Pulse Diagnosis In Ayurveda: कोई भी बीमार होता है तो सबसे पहले बीमारी का पता लगाने के लिए अस्पताल पहुंचता है। वहां टेस्ट करवाता है और फिर इलाज चालू होता है। एक समय में ही डॉक्टर इतने सारे टेस्ट लिख देते हैं कि जेब ही खाली हो जाती है। मगर आपने अपने दादा-दादी या नाना-नानी से सुना होगा कि पहले जमाने में तो सिर्फ नाड़ी देखकर ही रोग का पता चल जाता था। वहीं कई नाटकों और फिल्मों में भी दिखाया गया है कि कैसे वैद जी नब्ज देखकर ही बीमारी के बारे में पता लगा लेते थे। क्या कभी जेहन में ये सवाल आता है कि आखिर वो बिना किसी टेस्ट के कैसे पता लगा लेते थे? आइए हम आपको बताते हैं…
क्या होता है नाड़ी परीक्षण
आज के समय में एलोपैथिक चिकित्सा हो या होम्योपैथी चिकित्सा सबकी जननी आयुर्वेद पद्धति ही है। सदियों पहले से आयुर्वेद चिकित्सा चलन में है और आज भी लोग इसे मानते हैं। आयुर्वेद में नाड़ी परीक्षण का बहुत अधिक महत्व होता है। आज भी कई वैद्य और जानकार इस पद्धति को फॉलो करते हैं। वो हाथ की नब्ज देखकर ही पता लगा लेते हैं कि इंसान के शरीर में कौनसी बीमारी पनप रही है, और उसका इलाज किया है।
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कारगर है नाड़ी परीक्षण
माना जाता है कि नाड़ी परीक्षण बहुत अधिक कारगर है। इससे किसी भी बीमारी का सटीक पता लगाया जा सकता है। इसके लिए एक खास नियम है कि नाड़ी परीक्षण खाली पेट किया जाना चाहिए। माना जाता है कि नाश्ता करने या कुछ खाने के बाद नाड़ी में परिवर्तन हो जाता है। ऐसे में किसी बीमारी के बारे में सटीकता से जानने के लिए जरूरी है कि परीक्षण खाली पेट किया जाए।
पुरुष और महिलाओं की अलग होती है नाड़ी
क्या आपको पता है कि महिलाओं और पुरुषों की नाड़ी अलग-अलग तरीके से चेक की जाती है। महिलाओं के बाएं हाथ की नाड़ी चेक की जाती है तो पुरुषों की दाएं हाथ की नाड़ी। ये भी जान लें कि एक स्वस्थ्य इंसान की नाड़ी एक सेकेंड में 30 बार धड़कती है। वहीं जिनकी नाड़ी रुक रुककर धड़कती है तो समझ लें कि वो हेल्दी नहीं है। इसके अलावा जिनकी नाड़ी की गति बहुत धीमी गति से चलती है या बहुत तेज गति से चलती है को माना जाता है कि उसकी बीमारी लाइलाज है।
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