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Religion

क्यों योग निद्रा में जाते हैं भगवान विष्णु, क्या है इसके पीछे की कथा?

आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी के बाद से भगवान श्रीहरिविष्णु योग निद्रा में चले जाते हैं। प्रभु चार महीने तक योग निद्रा में होते हैं। इस दौरान सृष्टि का कार्यभार भगवान शिव के हाथों में आ जाता है। इस दौरान सभी शुभ कार्य बंद हो जाते हैं। क्या आप जानते हैं कि भगवान विष्णु योग निद्रा में क्यों जाते हैं। दरअसल इससे एक बेहद ही रोचक कथा जुड़ी हुई है। आइए जानते हैं कि प्रभु इन चार महीनों में कहां रहते हैं?

Author Written By: News24 हिंदी Author Edited By : Mohit Tiwari Updated: Jul 5, 2025 22:34
Chaturmas and Yog Nidra 2025
Credit- freepik

जो आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को देवशयनी एकादशी मनाई जाती है। इसको हिंदू धर्म में बहुत खास माना जाता है। इस दिन जगत के पालनहार श्रीहरिविष्णु योग निद्रा में चले जाते हैं। इस साल, 2025 में, यह पवित्र दिन 6 जुलाई को पड़ रहा है। इस दिन भगवान विष्णु चार महीने के लिए योग निद्रा में चले जाएंगे। इस समय को चातुर्मास कहते हैं। यह अवधि भक्ति, तप और आत्म-चिंतन के लिए समर्पित होती है। माना जाता है कि इस दौरान भगवान विष्णु क्षीर सागर में शेषनाग की शय्या पर विश्राम करते हैं। योग निद्रा और चातुर्मास का धार्मिक महत्व बहुत गहरा है।

क्या है चातुर्मास का धार्मिक महत्व?

चातुर्मास का समय हिंदू धर्म में बहुत पवित्र और आध्यात्मिक माना जाता है। इस दौरान भगवान विष्णु योग निद्रा में जाते हैं और सृष्टि के संचालन का जिम्मा भगवान शिव को सौंप देते हैं। योग निद्रा कोई आम नींद नहीं, बल्कि एक गहरी आध्यात्मिक अवस्था है, जिसमें भगवान अपनी सृष्टि को खुद संतुलित होने का मौका देते हैं। चातुर्मास, आषाढ़ शुक्ल एकादशी से शुरू होकर कार्तिक शुक्ल एकादशी (देवप्रबोधिनी एकादशी) तक चलता है। यह समय भक्तों के लिए तप, साधना और भक्ति का विशेष अवसर होता है। मान्यता है कि इस दौरान किए गए धार्मिक कार्य, जैसे व्रत, दान और भगवान की भक्ति, कई गुना फलदायी होते हैं। इस समय वर्षा ऋतु रहती है।

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योग निद्रा के पीछे की प्रचलित हैं पौराणिक कथाएं

भगवान विष्णु के योग निद्रा में जाने की कई पौराणिक कथाएं प्रचलित हैं, जो इसका महत्व पता चलता है।

राजा बलि और भगवान विष्णु की कथा

पद्म पुराण और भागवत पुराण के अनुसार, भगवान विष्णु ने अपने वामन अवतार में दैत्यराज बलि से तीन पग भूमि मांगी थी। बलि ने अपनी भक्ति और उदारता में भगवान को सब कुछ समर्पित कर दिया। प्रसन्न होकर भगवान विष्णु ने बलि को वरदान दिया कि वे उनके द्वारपाल बनेंगे लेकिन भगवान विष्णु की अनुपस्थिति से वैकुंठ में व्यवस्था प्रभावित होने लगी। माता लक्ष्मी ने बलि से प्रार्थना की कि वे भगवान को मुक्त करें। बलि ने भगवान विष्णु से अनुरोध किया कि वे वर्ष में चार मास (चातुर्मास) उनके पास पाताल लोक में रहें और शेष समय वैकुंठ में रहें। भगवान विष्णु ने इसे स्वीकार किया और चातुर्मास के दौरान योग निद्रा में रहकर पाताल लोक में बलि के साथ समय बिताते हैं।

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सृष्टि के संतुलन की कथा

एक अन्य कथा के अनुसार, भगवान विष्णु सृष्टि के संचालन में संतुलन बनाए रखने के लिए योग निद्रा में जाते हैं। सृष्टि का निर्माण ब्रह्मा, पालन विष्णु और संहार भगवान शिव करते हैं। चातुर्मास के दौरान, जब वर्षा ऋतु होती है, सृष्टि में नई हरियाली और जीवन का संचार होता है। इस समय भगवान विष्णु विश्राम लेकर सृष्टि को स्वयं संतुलित होने का अवसर देते हैं। उनकी यह निद्रा सृष्टि के पुनर्जनन और प्रकृति के साथ सामंजस्य का प्रतीक है।

शेषनाग और क्षीर सागर की कथा

पुराणों में यह भी वर्णित है कि भगवान विष्णु क्षीर सागर में शेषनाग की शय्या पर योग निद्रा में विश्राम करते हैं। शेषनाग सृष्टि के आधार और अनंतता के प्रतीक हैं, भगवान विष्णु को अपनी शय्या प्रदान करते हैं।

डिस्क्लेमर: यहां दी गई जानकारी धार्मिक शास्त्र पर आधारित है तथा केवल सूचना के लिए दी जा रही है। News24 इसकी पुष्टि नहीं करता है।

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First published on: Jul 05, 2025 10:32 PM

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