हिंदुस्तान जल्द ही एक आर्थिक महाशक्ति बनने वाला है। विकासशील देशों की सूची से बाहर निकलकर विकसित देशों में हिंदुस्तान की गिनती होने जा रही है। देश में गरीबी कैसे कम हो रही है यह बताने के लिए ‘हवाई दावे’ राजनेताओं और सरकार समर्थकों की भाट मंडलियां लगातार करती रहती हैं। विकास और प्रगति के रथ को बढ़ा-चढ़ाकर दिखाने के लिए बड़े-बड़े आंकड़े प्रकाशित किए जाते हैं। हालांकि, ये आंकड़े कैसे भ्रमित करते हैं और सरकारी दावों की ये ‘हवाई बातें’ कितनी खोखली हैं, इसका अप्रत्यक्ष रूप से पर्दाफाश बुधवार को सर्वोच्च न्यायालय में हुआ। सर्वोच्च न्यायालय की पीठ ने देश में गरीबों की स्थिति पर चिंता व्यक्त करते हुए विकास के आंकड़ों और गरीबों की बढ़ती संख्या पर सीधे उंगली रखी। विकास हो रहा है, प्रति व्यक्ति आय बढ़ रही है तो गरीबी कम होनी चाहिए। देश में गरीबों की संख्या कम होनी चाहिए?
विकास हो रहा है तो गरीबी क्यों है?
देश की राज्य सरकारें अपने-अपने राज्यों में प्रति व्यक्ति आय कैसे बढ़ा रही है। विकास का सूचकांक कैसे बढ़ रहा है, इसका बड़े गर्व से वर्णन करती हैं। लेकिन जब अनुदान या सब्सिडी का मुद्दा आता है तो उन राज्यों में 75 प्रतिशत आबादी गरीब होने का पता चलता है। अगर 75 प्रतिशत लोग गरीबी रेखा के नीचे जीवन यापन कर रहे हैं तो आप जो विकास दिखा रहे हैं वह कहां है? विकास और 75 प्रतिशत आबादी गरीब इन दोनों तथ्यों में तालमेल कैसे बैठाया जाए? यह तो हमें समझाओ, ऐसा सीधा सवाल न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति कोटेश्वर सिंह ने उठाया है।
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सर्वोच्च न्यायालय ने खींचा गरीबी की ओर ध्यान
कोविड काल के दौरान देश में प्रवासी मजदूरों की बड़ी दुर्दशा सामने आने के बाद, सर्वोच्च न्यायालय ने स्वयं संज्ञान लेते हुए इस मामले में याचिका दाखिल की थी। उसकी सुनवाई के दौरान, सर्वोच्च न्यायालय ने विकास और गरीबी के बीच की विसंगतियों की ओर सरकार का ध्यान खींचा। सरकार राशन कार्ड का उपयोग लोकप्रियता हासिल करने के लिए कर रही है, ऐसी जोरदार टिप्पणी न्यायमूर्तियों ने की और यह सही भी है। राशन प्रणाली के माध्यम से जरूरतमंद लोगों को जीवन की आवश्यक वस्तुएं मिलनी चाहिए। लेकिन जिनका इस पर कोई हक नहीं है, ऐसे लोगों के पास गरीबों की योजनाओं का यह पैसा तो नहीं जा रहा है न? यह सटीक सवाल भी न्यायालय ने उपस्थित किया है।
आय में असमानता ही विसंगति का मुख्य क्या कारण है
वकील प्रशांत भूषण ने आय में असमानता ही विसंगति का मुख्य क्या कारण पर न्यायालय का ध्यान आकर्षित किया। देश की कुल आबादी में से मुट्ठी भर लोगों के पास अन्य बाकी आबादी की तुलना में अत्यधिक संपत्ति जमा हो गई है। जबकि गरीबों के पास दो वक्त की रोटी का भी पैसा नहीं है। इसके अलावा प्रति व्यक्ति आय का आंकड़ा उस राज्य के कुल आय के औसत के आधार पर निकाला जाता है। इसलिए प्रति व्यक्ति आय बढ़ी हुई दिखती है, लेकिन वास्तव में अमीरों की तिजोरी के नीचे गरीबी छुपाई जाती है।
क्या है अमीरी और गरीबी की सच्चाई
एक तरफ हिंदुस्तान अमीर देशों की सूची में पांचवें स्थान पर है और दूसरी तरफ गरीब देशों की सूची में भी उतना ही आगे है। यानी अमीरी में भी आगे और गरीबी में भी आगे, यह विचित्र स्थिति है। । देश के 81 करोड़ गरीब लोगों को मुफ्त अनाज देना पड़ता है, यही देश में गरीबी की कड़वी सच्चाई है। इसी विसंगति पर उंगली उठाते हुए देश की सर्वोच्च न्यायिक संस्था ने यह सवाल किया है। क्या आत्मप्रशंसा में डूबी हुई सरकार के पास इसका कोई जवाब है?
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