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Religion

Sita Birth Story: सीता जी का नाम क्यों पड़ा ‘सीता’? जानें राजा जनक के घर जन्म लेने की उनकी अद्भुत कथा

Sita Birth Story: भगवान श्रीराम की अर्धांगिनी और रामायण की मुख्य नायिका माता सीता को देवी लक्ष्मी का अवतार माना जाता है. उनका मिथिला राजा जनक के घर जन्म लेने की कथा बहुत अद्भुत है. आइए जानते हैं, मैथिली और जानकी कही जाने वाली माता सीता का नाम 'सीता' कैसे और क्यों रखा गया?

Author Written By: Shyamnandan Updated: Nov 17, 2025 19:00
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Sita Birth Story: हिंदू धर्म में माता सीता को भगवान श्रीराम की अर्धांगिनी और रामायण की मुख्य नायिका के रूप में बड़े सम्मान से पूजा जाता है. उन्हें देवी लक्ष्मी का अवतार माना गया है. वे पवित्रता, त्याग, धैर्य और आदर्श स्त्रीत्व की प्रतीक हैं. मिथिला के राजा जनक ने उन्हें अपनी पुत्री के रूप में पाया था, इसलिए वे मैथिली, जानकी और जनकनंदिनी कहलाती हैं.
लेकिन उनका नाम ‘सीता’ क्यों रखा गया, इसकी कथा अत्यंत रोचक और दिव्यता से भरी हुई है.

सूखे से व्याकुल मिथिला

कहानी उस समय की है जब मिथिला प्रदेश लगातार कई वर्षों तक भीषण सूखे से जूझ रहा था. खेत-खलिहान बंजर पड़ गए थे. वर्षा न होने के कारण जल के सभी स्रोत सूख चुके थे. प्रजा जीवन के लिए संघर्ष कर रही थी. राजा जनक अपनी जनता का दुख देखकर स्वयं भी अत्यंत चिंतित रहने लगे. उन्हें समझ नहीं आ रहा था कि इस विनाशकारी संकट से मुक्ति कैसे मिले.

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ऋषियों ने बताया ये उपाय

राजा जनक ने कई ऋषियों, मुनियों और विद्वानों से परामर्श लिया. सभी ने सलाह दी कि प्रकृति को प्रसन्न करने के लिए राजा को स्वयं एक विशेष यज्ञ करना चाहिए. ऋषियों ने यह भी कहा कि यज्ञ के बाद इंद्र देव को प्रसन्न करने के लिए राजा को अपने हाथों से खेत में हल चलाकर धरती को स्पर्श देना चाहिए. राजा ने इस सलाह को धर्म का आदेश मानकर तुरंत यज्ञ की तैयारी आरंभ की.

जब रुक गया राजा जनक का हल

यज्ञ बड़ी भक्ति और श्रद्धा से सम्पन्न हुआ. इसके बाद राजा जनक सोने का हल लेकर सूखी भूमि पर हल चलाने के लिए स्वयं उतरे. वे धीरे-धीरे खेत जोत रहे थे कि अचानक हल की नोक किसी कठोर वस्तु से टकराकर रुक गई. राजा चकित हो गए. उन्होंने तुरंत उस स्थान को खोदने का आदेश दिया.

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प्रकट हुई दिव्य कन्या

जब मिट्टी हटाई गई, तो वहाँ से एक चमकता हुआ संदूक दिखाई दिया. संदूक खोला गया, तो उसमें एक अलौकिक तेज से चमकती, अत्यंत सुंदर नवजात कन्या शांत भाव से लेटी हुई मिली. मुसकुराती हुई उस दिव्य बालिका को देखते ही राजा जनक समझ गए कि यह कोई साधारण बच्ची नहीं, बल्कि परमशक्ति का अवतार है. कन्या को गोद में उठाते ही आकाश में बादल छा गए और अचानक तेज वर्षा होने लगी. सूखा समाप्त हो गया और मिथिला की धरती फिर से हरी-भरी हो उठी. पूरी प्रजा इसे ईश्वरीय चमत्कार मानकर खुशियों से झूम उठी.

सीत से बनी ‘सीता’

राजा जनक और उनकी रानी सुनयना निःसंतान थे. उन्होंने इस बालिका को ईश्वर का प्रसाद मानकर स्नेह से अपनी पुत्री के रूप में स्वीकार कर लिया. चूंकि यह कन्या उन्हें हल की ‘सीत’ यानी हल की नोक के स्पर्श से प्राप्त हुई थी, इसलिए राजा जनक ने उसका नाम रखा- ‘सीता’. आपको बता दें, धरती की गोद से प्रकट होने के कारण वे भूमिसुता, भूमिजा और ‘विदेह’ की उपाधि प्राप्त राजा जनक के परिवार में जन्म पाने से वैदेही नाम से भी विख्यात हुईं.

अवतार का उद्देश्य

कहते हैं, इस प्रकार माता सीता का जन्म किसी सामान्य जन्म की घटना नहीं, बल्कि एक दिव्य संकेत था. उनके आगमन के साथ ही धर्म की पुनर्स्थापना और अधर्म के विनाश की प्रक्रिया प्रारंभ हो चुकी थी. माता सीता महालक्ष्मी के रूप में पृथ्वी पर अवतरित हुई थीं, ताकि आगे चलकर भगवान राम के साथ मिलकर राक्षसी शक्तियों का नाश कर सकें.

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डिस्क्लेमर: यहां दी गई जानकारी धार्मिक शास्त्र की मान्यताओं पर आधारित है तथा केवल सूचना के लिए दी जा रही है। News24 इसकी पुष्टि नहीं करता है।

First published on: Nov 17, 2025 06:25 PM

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