बहुत समय पहले की बात है, जब ब्रह्मांड के हर कोने में देवताओं का वास था। देवताओं के राजा सूर्यदेव का तेज इतना प्रबल था कि उनसे सीधे कोई नज़र नहीं मिला सकता था। उनकी पत्नी संज्ञा, यह तेज सहन नहीं कर पा रहीं थीं। उन्होंने एक उपाय निकाला, अपनी ही जैसी एक ‘छाया’ को उत्पन्न किया और उसे अपने स्थान पर सूर्यदेव के पास छोड़कर स्वयं तपस्या करने चली गईं।
छाया और सूर्यदेव
छाया ने अपने कर्तव्यों को पूरी निष्ठा से निभाया। समय के साथ छाया और सूर्यदेव के संयोग से एक पुत्र का जन्म हुआ, जिसका नाम रखा गया ‘शनि’। जैसे ही शनि का जन्म हुआ, उनका रंग गहरा काला था। यह छाया की कठिन तपस्या का प्रभाव था, जिसमें उसने अपने शरीर को तपस्या की अग्नि में झोंक दिया था।
सूर्यदेव का संदेह
जब सूर्यदेव ने शनि को देखा, तो उनके मन में संदेह उत्पन्न हुआ। उन्होंने सोचा, “मेरा तेज इतना प्रबल है, तो मेरा पुत्र काला कैसे हो सकता है?” उन्होंने छाया से कठोर शब्द कहे और शनि को भी अपनाने से इनकार कर दिया। यह देख बालक शनि अत्यंत दुखी हुआ। लेकिन उसने प्रतिकार नहीं किया, बल्कि उसने मन में ठान लिया कि वह अपने पुरुषार्थ से अपनी पहचान बनाएगा।
शनि की तपस्या और शिव की कृपा
शनि वन में चला गया और भगवान शिव की घोर तपस्या करने लगा। वर्षों तक वह ध्यानस्थ रहा। उसकी साधना इतनी शक्तिशाली थी कि अंततः भगवान शिव प्रकट हुए। शिव ने प्रसन्न होकर शनि से वर मांगने को कहा। शनि ने कहा, ‘हे प्रभु, मुझे ऐसा सामर्थ्य दीजिए कि मैं संसार में कर्मों का न्याय कर सकूं।’ शिव मुस्कराए और बोले, ‘तुम्हें ग्रहों में विशेष स्थान मिलेगा। तुम ‘कर्मफल दाता’ कहलाओगे और जो जैसा करेगा, वैसा फल पाएगा।’
शनि: न्याय और संतुलन का प्रतीक
भगवान शिव के आशीर्वाद से शनि नवग्रहों में प्रमुख बन गए। वह न तो किसी से बैर करते हैं, न पक्षपात। वे केवल कर्म के अनुसार फल देते हैं। अच्छे कर्म करने वालों के लिए शनि वरदान हैं, जबकि बुरे कर्म करने वालों के लिए चेतावनी।
शनि की सच्ची शक्ति
आज भी शनिदेव को न्याय का देवता माना जाता है। उनकी दृष्टि जिसे छू ले, वह व्यक्ति अपने कर्मों से मुक्ति या दंड प्राप्त करता है। इसलिए कहा जाता है: ‘शनि से डरने की नहीं, सुधरने की जरूरत है।’
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डिस्क्लेमर: यहां दी गई जानकारी धार्मिक शास्त्र की मान्यताओं पर आधारित है तथा केवल सूचना के लिए दी जा रही है। News24 इसकी पुष्टि नहीं करता है।