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Chanakya Niti: आचार्य चाणक्य के अनुसार ये लोग नहीं होते इंसान, जानें क्यों बताया इन्हें ‘पशु समान’

Chanakya Niti: भारत के महान कूटनीतिज्ञ और दार्शनिक आचार्य चाणक्य की की ‘चाणक्य नीति’ आज भी लोगों को सही मार्ग दिखाती है. उन्होंने कहा है कि कुछ लोग इंसान होते हुए भी व्यवहार में पशु के समान होते हैं. आइए जानते हैं, किस प्रकार के इंसानों को उन्होंने पशु समान बताया है.

Author Written By: Shyamnandan Author Published By : Shyamnandan Updated: Nov 25, 2025 14:10
Chanakya-Niti

Chanakya Niti: आचार्य चाणक्य, भारत के महान कूटनीतिज्ञ और दार्शनिक, हमेशा जीवन के गूढ़ रहस्यों को सरल भाषा में समझाते थे. उनकी ‘चाणक्य नीति’ आज भी लोगों को सही मार्ग दिखाती है. उन्होंने कहा है कि कुछ लोग इंसान होते हुए भी व्यवहार में पशु के समान होते हैं. ये लोग केवल भौतिक आवश्यकताओं तक सीमित रह जाते हैं और अपनी बुद्धि का उपयोग नहीं करते है. सुनकर हैरानी हो सकती है, लेकिन इसका कारण गहरा और विचारणीय है. आइए जानते हैं, कौन लोग हैं पशु समान इंसान?

मनुष्य और पशु में 4 समानताएं

चाणक्य के अनुसार मनुष्य और पशु में कुछ मूलभूत समानताएं हैं. ये हैं:

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भोजन (आहार): मनुष्य और पशु दोनों पेट भरने के लिए भोजन करते हैं.
नींद (निद्रा): थकावट महसूस होने पर दोनों सोते हैं.
भय (डर): खतरे का एहसास होने पर डरना दोनों का स्वाभाविक व्यवहार है.
संतानोत्पत्ति (मैथुन): वंश को आगे बढ़ाने के लिए दोनों में प्रजनन की प्रवृत्ति होती है.

जानवर और इंसान दोनों यही 4 काम करते हैं. केवल इन क्रियाओं को देखकर मनुष्य को ऊंचा नहीं समझा जा सकता है.

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मनुष्य और पशु में क्या है फर्क?

चाणक्य कहते हैं कि असली अंतर ज्ञान है. पशु केवल अपनी प्रवृत्ति और आदत पर चलते हैं, लेकिन इंसान के पास बुद्धि और विवेक होता है. वह सही-गलत का निर्णय कर सकता है. सीख सकता है और अपने अनुभवों से बेहतर बन सकता है.

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‘पशु समान’ इंसान कौन है?

जो व्यक्ति केवल भोजन, नींद, डर और संतानोत्पत्ति तक सीमित रहता है, वह चाणक्य के अनुसार दो पैरों वाला पशु है. ऐसे लोग अपनी बुद्धि का इस्तेमाल नहीं करते. केवल भौतिक सुखों में लिप्त रहते हैं.

ज्ञान सिर्फ किताबी नहीं हो

चाणक्य का ज्ञान का अर्थ केवल पढ़ाई या किताबी ज्ञान नहीं है. इसमें नैतिकता, आत्म-जागरूकता और सामाजिक जिम्मेदारी भी शामिल है. यदि कोई अपने स्वार्थ के लिए दूसरों का शोषण करता है या केवल भौतिक सुखों के पीछे भागता है, वह अपने मनुष्य होने के गुण खो देता है.

ये है मनुष्य बनने का असली मार्ग

मनुष्य को चाहिए कि वह अपनी बुद्धि और विवेक का प्रयोग करे. समाज के प्रति अपने कर्तव्यों को समझे. केवल भौतिक नहीं, बल्कि आध्यात्मिक और बौद्धिक उन्नति के लिए प्रयास करे. ज्ञान की यह लौ ही इंसान को वास्तविक मानव बनाती है.

आचार्य चाणक्य की ये नीतियां हमें सिखाती है कि हर व्यक्ति को अपने भीतर की सोच, नैतिकता और समाज के प्रति जिम्मेदारी विकसित करनी चाहिए. तभी हम सही मायने में मानव कहलाने के योग्य होंगे. इसलिए, अपने ज्ञान और विवेक को हमेशा प्रज्ज्वलित रखें और जीवन को सार्थक बनाएं.

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डिस्क्लेमर: यहां दी गई जानकारी धार्मिक शास्त्र की मान्यताओं पर आधारित है तथा केवल सूचना के लिए दी जा रही है। News24 इसकी पुष्टि नहीं करता है।

First published on: Nov 25, 2025 10:33 AM

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