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Snan Yatra 2024: देव स्नान पूर्णिमा कब है? रथयात्रा से पहले भगवान जगन्नाथ करते हैं विशेष स्नान, जानें तिथि और महत्व

Snan Yatra 2024: 'स्नान यात्रा' ओडिशा के पुरी में स्थित जगन्नाथ मंदिर का एक विशेष अनुष्ठान है, जो ज्येष्ठ महीने की पूर्णिमा को संपन्न होता है। भगवान जगन्नाथ के भक्त इसे 'देव स्नान पूर्णिमा' कहते हैं। आइए जानते हैं, रथयात्रा से पहले किए जाने वाले इस विशेष अनुष्ठान की विशेषताएं।

Edited By : Shyam Nandan | Jun 19, 2024 06:45
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Snan Yatra 2024: देव स्नान पूर्णिमा भगवान जगन्नाथ के भक्तों के लिए एक विशेष और शुभ उत्सव है। हिन्दू पंचांग के अनुसार, यह ज्येष्ठ महीने की पूर्णिमा को मनाया जाता है, जो इस साल 22 जून को पड़ रही है। इस शुभ तिथि को भगवान जगन्नाथ, देवी सुभद्रा और भगवान बलभद्र की दिव्य मूर्तियों को विशेष स्नान कराया जाता है। स्नान से पहले इन तीनों की भव्य और आकर्षक यात्रा निकाली जाती है। इसलिए इसे ‘स्नान यात्रा’ भी कहते हैं। आइए जानते हैं, वैष्णव सम्प्रदाय के इस उत्सव की विशेषताएं और रीति-रिवाज।

रथयात्रा से पहले होता है यह अनुष्ठान

देव स्नान पूर्णिमा ओडिशा के पुरी में स्थित जगन्नाथ मंदिर की विश्व प्रसिद्ध रथ यात्रा से ठीक पहले एक महत्वपूर्ण अनुष्ठान है। कुछ लोग इस त्योहार को भगवान जगन्नाथ के जन्मदिन के रूप में भी मनाते हैं। इस अनुष्ठान में जगन्नाथ मंदिर के देवताओं यानी भगवान जगन्नाथ, देवी सुभद्रा और भगवान बलभद्र की पूरी श्रद्धा, भक्ति और समर्पण के साथ पूजा की जाती है। इस अनोखे आयोजन को देखने के लिए देश के विभिन्न हिस्सों से भक्त पुरी आते हैं।

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देव स्नान पूर्णिमा के प्रमुख अनुष्ठान

जुलूस में ‘स्नान वेदी’ तक आते हैं देवता

ज्येष्ठ पूर्णिमा के दिन, भगवान जगन्नाथ, देवी सुभद्रा और भगवान बलभद्र की मूर्तियों को सुबह-सुबह जगन्नाथ पुरी मंदिर के ‘रत्नसिंहासन’ से बाहर निकाला जाता है। तीनों देवताओं की मूर्तियों को मंत्रोच्चार और घंटा, ढोल, बिगुल और झांझ की ध्वनि के साथ एक जुलूस में विशेष ‘स्नान वेदी’ तक लाया जाता है। इसे ‘पहांडी’ जुलूस कहा जाता है।

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विशेष कुएं से लिया जाता है पानी

तीनों देवताओं को स्नान कराने के लिए इस्तेमाल किया जाने वाला पानी जगन्नाथ मंदिर के अंदर मौजूद विशेष कुएं से लिया जाता है। इस पानी में विशेष जड़ी-बूटी और सुगंधित पदार्थ मिलाए जाते हैं। देवताओं को सुगंधित स्नान कराने के लिए 108 घड़ों का उपयोग किया जाता है।

झांकियों में दर्शन देते हैं तीनों देवता

स्नान अनुष्ठान के बाद, तीनों देवताओं को एक विशेष परिधान पहनाया जाता है, जिसे ‘सादा बेशा’ कहते हैं। दोपहर बाद उन्हें भगवान गणेश के एक रूप के रूप में सजाया जाता है, जो ‘हाथी बेशा’ कहलाता है। फिर शाम में ये तीनों देवता जनता को दर्शन देने के लिए प्रकट होते हैं, जिसे ‘सहनामेला’ कहते हैं।

15 दिन के लिए भक्त से दूर हो जाते हैं देवता

रात के समय, जगन्नाथ मंदिर के तीनों मुख्य देवता मंदिर परिसर में स्थित एक विशेष आवास में चले जाते हैं, जिसे ‘अनासर’ घर कहते हैं। ‘अनासर’ घर में निवास के दौरान वे 15 दिनों तक अपने भक्तों से दूर रहते हैं। फिर भगवान जगन्नाथ, देवी सुभद्रा और भगवान बलभद्र की मूर्तियां 15 दिन बाद यानी रथ यात्रा से ठीक एक दिन पहले जनता के दर्शन के लिए प्रकट होती हैं।

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डिस्क्लेमर: यहां दी गई जानकारी धार्मिक की मान्यताओं पर आधारित है तथा केवल सूचना के लिए दी जा रही है। News24 इसकी पुष्टि नहीं करता है।

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Edited By

Shyam Nandan

First published on: Jun 19, 2024 06:45 AM

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