Narak Chaturdashi 2025: नरक चतुर्दशी, जिसे ‘छोटी दीपावली’ भी कहा जाता है, दीपावली के एक दिन पहले मनाई जाती है. 2025 में यह पर्व 20 अक्टूबर को मनाया जाएगा. यह दिन बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक माना जाता है. हालांकि इस दिन का प्रमुख संबंध भगवान श्रीकृष्ण और राक्षस नरकासुर की कथा से है, लेकिन फिर भी इस दिन मृत्यु के देवता यमराज की पूजा का विशेष महत्व है. आइए जानते हैं, इससे जुड़ा पौराणिक रहस्य क्या है?
बुराई पर अच्छाई की विजय है नरकासुर वध
पौराणिक कथा के अनुसार, नरकासुर नामक राक्षस ने 16,000 कन्याओं को बंदी बना रखा था. जब अत्याचार हद से बढ़ गया, तो भगवान श्रीकृष्ण ने उनकी पत्नी सत्यभामा के साथ मिलकर नरकासुर का वध किया और उन कन्याओं को मुक्त कराया. इस विजय के उपलक्ष्य में दीप जलाए गए, जो आज की दीपावली का एक मुख्य आधार बना.
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यमराज की पूजा क्यों होती है?
हालांकि कहानी नरकासुर से जुड़ी है, फिर भी इस दिन यमराज की पूजा का महत्व सबसे अलग है. इसके पीछे भी एक मान्यता है. एक बार यमराज ने कहा था कि जो व्यक्ति कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी के दिन सूर्योदय से पहले उठकर स्नान करेगा, दीप जलाएगा और यमराज की पूजा करेगा, उसे अकाल मृत्यु का भय नहीं रहेगा. इसलिए इस दिन को ‘यम दीपदान’ के रूप में भी मनाया जाता है, जब लोग घर के बाहर, विशेषकर दक्षिण दिशा में, दीपक जलाकर यमराज के लिए दीपदान करते हैं.
अभ्यंग-स्नान और उबटन का महत्व
इस दिन सूर्योदय से पहले उबटन लगाकर स्नान करने की परंपरा है. इसे अभ्यंग-स्नान कहा जाता है. मान्यता है कि इससे न केवल शरीर शुद्ध होता है, बल्कि पापों का भी नाश होता है. इसे “अभ्यंग स्नान” कहा जाता है, जो स्वास्थ्य और आध्यात्मिक शुद्धि दोनों के लिए लाभकारी माना जाता है.
मान्यता है कि नरक चतुर्दशी केवल नरकासुर के अंत का उत्सव नहीं है, बल्कि यह दिन हमें मृत्यु के सत्य और उससे मुक्ति के उपाय की भी याद दिलाता है. यमराज की पूजा कर हम अपने जीवन में सुख, स्वास्थ्य और दीर्घायु की कामना करते हैं.
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