Diwali 2025 Katha in Hindi: सनातन धर्म के लोगों के लिए दिवाली के पर्व का खास महत्व है, जिसका उत्सव कई दिनों तक चलता है. धनतेरस से दिवाली के 5 दिवसीय पर्व की शुरुआत हो जाती है, जबकि समापन भाई दूज के दिन होता है. इस बार 18 अक्टूबर को धनतेरस का पर्व मनाया गया, जिसके बाद 19 अक्टूबर को छोटी दिवाली मनाई गई. वहीं, आज 20 अक्टूबर 2025 को कार्तिक अमावस्या के दिन दिवाली मनाई जा रही है.
दिवाली के दिन शाम के समय माता लक्ष्मी और गणेश जी की विशेषतौर पर पूजा-अर्चना की जाती है और कथा सुनी या पढ़ी जाती है. इससे न सिर्फ मां लक्ष्मी का विशेष आशीर्वाद मिलता है, बल्कि घर में सुख, समृद्धि, वैभव और धन का स्थायी वास भी होता है. चलिए अब जानते हैं दिवाली पर पढ़ने वाली मां लक्ष्मी की कथा के बारे में.
महालक्ष्मी की पौराणिक कथा
पौराणिक कथा के अनुसार, प्राचीन काल में एक गांव में एक साहूकार रहता था, जिसकी एक पुत्री थी. साहूकार की बेटी बहुत ज्यादा धार्मिक थी. वो रोजाना देवी-देवताओं की सच्चे मन से पूजा करती थी और घर के पास स्थित पीपल के पेड़ में जल अर्पित करती थी. उसी पेड़ में मां लक्ष्मी वास करती थीं.
माता लक्ष्मी साहूकार की बेटी से बहुत ज्यादा खुशी थीं और उन्होंने उसे एक दिन दर्शन दिए और कहा कि मैं तुमसे अत्यंत प्रसन्न हूं और तुम्हें अपनी सहेली बनाना चाहती हूं. लक्ष्मी जी की बात सुनकर पुत्री ने कहा कि मैं अपने माता-पिता से पूछकर बताऊंगी कि मुझे आपसे मित्रता करनी चाहिए या नहीं.
घर आकर पुत्री ने पूरी बात अपने माता-पिता को बताई और उन्होंने लक्ष्मी जी से मित्रता करने की उसे इजाजत दे दी. अगले दिन जब पुत्री पीपल के पेड़ में जल अर्पित कर रही थी तो फिर माता लक्ष्मी प्रकट हुईं और उन्होंने पूछा कि तुम मुझे अपनी सहेली बनाओगी या नहीं, जिसका जवाब पुत्री ने हां में दिया.
कुछ दिन बाद मां लक्ष्मी ने अपनी दोस्त को अपने घर भोजन पर बुलाया. साहूकार की बेटी जब वहां पहुंची तो माता लक्ष्मी ने उसका बहुत अच्छे से सत्कार किया और उसे सोने की एक चौकी पर बैठाया. साथ ही सोने-चांदी के बर्तन में भोजन खिलाया और एक कीमती रेशमी वस्त्र भेंट में दिया. अपनी सहेली को विदा करते हुए मां ने कहा कि मैं कुछ दिनों के बाद तुम्हारे घर आऊंगी.
घर आकर पुत्री ने सारी बात अपने माता-पिता को बताई, लेकिन वो दुखी थी. साहूकार ने जब अपनी बेटी से उसके उदास होने का कारण पूछा तो उसने बताया कि मेरी सहेली बहुत अच्छी है. उसने मुझे बहुत मान-सम्मान दिया, लेकिन जब वो मेरे घर आएगी तो मैं कैसे उसे संतुष्ट कर पाऊंगी. हमारे पास तो इतने पैसे भी नहीं हैं.
बेटी की बात सुनकर पिता ने कहा कि तुम अच्छे से घर की साफ-सफाई करना और दिल से उसके लिए खाना बनाना. इससे वो जरूर प्रसन्न होगी. पिता अपनी बेटी को समझा ही रहा था कि उनके पास एक चील आई और बेहद कीमती नौलखा हार गिराकर चली गई. हार को देखकर साहूकार की बेटी खुश हो गई और उसने उसे बेचकर अपनी सहेली के लिए सोने की चौकी और रेशमी दुशाला खरीद लिया.
कुछ दिनों बाद माता लक्ष्मी जब अपनी सहेली के घर आई तो साहूकार की बेटी ने दिल से उनका स्वागत किया और बैठने के लिए सोने की चौकी दी, लेकिन माता लक्ष्मी ने उस पर बैठने से मना कर दिया और जमीन पर आसन बिछाकर बैठ गईं. फिर माता ने साहूकार की बेटी द्वारा बनाया गया भोजन किया.
माता रानी अपनी सहेली के आदर-सत्कार से बेहद प्रसन्न हुईं और उसे सुख-संपत्ति का वर देकर चली गईं. कहा जाता है कि उस दिन के बाद से साहूकार और उसके परिवारवालों को कभी भी गरीबी का सामना नहीं करना पड़ा.
धार्मिक मान्यता के अनुसार, जो लोग दिवाली की पूजा के दौरान ये कथा पढ़ते हैं या सुनते हैं, उन्हें माता लक्ष्मी का आशीर्वाद मिलता है और जीवन में सुख-समृद्धि का स्थायी वास होता है.
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