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Temples of India: जिंदा लड़की की समाधि पर बना है वाराणसी का यह मंदिर, दिल दहला देने वाला है इतिहास!

Temples of India: वाराणसी यानी काशी में एक ऐसा मंदिर है, जिसकी नींव में एक जिंदा लड़की दफन है। आखिर ऐसा क्या हुआ कि मंदिर के फाउंडेशन में जीवित इंसान दफनाया गया? यह अंधविश्वास था कुछ और? आइए जानते हैं, वाराणसी में यह मंदिर कहां है, किसने बनवाया, क्या नाम है और इसका इतिहास क्या है?

Edited By : Shyam Nandan | Updated: Sep 12, 2024 21:11
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Temples of India: वाराणसी यानी भगवान शिव की नगरी काशी की महिमा अपार है। कहते हैं, यहां जितनी गलियां नहीं हैं, उससे अधिक मंदिर हैं और इन मंदिरों से भी अधिक यहां इन मंदिरों के किस्से-कहानियां और गाथाएं हैं। यहां वरुणा और असी नदियों के बीच बसी वाराणसी के एक ऐसे मंदिर की चर्चा की गई है, जो एक जिंदा लड़की की समाधि पर बना है। आइए जानते हैं, वाराणसी में यह मंदिर कहां है, किसने बनवाया, क्या नाम है और इसका इतिहास क्या है?

सगी मां ने किया जिंदा दफन

वाराणसी के जिस मंदिर की बात यहां हो रही है, उसमें जिंदा दफन लड़की कोई आम लड़की नहीं बल्कि एक राजकुमारी थी। इसके बारे में कहा जाता है कि मंदिर की नींव में एक राजकुमारी को उसकी सगी मां ने जिंदा दफन कर समाधि पर ही मंदिर को खड़ा कर दिया। वाराणसी में यह मंदिर देवनाथ पुरा मोहल्ले में पांडेय घाट पर स्थित है। बाहर से यह एक पुरानी कोठियों जैसी ही दिखती है, लेकिन अंदर से एक बड़ी-सी हवेलीनुमा भव्य मंदिर है।

काशी का सिद्धपीठ तारा माता का मंदिर

इस हवेलीनुमा भव्य मंदिर को काशी का सिद्धपीठ तारा माता का मंदिर कहते हैं। इस मंदिर में यूं तो कई देवता स्थापित हैं, लेकिन यह मुख्य रूप से काशी की सिद्धपीठ तारा माता का मंदिर है। मंदिर की मूर्ति (विग्रह) मंदिर की बनावट को देखकर एक पल के लिए भी यह आभास नहीं होता है कि कि इस मंदिर की नींव में एक राजकुमारी जिंदा दफन हुई थी। सवाल उठता है कि आखिर क्यों एक मां और एक रानी को अपनी सगी और इकलौती बेटी की जिंदा समाधि बनानी पड़ी?

किसने बनवाया यह मंदिर?

यह मंदिर तंत्र विद्या की देवी मां तारा को समर्पित है। जिस प्रकार बंगाल का प्रसिद्ध तारापीठ मंदिर तंत्र साधना का बड़ा केंद्र माना जाता है। ठीक वैसे ही बनारस का यह मंदिर भी मां तारा का मंदिर है। कहते हैं कि इस मंदिर का निर्माण बंगाल के एक राज्य नाटोर की रानी भवानी ने 1752 से 1758 के बीच करवाया था।

Kedar Ghat Bangali Tola Varanasi Uttar Pradesh - YouTube

मंदिर में दफन राजकुमारी की कहानी

वाराणसी के पांडेय घाट पर स्थित तारा माता मंदिर की नींव में जिस राजकुमारी को जिंदा दफना दिया गया था वह नाटोर की रानी भवानी की बेटी थी। उसका नाम तारा सुंदरी थी, जो अपनी मां की इकलौती संतान थी। कहते हैं, तारा सुंदरी बेइंतेहा सुंदर थी। उनका विवाह बंगाल के खेजुरी गांव में रहने वाले रघुनाथ लाहिरी से हुआ था। लेकिन बहुत ही कम उम्र में वह विधवा हो गई। इसके बाद से वह नाटोर में अपनी मां के साथ रहती थी।

नाटोर की रानी भवानी की कहानी

रानी भवानी का विवाह नाटोर के राजा रमाकांत से हुई थी। कहते हैं, कभी नाटोर एक संपन्न राज्य हुआ करता था। जब राज्य पर मराठाओं का हमला हुआ तो उसमें महाराज रमाकांत मारे गये। उसके रानी ने राज्य को संभाला। इधर बेटी तारा सुंदरी भी शादी के कुछ समय बाद ही विधवा हो गई और मायके आ गयी। तब से दोनों नाटोर में रहने लगे। बता दें, नाटोर अब बांग्लादेश में स्थित है, उस समय यह अविभाजित बंगाल का हिस्सा था।

तारा सुंदरी पर आया बंगाल के नवाब का दिल

नाटोर की राजकुमारी तारा सुंदरी की बेपनाह खूबसूरती की चर्चा सुनकर बंगाल के नवाब सिराजुद्दौला ने उससे शादी करने का ऐलान कर दिया। नवाब से बचने के लिए रानी भवानी बेटी तारा सुन्दरी को लेकर गंगा के रास्ते बनारस (वाराणसी) भाग आयी, लेकिन मुसीबत ने उसका पीछा नहीं छोड़ा। सिराजुद्दौला बारात और अपनी सेना लेकर काशी की ओर चल पड़ा।

फिर एक मां ने किया दिल दहलाने वाला काम

सिराजुद्दौला के वाराणसी आने की बात जानकर तारा सुंदरी ने अपनी मां रानी भवानी से कहा कि मुझे जिंदा दफना दिया जाए लेकिन दूसरे धर्म का हाथ उसके शरीर पर न लगे। कहते हैं, कोई उपाय न देखकर नाटोर की रानी भवानी ने अपनी बेटी तारा सुंदरी को जमीन में जिंदा गाड़ दिया और उनकी समाधि पर तारा माता का मंदिर बनवाकर इसमें मां तारा का विग्रह स्थापित करवा दिया। कहते हैं, यह काम रानी भवानी ने एक ही रात में ही करवा दिया था।

रानी ने कर दिया सब कुछ दान

कहा जाता है कि जिंदा बेटी की समाधि बनाने के बाद रानी भवानी बनारस बहुत दिनों तक रही। काशी की पंचक्रोशी यात्रा के मार्ग में आने वाले सभी धर्मशालाएं, कुएं और तालाब रानी भवानी ने ही बनवाए थे। इतिहास कहता है कि वाराणसी दो रानियों का ऋणी है, एक रानी अहिल्याबाई और दूसरी रानी भवानी। ये दोनों ही विधवाएं थीं। काशी के सभी घाट, मंदिर, तालाब या कुंड या तो रानी अहिल्याबाई के बनवाए हुए थे या फिर रानी भवानी के। कहते हैं, समय के साथ रानी भवानी ने अपना सब कुछ दान कर दिया था।

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डिस्क्लेमर: यहां दी गई जानकारी धार्मिक शास्त्र की मान्यताओं पर आधारित है तथा केवल सूचना के लिए दी जा रही है। News24 इसकी पुष्टि नहीं करता है।

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Written By

Shyam Nandan

First published on: Sep 12, 2024 09:11 PM

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