---विज्ञापन---

Religion

गया में क्यों किया जाता है पिंडदान, जानिए क्या है इसके पीछे की कथा?

Pitru Paksha 2025: बिहार का गया शहर को मोक्ष की नगरी के नाम से जाना जाता है। माना जाता है कि पितृपक्ष के दौरान श्राद्ध कर्म करने के लिए यह बेहद ही पावन स्थल माना गया है, लेकिन क्या आप जानते हैं कि ऐसा क्यों है? अगर नहीं तो आइए जानते हैं कि पितृपक्ष में पिंडदान और श्राद्ध कर्म करने के लिए गया नगरी को इतना महत्वपूर्ण क्यों माना जाता है?

Author Written By: News24 हिंदी Author Edited By : Mohit Tiwari Updated: Sep 6, 2025 19:30
Pitru Paksha 2025

Pitru Paksha 2025: गया, बिहार में स्थित एक प्राचीन और पवित्र शहर है। इसे ‘मोक्ष की नगरी’ के नाम से भी जाना जाता है और इसे हिंदू धर्म में पितृपक्ष के दौरान पिंडदान और श्राद्ध कर्म के लिए सबसे महत्वपूर्ण स्थल माना जाता है। ऐसा विश्वास है कि गया में पिंडदान करने से पूर्वजों की आत्मा को मोक्ष की प्राप्ति होती है और परिवार की सात पीढ़ियों का उद्धार होता है, लेकिन गया में पिंडदान करना इतना महत्वपूर्ण क्यों माना जाता है? आइए जानते हैं कि इसके पीछे की पौराणिक कथा और महत्व क्या है?

क्या है गया का धार्मिक महत्व?

गया को हिंदू धर्म में पितृ तीर्थ के रूप में विशेष स्थान प्राप्त है। विष्णु पुराण और वायु पुराण जैसे ग्रंथों में गया को ‘मुक्ति की भूमि’ कहा गया है। मान्यता है कि भगवान विष्णु स्वयं यहां पितृ देवता के रूप में विराजमान हैं। फल्गु नदी के तट पर स्थित गया में पिंडदान करने से न केवल पितरों को स्वर्गलोक की प्राप्ति होती है, बल्कि वंशजों को भी सुख-शांति और समृद्धि का आशीर्वाद मिलता है। गया में श्राद्ध कर्म की महिमा को भगवान श्रीराम से भी जोड़ा जाता है, जिन्होंने त्रेतायुग में अपने पिता राजा दशरथ का पिंडदान यहां किया था। यह स्थान इसलिए भी खास है क्योंकि यहां पिंडदान करने से 21 पीढ़ियों तक के पितरों को मुक्ति मिलने की मान्यता है।

---विज्ञापन---

क्या है यहां की पौराणिक कथा?

गया में पिंडदान के महत्व को समझने के लिए गयासुर की कथा को जानना जरूरी है। पुराणों के अनुसार, गयासुर एक शक्तिशाली और धार्मिक प्रवृत्ति का असुर था, जो भस्मासुर का वंशज माना जाता है। वह भगवान विष्णु का परम भक्त था और उसने अपनी कठोर तपस्या से भगवान विष्णु को प्रसन्न कर लिया। जब विष्णु जी ने गयासुर से वरदान मांगने को कहा, तो उसने एक अनोखा वरदान मांगा था। उसने वरदान मांगा ‘जो कोई भी मेरे शरीर को स्पर्श करेगा, उसे सीधे स्वर्गलोक की प्राप्ति होगी, चाहे वह पुण्यात्मा हो या पापी।’ भगवान विष्णु ने उसकी भक्ति से प्रभावित होकर यह वरदान दे दिया।

इस वरदान के कारण गयासुर के शरीर को छूने वाला हर व्यक्ति, चाहे वह कितना भी पापी क्यों न हो, स्वर्गलोक प्राप्त करने लगा। इससे यमलोक खाली होने लगा और संसार में पाप-पुण्य का संतुलन बिगड़ने लगा। यह देखकर देवता चिंतित हो गए और उन्होंने ब्रह्मा जी से इस समस्या का समाधान करने की प्रार्थना की। ब्रह्मा जी ने गयासुर के पास जाकर उनसे यज्ञ के लिए अपनी पवित्र देह दान करने का आग्रह किया। गयासुर ने बिना किसी संकोच के अपनी देह यज्ञ के लिए समर्पित कर दी।

---विज्ञापन---

यज्ञ और मोक्ष का वरदान

गयासुर ने यज्ञ के लिए अपने शरीर को भूमि पर लिटा दिया। देवताओं ने उनके शरीर पर यज्ञ संपन्न किया और भगवान विष्णु स्वयं उनके शरीर पर विराजमान हो गए। विष्णु जी ने गयासुर को वरदान दिया कि उनका शरीर पवित्र तीर्थ के रूप में अमर रहेगा और जो भी यहां सच्चे मन से पिंडदान करेगा, उसके पितरों को मोक्ष की प्राप्ति होगी। इसके बाद गयासुर का शरीर पत्थर में बदल गया और वह स्थान गया तीर्थ के रूप में प्रसिद्ध हो गया। भगवान विष्णु ने यह भी घोषणा की कि वे स्वयं यहां पितृ देवता के रूप में रहेंगे और फल्गु नदी के तट पर किए गए श्राद्ध कर्म को स्वीकार करेंगे।

गया में पिंडदान का है विशेष महत्व

गया में पिंडदान की परंपरा को इसलिए सबसे उत्तम माना जाता है क्योंकि यहां भगवान विष्णु की विशेष कृपा है। गरुड़ पुराण में कहा गया है कि गया पृथ्वी के सभी तीर्थों में सर्वोत्तम है। यहां पिंडदान करने से न केवल पितरों को बैकुण्ठ धाम की प्राप्ति होती है, बल्कि परिवार में पितृ दोष से मुक्ति मिलती है और सुख-समृद्धि का आशीर्वाद प्राप्त होता है। गया में कई महत्वपूर्ण स्थान जैसे विष्णुपद मंदिर, फल्गु नदी का तट और विभिन्न वेदियां पिंडदान के लिए विशेष रूप से पवित्र मानी जाती हैं। यहां पिंडदान करने की प्रक्रिया एक दिन से लेकर 3, 7 या 15 दिनों तक चल सकती है, जो श्रद्धालु की श्रद्धा और सामर्थ्य पर निर्भर करता है।

भगवान विष्णु के मौजूद हैं चरण चिह्न

गया की महिमा को रामायण से भी जोड़ा जाता है। धार्मिक मान्यता है कि भगवान श्रीराम ने अपनी माता सीता और भाई लक्ष्मण के साथ गया में फल्गु नदी के तट पर अपने पिता राजा दशरथ का पिंडदान किया था। इस घटना ने गया की पवित्रता को और बढ़ा दिया। यहां के विष्णुपद मंदिर में भगवान विष्णु के चरण-चिह्न आज भी मौजूद हैं।

डिस्क्लेमर: यहां दी गई जानकारी धार्मिक शास्त्रों पर आधारित है तथा केवल सूचना के लिए दी जा रही है। News24 इसकी पुष्टि नहीं करता है।

ये भी पढ़ें- पितृपक्ष में कैसे करें तर्पण और पिंडदान, जानिए पूरा विधि-विधान

First published on: Sep 06, 2025 07:30 PM

संबंधित खबरें

Leave a Reply

You must be logged in to post a comment.