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Kabirdas Jayanti 2025: कबीरदास जी के प्रसिद्ध 10 दोहे, जो बदल सकते हैं किसी की भी जिंदगी; जरूर पढ़ें

Kabirdas Jayanti 2025: कबीरदास जी एक महान संत और कवि थे, जिन्होंने समाज में फैली बुराइयों, आडंबर और भेदभाव के विरुद्ध आवाज उठाई। वे निर्गुण भक्ति के उपासक थे और ईश्वर को हर जीव में मानते थे। उनके दोहे आज भी अपने सादे शब्दों में गहरी सच्चाई और जीवन का मार्ग दिखाते हैं और लोगों को प्रेरणा देते हैं। आइए जानते हैं, जीवन को बदल देने वाले कबीरदास जी के 10 लोकप्रिय और प्रसिद्ध दोहे...

Author Written By: News24 हिंदी Author Edited By : Shyamnandan Updated: Jun 11, 2025 14:18
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Kabirdas Jayanti 2025: कबीरदास जी भारत के एक बहुत ही महान संत और कवि थे। उनका जन्म आज से लगभग 600 साल पहले वाराणसी में हुआ था। माना जाता है कि जिस दिन उनका जन्म हुआ, उस दिन ज्येष्ठ पूर्णिमा की तिथि थी। वे निर्गुण संत थे यानी वे भगवान को बिना मूर्ति और बिना मंदिर के मानते थे। कबीरदास जी ने लोगों को समझाया कि भगवान हर जगह हैं और सबके दिल में रहते हैं। उन्होंने यह भी कहा कि सब धर्म एक जैसे हैं और किसी को जाति या धर्म के आधार पर छोटा-बड़ा नहीं मानना चाहिए।

कबीरदास जी ने समाज में फैली बुरी बातों, झूठे दिखावे और झगड़ों के खिलाफ जबरदस्त आवाज उठाई। कबीरदास जी का जीवन और उनके विचार हमें सच्चाई, प्रेम और अच्छाई का रास्ता दिखाते हैं। उन्होंने इन विषयों पर बहुत सुंदर दोहे लिखे जो छोटी बातों में बड़ी सीख देते हैं। उनके दोहे आज भी लोग पढ़ते हैं, याद करते हैं और प्रेरणा लेते हैं। आइए जानते हैं, कबीरदास जी के 10 लोकप्रिय और प्रसिद्ध दोहे, जो किसी की भी जिंदगी बदल सकते हैं।

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1.

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बुरा जो देखन मैं चला, बुरा न मिलिया कोय।
जो दिल खोजा आपना, मुझसे बुरा न कोय॥

इस दोहा का अर्थ है: जब मैं संसार में बुराई खोजने निकला, तो मुझे कोई बुरा व्यक्ति नहीं मिला। परंतु जब मैंने अपने भीतर झाँका, तो पाया कि मुझसे बुरा कोई नहीं है। यह कबीरदास जी एक सबसे प्रसिद्ध दोहा है, जो हमें आत्म-निरीक्षण और अपनी कमियों को स्वीकार करने की सीख देता है।

2.

जाति न पूछो साधु की, पूछ लीजिए ज्ञान।
मोल करो तलवार का, पड़ा रहन दो म्यान॥

इस दोहा का अर्थ है: किसी संत या ज्ञानी व्यक्ति की जाति नहीं पूछनी चाहिए, बल्कि उसके ज्ञान पर ध्यान देना चाहिए। तलवार का मोल उसकी धार से होता है, न कि उसकी म्यान से। कबीरदास जी अपने इस अनमोल दोहे से हमें बाहरी दिखावे से हटकर आंतरिक गुणों को महत्व देने की प्रेरणा देते हैं।

3.

ऐसी वाणी बोलिए, मन का आपा खोय।
औरन को शीतल करे, आपहुं शीतल होय॥

इस दोहा का अर्थ है: कबीरदास जी कहते हैं कि हमें ऐसी मीठी और विनम्र वाणी बोलनी चाहिए, जिससे मन का अहंकार या अभिमान दूर हो जाए। ऐसी वाणी दूसरों को भी शांति और शीतलता प्रदान करती है, और स्वयं बोलने वाले को भी सुकून देती है। यह दोहा हमें वाणी की शक्ति और उसके सकारात्मक प्रभाव का महत्व समझाता है।

4.

काल करे सो आज कर, आज करे सो अब।
पल में परलय होएगी, बहुरि करेगा कब॥

इस दोहा का अर्थ है: जो काम कल करना है उसे आज कर ले, और जो आज करना है उसे अभी कर ले। क्योंकि एक पल में प्रलय आ सकती है, फिर तुम अपना काम कब करोगे। इस दोहा से कर्म, कर्मठता और समय के महत्व की महत्वपूर्ण सीख मिलती है।

5.

निंदक नियरे राखिए, आंगन कुटी छवाय।
बिन पानी, साबुन बिना, निर्मल करे सुभाय॥

इस दोहा का अर्थ है: निंदा करने वाले को हमेशा अपने पास रखना चाहिए, हो सके तो अपने आंगन में ही कुटिया बनाकर रखिए। क्योंकि, वह बिना पानी और साबुन के ही हमारे स्वभाव को निर्मल कर देता है। कबीरदास जी का यह दोहा हमें आलोचना को सकारात्मक रूप से लेने और उससे सीखने की प्रेरणा देता है।

6.

माटी कहे कुम्हार से, तू क्या रोंदे मोय।
एक दिन ऐसा आएगा, मैं रोंदूंगी तोय॥

इस दोहा का अर्थ है: मिट्टी कुम्हार से कहती है कि तुम मुझे क्यों रौंद रहे हो। एक दिन ऐसा आएगा जब मैं तुम्हें रौंदूंगी। यह दोहा हमें अहंकार त्यागने और मृत्यु की अनिवार्यता को स्वीकार करने की सीख देता है।

7.

पोथी पढ़ि पढ़ि जग मुआ, पंडित भया न कोय।
ढाई आखर प्रेम का, पढ़े सो पंडित होय॥

इस दोहा का अर्थ है: बड़ी-बड़ी पुस्तकें पढ़कर पूरा संसार मर गया, पर कोई ज्ञानी नहीं बन पाया। जिसने प्रेम के ढाई अक्षर पढ़ लिए, वही सच्चा ज्ञानी होता है। कबीरदास जी का यह दोहा बेहद लोकप्रिय है, जो हमें किताबी ज्ञान से अधिक प्रेम और सहानुभूति के महत्व को बताता है।

8.

कबीरा खड़ा बाजार में, मांगे सबकी खैर।
ना काहू से दोस्ती, ना काहू से बैर॥

इस दोहा का अर्थ है: कबीरदास बाजार में खड़े होकर सबकी भलाई की कामना करते हैं। वे किसी से न तो दोस्ती रखते हैं और न ही दुश्मनी। अपने इस दोहे से कबीरदास जी लोगों को निष्पक्षता, सद्भाव और सबके कल्याण की भावना सिखाते हैं।

9.

जब तुम आए जगत में, लोग हंसे तुम रोए।
ऐसी करनी कर चलो, तुम हंसो लोग रोए॥

इस दोहा का अर्थ है: जब तुम इस संसार में आए थे, तब लोग हंस रहे थे और तुम रो रहे थे। अब ऐसे कर्म करके जाओ कि जब तुम जाओ तो तुम हंसो और लोग रोएं। कबीरदास जी की यह सीख हमें अच्छे कर्म करने और एक सार्थक जीवन जीने की प्रेरणा देती है।

10.

दुःख में सुमिरन सब करे, सुख में करे न कोय।
जो सुख में सुमिरन करे, तो दुःख काहे को होय॥

इस दोहा का अर्थ है: दुख में तो सब ईश्वर को याद करते हैं, सुख में कोई नहीं करता। यदि सुख में भी ईश्वर को याद किया जाए, तो दुख क्यों हो। यह दोहा कहता है कि हमें हर परिस्थिति में ईश्वर को याद करना चाहिए और अपनी आस्था बनाए रखनी चाहिए।

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डिस्क्लेमर: यहां दी गई जानकारी ज्योतिष शास्त्र की मान्यताओं पर आधारित है तथा केवल सूचना के लिए दी जा रही है। News24 इसकी पुष्टि नहीं करता है।

First published on: Jun 11, 2025 02:16 PM

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