अमर देव पासवान।
पश्चिम बंगाल देश का एक ऐसा राज्य है, जो देवी पूजा के लिए विख्यात तो है ही, साथ ही यह धरती तंत्र साधनाओं और जादू-टोने के लिए भी मशहूर है। इसकी वजह से इस धरती पर कई शक्तिपीठ मौजूद हैं, जो यहां के त्योहारों को भी कुछ अलग ही रूप और रंग देती हैं।
त्योहारों के इन्हीं रूप और रंगों के बीच पश्चिम बंगाल की राजधानी कोलकाता से करीब ढाई सौ किलोमीटर दूर आसनसोल के मिठानी इलाके में होली का त्योहार कुछ अनोखे अंदाज में मनाया जाता है, जो अब पूरी दुनिया में प्रसिद्ध हो चुका है।
सदियों इस इलाके में होली का त्योहार वर्ष में दो बार मनाई जाता रहा है, पर दोनों बार होली के त्योहार मनाने का तरीका कुछ अनोखा और सबसे अलग होता है। जिस दिन होली के त्योहार पर जब पूरा देश होली मनाता है, उस दिन इस इलाके के लोग भी होली का त्योहार बहुत ही धूमधाम से मनाते हैं।
लेकिन जब होली खत्म हो जाती है, तो उसके पांचवे दिन यहां एक बार फिर होली मनाई जाती है, जिस होली को यहां के लोग ‘पंचम होली’ कहते हैं। वहीं, उत्तर भारत में इसे ‘रंग पंचमी’ कहा जाता है।
ऐसे होता है विष्णु अवतारों का दहन
होली का रंग और गुलाल खेलने से पहले यहां के लोग होलिका दहन करते हैं, जिसमें होलिका के साथ यहां के लोग इलाके में मौजूद मंदिर में स्थापित भगवान विष्णु के तीन अवतारों की पत्थर की शिला को पुरोहितों के द्वारा मंत्र उच्चारण के साथ उठाते हैं।
ये अवतार हैं- लक्ष्मी नारायण, वासुदेव और दामोदर, जिनकी विधिवत पूजा-याचना कर उनको होलिका के साथ दहन कर देते हैं। इस दौरान यहां के लोग ढोल और नगाड़े के थाप पर जमकर नाच और गाना करते हैं।
हर आदमी रहता है मांसाहार से दूर
इस दिन इलाके का हर एक व्यक्ति निरामिष रहता है। कोई भी व्यक्ति मीट-मछली या फिर शराब का सेवन नहीं करता है। पूरी रात इलाके में मेला जैसा माहौल बना रहता है। जैसे ही आग की धधकती लपटों में होलिका पूरी तरह जलकर राख में तब्दील हो जाती है, तब लोग भगवान विष्णु के तीनों अवतारों को राख से बाहर निकालते हैं।
इसके बाद भगवान का जलाभिषेक करते हैं और इसके बाद उनको दूध, शहद और पुष्प से भी स्नान करवाया जाता है। इन सारी प्रक्रियाओं के बाद भगवान को पहले रंग लगाया जाता है और फिर गुलाल से होली खेली जाती है। इसके बाद पूरा इलाका पूरी तरह रंग और गुलाल में सराबोर हो जाता है।
पहले भगवान को लगता है हर पकवान का भोग
इस दौरान इलाके के लोग अपने-अपने घरों में तरह-तरह के पकवान भी बनाते हैं। हर पकवान पहले भगवान को भोग लगाते हैं, जिसके बाद वही भोग प्रसाद के रूप में इलाके के लोग ग्रहण करते हैं।
आपको बता दें कि बंगाल के आसनसोल की यह पंचम होली इतनी महत्वपूर्ण है कि इस इलाके के लोग देश के किसी भी कोने में हों, इस त्योहार में उनको उनका सारा काम छोड़कर घर आना ही होता है। वह इसलिए कि यहां की वर्षों से चली आ रही परंपरा उनको और उनके परिवार को साथ में उनके समाज को एक अटूट बंधन से जोड़े रखती है।
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डिस्क्लेमर: यहां दी गई जानकारी धार्मिक शास्त्र की मान्यताओं पर आधारित है तथा केवल सूचना के लिए दी जा रही है। News24 इसकी पुष्टि नहीं करता है।