Mahabharata Story: महाभारत काल में अपने पांचों भाइयों में युधिष्ठिर एकमात्र ऐसे व्यक्ति थे, जो सशरीर स्वर्ग पहुंचे थे। युधिष्ठिर धर्मराज के अवतार थे। बताया जाता है कि वे कभी झूठ नहीं बोलते थे, लेकिन एकबार एक सच को घुमा-फिरा कर कहने के कारण, जिसे ‘युधिष्ठिर का अर्ध-सत्य’ कहा जाता है, युधिष्ठिर को भी परिणाम भोगने पड़े थे।
जब कृष्ण ने लिया छल का सहारा
महाभारत की कथा (Mahabharata Story) के अनुसार, भीष्म के बुरी तरह घायल होने के बाद महाभारत युद्ध के 15वें दिन गुरु द्रोणाचार्य के नेतृत्व में कौरवों की सेना ने पांडवों को त्रस्त कर दिया था। तब कृष्ण ने एक छल का सहारा लिया। उन्होंने द्रोणाचार्य को हराने के लिए “अश्वत्थामा” नामक एक हाथी की हत्या भीम के हाथों करवा दी और युद्ध क्षेत्र में यह अफवाह फैला दी कि गुरु द्रोणाचार्य का पुत्र, जिसका नाम भी अश्वत्थामा ही था, मारा गया। द्रोणाचार्य ने जब यह खबर सुनी तो उन्हें विश्वास नहीं हुआ।
क्या है युधिष्ठिर का अर्ध-सत्य?
गुरु द्रोणाचार्य ने तब इसकी पुष्टि के लिए यह बात युधिष्ठिर से पूछा, क्योंकि वे जानते थे कि युधिष्ठिर कभी असत्य नहीं कहते हैं। श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर से कह रखा था कि उन्हें झूठ नहीं बोलना है, लेकिन क्या कहना है और कैसे कहना है, यह समझा रखा था। युधिष्ठिर ने गुरु द्रोणाचार्य के पूछने पर बताया कि “अश्वत्थामा हतः इति नरो वा कुंजरो वा”। इसका अर्थ है, “अश्वत्थामा मारा गया लेकिन वह आदमी नहीं बल्कि एक हाथी है।” सत्य को घुमा-फिरा कर कहने के कारण इसे “युधिष्ठिर का अर्ध-सत्य” कहा जाता है।
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ऐसे हुई गुरु द्रोणाचार्य की मृत्यु
महाभारत की कथा (Mahabharata Story) के अनुसार, जब युधिष्ठिर बोल रहे थे और “अश्वत्थामा हतः” तक ही कहा था कि तभी श्रीकृष्ण इतनी जोर से शंख बजाया कि आगे के शब्द शंख की तेज ध्वनि में खो गए। “अश्वत्थामा हतः” सुनते ही गुरु द्रोणाचार्य ने दुःख और निराशा में अपने अस्त्र त्याग दिए और निहत्थे धरती पर बैठ गए। महाभारत की कथा (Mahabharata Story) के अनुसार, तभी द्रौपदी के भाई धृष्टद्युम्न ने तलवार से गुरु द्रोणाचार्य सिर धड़ से अलग कर दिया।
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युधिष्ठिर को भोगना पड़ा था ये परिणाम
महाभारत की कथा (Mahabharata Story) के अनुसार, अपने जीवन के अंतिम समय में जब युधिष्ठिर अपने सभी भाइयों और द्रौपदी के साथ ‘स्वर्गारोहण’ पर जा रहे थे, तब रास्ते में उनके सभी भाइयों—सहदेव, नकुल, अर्जुन और भीम—और द्रौपदी की एक-एक कर मृत्यु हो गई। युधिष्ठिर अकेले ही सशरीर स्वर्ग जाने के लिए बच गए। एक आधा झूठ (अर्ध-सत्य) बोलने के कारण युधिष्ठिर के पैर का एक अंगूठा भीषण ठंढ के कारण पत्थर हो गया और अंततः उनका अंगूठा गल कर गिर गया।
कहानी की नैतिक सीख (Moral of the Story): “झूठ कैसा भी हो, पूरा या आधा झूठ, इसका परिणाम भोगना पड़ता है।”