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Argala Stotram: नवरात्रि के अंतिम दिन खुल सकती है कुंवारों की किस्मत, बस करना होगा ये काम

Navratri Argala Stotram: वैदिक ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, यदि आप नवरात्रि में इस स्तोत्र का पाठ करते हैं तो आपकी सारी मनोकामना पूर्ण हो सकती है। साथ ही जीवन की सारी समस्याएं भी दूर हो जाती हैं। तो आज इस खबर में जानते हैं कि नवरात्रि में कौन से उपाय करने चाहिए।

Edited By : Raghvendra Tiwari | Updated: Apr 14, 2024 13:30
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Chaitra Navratri

Navratri Argala Stotram: ज्योतिष शास्त्र में नवरात्रि में किए जाने वाले कई तरह के उपाय बताए गए हैं, जिन्हें करने के बाद जीवन में खुशहाली आती है। साथ ही जीवन की सारी परेशानियों से मुक्ति मिलती है। बता दें कि साल में चार नवरात्रि का पर्व आता है, जिसमें से एक चैत्र नवरात्रि, एक शारदीय नवरात्रि और दो बार गुप्त नवरात्रि आती है। सभी नवरात्रि में अलग-अलग उपाय करने के बारे में बताया गया है।

ज्योतिषियों के अनुसार, चैत्र नवरात्रि की शुरुआत 9 अप्रैल से हो गई है और समापन 17 अप्रैल को होगा। बता दें कि आज नवरात्रि का 6वां दिन है। आज मां दुर्गा के कात्यायनी रूप की पूजा की जाएगी। ज्योतिषियों के अनुसार, यदि आप नवरात्रि के अंतिम दिन बस एक मंत्र का जाप करते हैं तो आपकी शादी जल्द से जल्द हो सकती है।

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जल्द विवाह होने के उपाय

वैदिक ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, नवरात्रि में दुर्गा सप्तशती अर्गला स्तोत्र का पाठ करना बहुत ही लाभदायी होता है। बता दें कि इस स्तोत्र का पाठ करने से सारी मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती हैं। ज्योतिष के अनुसार, यदि आपकी शादी में देरी हो रही है या शादी नहीं हो पा रही है तो आप इस अर्गला स्तोत्र का पाठ कर सकते हैं। तो आइए जल्द विवाह होने के उपाय के बारे में जानते हैं।

।अर्गला स्तोत्रम्।।

ॐ जयन्ती मङ्गला काली भद्रकाली कपालिनी।
दुर्गा क्षमा शिवा धात्री स्वाहा स्वधा नमोऽस्तु ते॥1॥

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जय त्वं देवि चामुण्डे जय भूतार्तिहारिणि।
जय सर्वगते देवि कालरात्रि नमोऽस्तु ते॥2॥

मधुकैटभविद्राविविधातृवरदे नमः।
रुपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि॥3॥

महिषासुरनिर्णाशि भक्तानां सुखदे नमः।
रुपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि॥4॥

रक्तबीजवधे देवि चण्डमुण्डविनाशिनि।
रुपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि॥5॥

शुम्भस्यैव निशुम्भस्य धूम्राक्षस्य च मर्दिनि।
रुपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि॥6॥

वन्दिताङ्‌घ्रियुगे देवि सर्वसौभाग्यदायिनि।
रुपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि॥7॥

अचिन्त्यरुपचरिते सर्वशत्रुविनाशिनि।
रुपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि॥8॥

नतेभ्यः सर्वदा भक्त्या चण्डिके दुरितापहे।
रुपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि॥9॥

स्तुवद्‌भ्यो भक्तिपूर्वं त्वां चण्डिके व्याधिनाशिनि।
रुपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि१॥10॥

चण्डिके सततं ये त्वामर्चयन्तीह भक्तितः।
रुपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि॥11॥

देहि सौभाग्यमारोग्यं देहि मे परमं सुखम्।
रुपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि॥12॥

विधेहि द्विषतां नाशं विधेहि बलमुच्चकैः।
रुपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि॥13॥

विधेहि देवि कल्याणं विधेहि परमां श्रियम्।
रुपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि॥14॥

सुरासुरशिरोरत्ननिघृष्टचरणेऽम्बिके।
रुपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि॥15॥

विद्यावन्तं यशस्वन्तं लक्ष्मीवन्तं जनं कुरु।
रुपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि॥16॥

प्रचण्डदैत्यदर्पघ्ने चण्डिके प्रणताय मे।
रुपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि॥17॥

चतुर्भुजे चतुर्वक्त्रसंस्तुते परमेश्‍वरि।
रुपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि॥18॥

कृष्णेन संस्तुते देवि शश्‍वद्भक्त्या सदाम्बिके।
रुपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि॥19॥

हिमाचलसुतानाथसंस्तुते परमेश्‍वरि।
रुपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि॥20॥

इन्द्राणीपतिसद्भावपूजिते परमेश्‍वरि।
रुपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि॥21॥

देवि प्रचण्डदोर्दण्डदैत्यदर्पविनाशिनि।
रुपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि॥22॥

देवि भक्तजनोद्दामदत्तानन्दोदयेऽम्बिके।
रुपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि॥23॥

पत्नीं मनोरमां देहि मनोवृत्तानुसारिणीम्।
तारिणीं दुर्गसंसारसागरस्य कुलोद्भवाम्॥24॥

इदं स्तोत्रं पठित्वा तु महास्तोत्रं पठेन्नरः।
स तु सप्तशतीसंख्यावरमाप्नोति सम्पदाम्॥25॥

॥ इति देव्या अर्गलास्तोत्रं सम्पूर्णम् ॥

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डिस्क्लेमर: यहां दी गई जानकारी ज्योतिष शास्त्र पर आधारित है तथा केवल सूचना के लिए दी जा रही है। News24 इसकी पुष्टि नहीं करता है। 

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Edited By

Raghvendra Tiwari

First published on: Apr 14, 2024 01:30 PM

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