GPS Spoofing: दुनिया जितनी विकसित हो रही है, उसके फायदे होने के साथ कई नुकसान भी हैं. डिजिटल के दौर में जहां एक तरफ काम बहुत आसान हो गया है, वहीं रिस्क भी ज्यादा बढ़ गया है. पहले हवाई सफर सपना जैसा लगता था, लेकिन आज आसमान में हर वक्त हजारों विमान लोगों को लेकर उड़ते हैं. ये सभी विमान सुरक्षित अपनी मंजिल तक पहुंचे, इसके लिए एयर ट्रैफिक कंट्रोल का तगड़ा सिस्टम काम करता है. कैसा हो अगर ये सिस्टम पता ही न लगा सके कि यात्रियों को लेकर गया विमान कहां पर है? ऐसी स्थिति को GPS स्पूफिंग कहते हैं. जानिए क्या है GPS स्पूफिंग और ये कितनी खतरनाक होती है?
क्या है GPS स्पूफिंग?
GPS स्पूफिंग को आसान शब्दों में समझें तो ये एक तरह का साइबर अटैक होता है. इसके जरिए एक नकली सिग्नल भेजा जाता है, जिससे प्लेन अपने रास्ते पर जाने के बजाय दूसरे गलत रास्ते पर चला जाता है. रिपोर्ट्स के मुताबिक, इस तकनीक का वॉर के दौरान ड्रोन और मॉनिटरिंग सिस्टम का ध्यान भटकाने के लिए किया जाता है. हालांकि, विमानों में इनर्शियल रेफरेंस सिस्टम जैसे कई बैकअप होते हैं, जो GPS से जुड़ी परेशानियां आने पर स्थिति को संभाल सकते हैं.
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क्यों ये खतरनाक साबित हो सकता है?
जब सड़क पर लोग अपनी गाड़ियां लेकर निकलते हैं, तो उनको बनाए गए ट्रैफिक रूल्स का ध्यान होता है. ये रूल्स किसी भी तरह की अनहोनी से बचाने के लिए बनाए जाते हैं. ऐसे ही ट्र्रैफिक हवाई जहाजों के लिए भी बनाया गया है. विमान अपने रूट पर चलते हैं, क्योंकि अगर ऐसा नहीं हुआ तो हादसा होने का खतरा बढ़ जाता है.
इसीलिए जब GPS स्पूफिंग की समस्या आती है तो विमानों की दूरी एक दूसरे से कम हो सकती है, जिससे हादसा होने का खतरा बढ़ जाता है. साथ ही, इससे लैंडिंग और टेकऑफ में भी दिक्कतें देखने को मिलती हैं.
DGCA जारी कर चुका है एडवाइजरी
आमतौर पर इस तरह की समस्याएं भारत-म्यांमार और भारत-पाकिस्तान बॉर्डर के आसपास देखने को मिलती हैं. दिल्ली में ये समस्या आना बहुत चिंताजनक माना जा रहा है. इसके पहले DGCA स्पूफिंग की समस्याओं के लिए साल 2023 में एडवाइजरी जारी कर चुका है. इसमें एयरलाइन्स से कहा गया था कि इन पर जल्द से जल्द रिपोर्ट पेश जानी चाहिए.
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