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Religion

Gayatri Jayanti 2025: मां गायत्री को क्यों माना जाता है ब्रह्मा, विष्णु और महेश का स्वरूप? कैसे हुई देवी की उत्पत्ति

Gayatri Jayanti 2025: मां गायत्री को ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद चारों वेदों की जननी माना जाता है, जिनसे वेदों की रचना हुई है। चलिए जानते हैं मां गायत्री को क्यों ब्रह्मा, विष्णु और महेश का स्वरूप माना जाता है। साथ ही आपको देवी की उत्पत्ति से जुड़ी कथा भी जानने को मिलेगी।

Author Written By: News24 हिंदी Author Edited By : Nidhi Jain Updated: Jun 5, 2025 15:01
Gayatri Jayanti 2025
सांकेतिक फोटो, Credit- News24 Graphics

Gayatri Jayanti 2025: हर साल ज्येष्ठ माह में आने वाली शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को गायत्री जयंती मनाई जाती है, जिस दिन देवी गायत्री की पूजा करना शुभ रहता है। इस साल 6 जून 2025, वार शुक्रवार को गायत्री जयंती मनाई जाएगी।

मां गायत्री को चारों वेदों ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद की जननी माना जाता है। गायत्री मंत्र में चारों वेदों का सार समाया है, इसलिए देवी गायत्री को वेदमाता कहा जाता है। इसके अलावा मां गायत्री को ब्रह्मा, विष्णु, और महेश जी का स्वरूप भी माना जाता है। चलिए गायत्री जयंती के पावन दिन मां गायत्री से जुड़ी रोचक धार्मिक बातों के बारे में जानते हैं।

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माना जाता है ब्रह्मा-विष्णु-महेश का स्वरूप

धार्मिक मान्यता के अनुसार, मां गायत्री को ब्रह्मा, विष्णु और महेश का स्वरूप माना जाता है क्योंकि वो तीनों देवों की आराध्य हैं। मां गायत्री रचना, पालन और विनाश यानी सृष्टि के तीनों गुणों का प्रतिनिधित्व करती हैं। ब्रह्मा को ब्रह्मांड का निर्माता माना जाता है, जिनकी पूजा सृष्टि के रचयिता के रूप में की जाती है। ब्रह्मा जी के चार सिर हैं जो चार वेदों का प्रतिनिधित्व करते हैं।

भगवान विष्णु को ब्रह्मांड का पालनहार माना जाता है, जिनकी पूजा सृष्टि के संरक्षक के रूप में होती है। जबकि महेश यानी भगवान शिव ब्रह्मांड के विनाशक हैं, जिनकी पूजा सृष्टि के विनाशक और पुनर्निर्माता के रूप में होती है। ब्रह्मा, विष्णु और महेश यानी त्रिमूर्ति ब्रह्मांड के चक्र को बनाए रखने में अहम भूमिका निभाते हैं। इसलिए मां गायत्री की पूजा त्रिमूर्ति मानकर ही की जाती है। इसके अलावा देवी गायत्री को भगवान ब्रह्मा की दूसरी पत्नी भी माना जाता है।

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मां गायत्री के रूप का वर्णन

मां गायत्री के पांच मुख और दस हाथ हैं। उनके चार मुख चारों वेदों के प्रतीक हैं, जबकि पांचवा मुख सर्वशक्तिमान शक्ति का प्रतिनिधित्व करता है। मां के हाथों में अक्षमाला (ज्ञान और ध्यान का प्रतीक), कमल (पवित्रता और शुद्धता का प्रतीक), शंख (विजय और शक्ति का प्रतीक), चक्र (शक्ति और संरक्षण का प्रतीक), धनुष-बाण (शक्ति और विजय का प्रतीक), त्रिशूल (सत, रज और तम गुणों का प्रतीक), गदा (शक्ति और संरक्षण का प्रतीक), कमंडल (ज्ञान और तपस्या का प्रतीक) और पुस्तक (ज्ञान और विद्या का प्रतीक) है। जबकि एक हाथ अभय मुद्रा में है, जिसे सुरक्षा और आश्वासन का प्रतीक माना जाता है।

कैसे हुई देवी गायत्री की उत्पत्ति?

देवी गायत्री की उत्पत्ति से जुड़ी कई कथाएं और पौराणिक विवरण मिलते हैं। ब्रह्म पुराण के अनुसार, ब्रह्मा जी ने सृष्टि की रचना की थी। सृष्टि की रचना करने के बाद उन्हें लगा कि इसे चलाने के लिए एक शक्ति की जरूरत है। इसलिए उन्होंने देवी गायत्री की प्रार्थना की। माना जाता है कि ब्रह्मा जी की प्रार्थना से ही देवी गायत्री प्रकट हुई थीं।

जबकि एक अन्य कथा कहती है कि देवी गायत्री ब्रह्मा जी के मुख से प्रकट हुई थीं। ब्रह्मा जी ने जब सृष्टि की रचना की तो उन्होंने गायत्री मंत्र का उच्चारण किया था, जिससे देवी गायत्री प्रकट हुई थीं। अन्य कुछ पुराणों में, देवी गायत्री को ब्रह्मा जी की पत्नी सरस्वती का एक रूप माना जाता है।

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डिस्क्लेमर: यहां दी गई जानकारी धार्मिक मान्यताओं पर आधारित है तथा केवल सूचना के लिए दी जा रही है।News24 इसकी पुष्टि नहीं करता है।

First published on: Jun 05, 2025 03:01 PM

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