र और बाघ के चमड़े को धारण किया हुआ है।
नाम के अनुरूप ही मां का स्वरूप अतिशय भयानक और उग्र है। भयानक स्वरूप रखने वाली मां कालरात्रि अपने भक्तों को शुभफल प्रदान करती है। घने अंधकार की तरह मां के केश गहरे काले रंग के है। त्रिनेत्र, बिखरे हुए बाल एवं प्रचंड स्वरूप में मां दिखाई देती है। मां के गले में विद्युत जैसी छटा देने वाली सफेद माला दिखाई देती है।
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मां कालरात्रि का महत्व
नवरात्रि के सातवें दिन मां कालरात्रि की पूजा मृत्यु के भय से मुक्ति पाने का अवसर होती है। मां का यह रूप समस्त नकारात्मक ऊर्जा, भूत-प्रेत, दानव और पिशाचों का संहार करता है। हर व्यक्ति जीवन में मृत्यु के भय से भयभीत रहता है, लेकिन मां कालरात्रि की उपासना से उसे निर्भीक और निडर बनाया जाता है। कई बार कुण्डली में प्रतिकूल ग्रहों के प्रभाव से मृत्यु संबंधित कई बाधाएं उत्पन्न होती हैं, जिससे जातक भयभीत और असहज महसूस करता है। परंतु मां कालरात्रि अग्नि, जल, शत्रु और पशु आदि के भय से भी मुक्ति प्रदान करती हैं।
मां कालरात्रि की पूजा विधि
- नवरात्रि के सातवें दिन सबसे पहले स्नान करके स्वच्छ और साफ सुथरे वस्त्र धारण करें।
- इसके बाद गणेश वंदना करें। फिर रोली, अक्षत, दीप, और धूप अर्पित करें।
- इसके पश्चात मां कालरात्रि की तस्वीर या चित्र को स्थापित करें। यदि मां कालरात्रि की तस्वीर उपलब्ध न हो, तो मां दुर्गा का जो चित्र पहले से स्थापित है, उसी की पूजा करें।
- अब मां कालरात्रि को रातरानी के फूल अर्पित करें और गुड़ का भोग चढ़ाएं।
- इसके बाद मां की आरती करें। इसके साथ ही दुर्गा सप्तशती, दुर्गा चालीसा का पाठ करें और मंत्रों का जाप करें।
- इस दिन लाल ऊनी आसन बिछाकर और लाला चंदन की माला से मां कालरात्रि के मंत्रों का जाप करें। यदि लाला चंदन की माला उपलब्ध न हो, तो रूद्राक्ष की माला का भी उपयोग कर सकते हैं।
मां कालरात्रि का मंत्र, भोग और फूल
मां कालरात्रि का स्तुति मंत्र: या देवी सर्वभूतेषु कालरात्रि रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः।
मां कालरात्रि का बीज मंत्र: ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चै ऊं कालरात्रि दैव्ये नमः।
मां कालरात्रि का वंदना मंत्र: जय सर्वगते देवी कालरात्रि नमोऽस्तु ते
प्रिय भोग: मां कालरात्रि को गुड़ बहुत प्रिय है। आप चाहें तो मां कालरात्रि को गुड़ का हलवा या मिठाई चढ़ा सकते हैं। गुड़ से मां की कृपा प्राप्त होती है और हर तरह की रुकावटें दूर होती हैं।
प्रिय फूल: मां कालरात्रि को चमेली और नीलकमल के फूल अर्पित करने से आपके जीवन से नकारात्मकता दूर होती है और सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है।
मां कालरात्रि की कथा
एक समय तीनों लोकों में शुंभ-निशुंभ, चंड-मुंड और रक्तबीज जैसे राक्षसों का आतंक फैल गया था। उनका उत्पात इतना बढ़ गया था कि देवताओं की स्थिति दयनीय हो गई। यह देख सभी देवता भगवान शिव के पास गए और उनकी शरण में आकर रक्षा की प्रार्थना करने लगे। शिवजी ने देवी पार्वती से कहा कि वे राक्षसों का वध करें और अपने भक्तों की रक्षा करें। शिवजी की बात मानी और देवी पार्वती ने दुर्गा का रूप धारण किया। फिर उन्होंने शुंभ-निशुंभ का वध किया। इसके बाद देवी दुर्गा ने चंड और मुंड नामक राक्षसों का भी वध किया, जिसके बाद उनका नाम ‘मां चंडी’ पड़ा।
इसके बाद जब मां दुर्गा ने रक्तबीज नामक राक्षस का वध किया, तो उनके शरीर से रक्त की धार बहने लगी। अजीब बात यह थी कि जैसे ही रक्त जमीन पर गिरता, उसी क्षण लाखों रक्तबीज प्रकट होने लगते थे। यह देख देवी दुर्गा ने अपने तेज से कालरात्रि को उत्पन्न किया। उसके शरीर से निकलने वाले रक्त को मां कालरात्रि ने जमीन पर गिरने से पहले ही अपने मुख में भर लिया। इस तरह मां दुर्गा ने गला काटते हुए सारे रक्तबीज का वध कर दिया।
मां कालरात्रि की आरती
कालरात्रि जय-जय-महाकाली। काल के मुह से बचाने वाली॥
दुष्ट संघारक नाम तुम्हारा। महाचंडी तेरा अवतार॥
पृथ्वी और आकाश पे सारा। महाकाली है तेरा पसारा॥
खडग खप्पर रखने वाली। दुष्टों का लहू चखने वाली॥
कलकत्ता स्थान तुम्हारा। सब जगह देखूं तेरा नजारा॥
सभी देवता सब नर-नारी। गावें स्तुति सभी तुम्हारी॥
रक्तदंता और अन्नपूर्णा। कृपा करे तो कोई भी दुःख ना॥
ना कोई चिंता रहे बीमारी। ना कोई गम ना संकट भारी॥
उस पर कभी कष्ट ना आवें। महाकाली मां जिसे बचाबे॥
तू भी भक्त प्रेम से कह। कालरात्रि मां तेरी जय॥
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