Vat Savitri Vrat Katha: वट सावित्री व्रत हर साल ज्येष्ठ माह की पूर्णिमा तिथि को मनाया जाता है, जो कि आज मंगलवार 10 जून, 2025 को है। हिंदू धर्म में वट सावित्री व्रत नारी शक्ति, समर्पण और प्रेम का प्रतीक माना जाता है। यह पर्व विशेष रूप से विवाहित महिलाओं द्वारा अपने पति की दीर्घायु, सुख-समृद्धि और उत्तम स्वास्थ्य की कामना के लिए श्रद्धा भाव से मनाया जाता है। इस दिन महिलाएं दिनभर निर्जला व्रत रखती हैं और वट यानी बरगद वृक्ष की विधिपूर्वक पूजा करती हैं।
आज 10 जून को पूर्णिमा तिथि का आरंभ सुबह 11:35 AM बजे होगा और इस तिथि का समापन 11 जून 2025 को दोपहर 1:13 PM बजे होगा। आइए जानते हैं, इस व्रत की पौराणिक और प्रामाणिक कथा क्या है, जिसे पढ़े और सुने बिना यह पूजा अधूरी मानी जाती है।
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वट सावित्री व्रत कथा
मद्र देश के राजा अश्वपति संतानहीन थे। उन्होंने संतान की प्राप्ति के लिए बारह वर्ष तक गायत्री मंत्र का जप करते हुए देवी सावित्री की आराधना की। देवी सावित्री प्रसन्न हुईं और उन्हें एक दिव्य तेजस्विनी कन्या प्राप्त हुई, जिसका नाम सावित्री रखा गया। वह अत्यंत रूपवती, गुणवान और बुद्धिमती थी।
जब सावित्री विवाह योग्य हुई, तो राजा अश्वपति ने उसे स्वयं वर चुनने की आज्ञा दी। सावित्री ने वन में रह रहे एक राजकुमार सत्यवान को चुना, जो अंधे राजा द्युमत्सेन का पुत्र था और तपोवन में जीवन यापन कर रहा था।
नारद मुनि की चेतावनी
जब सावित्री ने सत्यवान से विवाह की इच्छा जताई, तो नारद मुनि ने राजा अश्वपति को चेताया कि सत्यवान अत्यंत गुणी तो है, परंतु उसकी आयु केवल एक वर्ष शेष है। लेकिन सावित्री अपने निश्चय से नहीं डगमगाई और सत्यवान से ही विवाह किया।
सावित्री का व्रत और यमराज से संघर्ष
सावित्री ने विवाह के बाद ससुराल में अपने सास-ससुर और पति की सेवा पूरी श्रद्धा से की। जैसे-जैसे सत्यवान की मृत्यु का दिन निकट आया, सावित्री ने तीन दिन का उपवास किया और पृथ्वी पर सोई। जब वह दिन आया, तो वह सत्यवान के साथ वन में गई।
सत्यवान को अचानक सिर में पीड़ा हुई और वह मूर्छित होकर गिर पड़ा। उसी समय यमराज वहाँ आए और सत्यवान के प्राण लेकर दक्षिण दिशा की ओर चलने लगे।
सावित्री ने उनका पीछा करना शुरू कर दिया। यमराज ने उसे कई बार समझाया कि अब सत्यवान नहीं लौट सकता, परंतु सावित्री धर्म, तप, सेवा और नीति की बातें करती हुई यमराज के पीछे चलती रही। यमराज उसकी ज्ञानपूर्ण बातों से प्रसन्न हुए और उसे वर मांगने को कहा।
सावित्री ने यमराज से चार वर मांगे:
- उसके अंधे ससुर द्युमत्सेन की दृष्टि लौट आए।
- उनका खोया हुआ राज्य पुनः प्राप्त हो।
- उसके माता-पिता को पुत्र रत्नों की प्राप्ति हों।
- उसे भी पुत्र रत्नों को पाने का सौभाग्य प्राप्त हो।
यमराज ने प्रसन्न होकर सभी वर दे दिए। लेकिन जब सावित्री ने पुत्रों की बात की, तो यमराज को समझ आ गया कि बिना सत्यवान के जीवन के, यह वर पूरा नहीं हो सकता। तब यमराज ने उसकी पतिव्रता शक्ति से प्रभावित होकर सत्यवान को जीवनदान दे दिया।
सत्यवान की वापसी और राज्य की पुनर्प्राप्ति
यमराज के प्राण छोड़ते ही सत्यवान जीवित हो गए। ऊधर आश्रम में राजा द्युमत्सेन की आंखें वापस आ गईं। अल्प समय में ही उनको उनका राज्य भी फिर से प्राप्त हो गया। अब सावित्री और सत्यवान दीर्घायु और सुखी जीवन जीने लगे।
आपको बता दें कि इस पूजन में कथा में वट वृक्ष सत्य, तप, त्याग और अखंड सौभाग्य का प्रतीक माना गया है। सावित्री ने जिस प्रकार पति को मृत्यु से वापस लाया, उसी श्रद्धा और निष्ठा से विवाहित महिलाएं इस दिन वट वृक्ष की पूजा करती हैं और अपने पति के लिए दीर्घायु और कल्याण की कामना करती हैं।
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